हमारे देश का विकास गांवों के विकास से सीधे-सीधे जुड़ा है। महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत गांवों का देश है यदि गांवों की काया पलट दी जाए तो समूचे राष्ट्र का विकास संभव हो सकता है। वास्तव में गांवों की खुशहाली में ही देश की खुशहाली निहित है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व ग्रामीण विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया जिसके कारण हमारे गांव आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से पिछड़े हुए नजर आते हैं।
आर्थिक विकास के माध्यम से:-
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नियोजित आर्थिक विकास के माध्यम से ग्रामीण विकास कार्यक्रमों पर विशेष बल दिया गया और इसी को एक मिशन की तरह कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के युवा वैज्ञानिक एवं पर्यावरणविद् डॉ. रविकांत। ग्रामीण विकास के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाले डॉ. रविकांत से लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार संजीव कुमार शुक्ला ने बात की। प्रस्तुत आलेख उनसे की गई बातचीत पर आधारित है।
वर्तमान समय में जब समाज सेवा का मतलब सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का माध्यम हो गया है और समाज सेवा शब्द एक फैशन की तरह इस्तेमाल होने लगा है। लोग जो थोड़ा बहुत दिखावा करते भी हैं तो बस मीडिया पर छा जाने के लिए। लेकिन हम आज बात कर रहे हैं भारत नवनिर्माण के जज्बे से भरे ऐसे युवा शख्स की जो ना तो कोई नेता है ना अधिकारी है। लेकिन समाज सुधार, ग्रामीण उत्थान और पर्यावरण विकास के लिए उसने जो जज्बा दिखाया है वह काबिले तारीफ है।
हम बात कर रहे हैं:-
उत्तर प्रदेश में हमीरपुर जिले के एक बहुत ही पिछड़े गांव छेड़ी बसायक में जन्मे और इसी भूमि को अपनी कर्मभूमि मान समस्त परिवेश के लिए उत्थान और विकास का सपना देखने वाले डॉ. रविकांत की। आपके के माता-पिता किसान है। डॉ. रविकांत का बचपन बहुत ही अभाव में बीता था। परिवार में दो बहनों के बीच में अकेले लड़के थे। माता-पिता से मिले संस्कार और समाज में कुछ कर गुजरने की इच्छा ने बालक रविकांत को उस राह पर अग्रसर कर दिया जिनमें संघर्ष तो था लेकिन सफलता की सुगंध भी आ रही थी।
यहां से प्राप्त की शिक्षा:-
डॉ. रविकांत ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही ली। इसके उपरांत कुछ समय तक आपने लखनऊ के सिटी मांटेसरी स्कूल, में भी शिक्षा ग्रहण की। आप सिटी मांटेसरी स्कूल के संस्थापक-प्रबन्धक एवं प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. जगदीश गांधी से भी खासा प्रभावित रहे हैं। इसी अवधि में आपका चयन भारत सरकार की आवासीय छात्रवृत्ति के लिए हो गया था। जिसके अन्तर्गत आपने नासिक तथा इन्दौर में आवासीय पब्लिक स्कूलों में रहकर कक्षा 6 से कक्षा 12 तक शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद आपने आईआईटी, बाम्बे से बी.टेक तथा एम.टेक किया। उसके बाद आपका हांगकांग की यूनिवर्सिटी में स्कालरशिप के साथ चयन हो गया। वर्तमान में आप स्वीडन की गोटेनबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के रूप में जलवायु परिवर्तन तथा वायुमण्डलीय विषय पर रिसर्च कर रहे हैं।
आप अपने जीवन में सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों से खासा प्रभावित रहे लेकिन आपके जीवन में बड़ा परिवर्तन तब आया जब आपने 2003 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में गंभीरता से पढ़ा। यहीं से आपको मानव सेवा ग्रामीण सेवा समेत देश के समग्र विकास का एक जो मूल मंत्र मिला। उसको लेकर आज वह बिना किसी सरकारी मदद के पूरे जोश और खरोश के साथ सक्रिय हैं। आपका मूल मंत्र है – समृद्धशाली और सशक्त भारत। आप अपने देश को समृद्धशाली और विकास के उस मार्ग पर चलते हुए देखना चाहते हैं जहां पर देश को लोग फिर उसी तरह से परिभाषित करें कि जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, वह भारत देश है मेरा ।
महात्मा गांधी से ली प्रेरणा:-
