लखनऊ। जिस उम्र में बच्चे लिखना-पढ़ना बस सीख रहे होते हैं, उस उम्र में लखनऊ का सबसे कम उम्र का बच्चा हाफिज बनने की राह पर हैं। महज साढ़े आठ साल की उम्र में अब्दुल्ला बिन अब्दुल समद को कुरान का एक-एक शब्द याद है, कुरान के सभी 30 चैप्टर और 604 पेज याद कर चुका लखनऊ का अब्दुल्ला सबसे कम उम्र का हाफिज बनने वाला हैं।
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साढ़े आठ साल की उम्र में लखनऊ के अब्दुल्ला ने कुरान-ए-पाक का पाठ मुकम्मल कर लिया। कुरान के सभी तीस पारों को उच्चारण सहित पूरा कराने में उनके उस्ताद हाफिज मुफ्ती अजहरुद्दीन का सहयोग रहा। कुरान का पाठ पूरा करने पर लखनऊ के फूलबाग मे स्थित रहमानिया मस्जिद व वज्जतुल इस्लाम मदरसे में दुआ का कार्यक्रम आयोजित हुआ, इसमें अब्दुल्ला बिन अब्दुल समद को बुजुर्गों और परिजनों ने दुआओं से नवाजा। वहीं बच्चे ने कुरान की सूरह फातिहा, सूरे अलिफ लाममीम और कुरान की आखिरी की दस सूरते पढ़कर सुनाया।
उनके पिता अब्दुल समद ने बताया कि यह उनके और उनकी बीवी और खानदान व रिश्तेदारों के लिए खुशी का मौका है। कुरान को किरत के साथ मुकम्मल कराने मे हाफिज मुफ्ती अजहरद्दीन साहब का भी भरपूर सहयोग रहा, फिलहाल अब्दुल्ला अभी लखनऊ के नूरुल इस्लाम स्कूल में कक्षा दो का छात्र है। वह अपने बेटे को दीनी और दुनियावी तालीम दिलवाएंगे। हालांकि दीनी तालीम पर उनका ज्यादा फोकस है आगे उन्होंने अपने बेटे अब्दुल्ला को आलिम और मुफ्ती बनाने का फैसला किया है।
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उनके उस्ताद मुफ्ती हाफिज अजहरद्दीन साहब ने बताया कि कुरान की तालीम हर मुसलमान के लिए जरूरी है क्योंकि कुरान एक किताब नहीं बल्कि दुनिया में जीने का तरीका है। अल्लाहताला ने अपनी उम्मत को कुरान को उठाने की वह ताकत दी है, जो बड़े बड़े पहाड़ों को भी नहीं मिली। जब कुरान नाजिल हुआ था तो पहाड़ भी लरज गए थे। हालांकि इतनी कम उम्र में कुरान को याद करना आसान नहीं होता। यही वजह है कि अब्दुल्लाह से जो भी मिलने आता है उसकी तारीफ ही करता है।