आपने महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरणा लेकर भारत उदय मिशन का गठन किया और इसके माध्यम से ग्रामीण विकास के लिए 2007 से ही सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। इसके अंतर्गत आपने अपने गांव में 100 एकड़ जमीन में जैविक खेती द्वारा ग्रामीण भारत को रसायन मुक्त तथा लाभकारी खेती करने की सीख दे रहे हैं। रसायन मुक्त खेती के साथ-साथ समग्र ग्रामीण विकास, गौशाला का निर्माण, वृक्षांे का संरक्षण, आधुनिक खेती, ऊर्जा संरक्षण, सौर ऊर्जा के बारे में आप निरंतर जानकारी देने के लिए प्रयत्नशील है और सफलतापूर्वक इस विषय में जानकारी दे भी रहे हैं।
आप बताते हैं कि ग्रामीण विकास का अर्थ लोगों का आर्थिक सुधार और बड़ा सामाजिक बदलाव लाने का है जिसके अंतर्गत ग्रामीण विकास कार्यक्रम में लोगों की बढ़ी हुई भागीदारी योजनाओं का विकेंद्रीकरण भूमि सुधार पर बेहतर ढंग से अमल मेरा लक्ष्य है। आप बताते हैं कि शुरू में हमने मुख्य जोर कृषि गुणवत्तायुक्त खेती और पशुपालन को दिया जिससे जमीनी स्तर पर लोगों की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भागीदारी और सोच बदलने लगी। डॉ. रवि कांत बताते हैं कि शुरुआत में दिक्कत तो बहुत आई थी लेकिन धीरे-धीरे सूरत बदलती दिख रही है । आप कहते है कि भारत गांवों का देश है जहां कि 70 प्रतिशत जनसंख्या आज भी गांवों में रहती है। यह ठीक है कि भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण अर्थव्यवस्था में ग्रामीण जनता का शहरों की तरफ बहुत तेजी से पलायन हो रहा है तथा हो चुका है। विकास के नाम पर गांवों को शहरों के रूप में बदलने का प्रयास अनवरत जारी है। हरितक्रांति, खुशहाली तथा अधिक अन्नोत्पादन के लक्ष्य के कारण कृषि का अति यंत्रीकरण तथा रसायनिकरण हो रहा है जिसके परिणामस्वरूप धरती की उर्वराशक्ति का निरंतर ह्रास हो रहा है तथा ‘सेज’ के नाम पर उपजाऊ कृषि भूमि का सत्यानाश हो रहा है।
डॉ रविकांत बताते है कि मिट्टी पेड़-पौधों का पेट है। यह मिट्टी अनंत तथा असंख्य जीवों का आधार स्तंभ है। यही मिट्टी पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवधारियों के लिए वरदान है। इस मिट्टी के द्वारा ही हम सभी को भोजन, वस्त्र, ईंधन, खाद तथा लकड़ियां प्राप्त होती हैं। लगभग 5 से 10 इंच मिट्टी से ही हम कृषि कार्यों को किया करते हैं। एक लाख मिट्टी में लाखों सूक्ष्म जीवाणुओं का पाया जाना इस बात का द्योतक है कि वे कृषि को उर्वरा शक्ति प्रदान करते हैं, जो पौधों के आवश्यक तत्व यथा कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, जिंक, लोहा, सल्फर, मैग्निशियम, कॉपर, कैल्सियम, मैगनीज, बोरॉन, ब्डेनम, क्लोराइड, सोडियम, वैनेडियम, कोबाल्ट व सिलिकॉन इत्यादि तत्वों द्वारा मिट्टी से प्राप्त भोज्य पदार्थों से कृषि उपज में शक्ति का संचार होता है तथा अधिक अन्न उत्पादन होता है।
जैविक कृषि में खेत, जीव तथा जीवाशं का बहुत बड़ा महत्व है। जीवों के अवशेष से जो खाद बनती है। उसे जैविक खाद तथा उस पर आधारित कृषि को ‘जैविक कृषि’ कहा जाता है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश जहां कि अधिकांश जनता शाकाहारी है। अतः जैविक कृषि एवं गोपालन को व्यवसाय के रूप में अपनाया जा सकता है। आपका मानना है कि परंपरागत खेती या फसल चक्र ही वह प्रक्रिया है जिसको अपनाकर संपूर्ण भारतीयों को रोजगार, स्वावलंबन तथा कुटीर उद्योगों का विकास किया जा सकता है तथा इसके माध्यम से महात्मा गांधी का ‘रामराज्य’, जे.पी. का ‘चैखंभा राज्य’, विनोबा का विश्व ग्राम तथा राष्ट्रऋªषि दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानव’ एवं अन्त्योदय को दर्शाया जा सकता है।
युवा जोश से भरे डा. रविकांत ने बताया कि भारत उदय मिशन के अंतर्गत एक इंटरनेशनल रिसर्च सेंटर की स्थापना की गयी है जिसमें रिसर्च करने भारत के बाहर के वैज्ञानिक भी आते हैं। डॉ. रवि कांत बताते हैं कि वह अपना यह प्रयास धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश के बांदा, हमीरपुर, महोबा और आसपास के कई इलाकों में फैला रहे हंै। इन जिलों के लोगों को इसका फायदा भी मिल रहा है।
वह बताते हैं कि यह महात्मा गांधी ने भी कहा था कि भारत का वास्तविक विकास तो तभी संभव है जब भारत के गांव में खुशहाली हो और डॉ रविकांत इस काम को बखूबी कर रहे हैं। डा. रविकांत चाहते हैं कि भारत विकसित हों खासकर ग्रामीण भारत जो कि उसकी बुनियाद है। गौर करने वाली बात यह है कि डॉ. रविकांत को कही से कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है। मेरा मानना है कि यदि सरकार इस मिशन में थोड़ा बहुत सहयोग कर दे तो भारत उदय का यह जमींनी प्रयास और भी बेहतर बन सकता है।