विविधता में एकता का भाव भारत में सदैव रहा है। भारतीय चिंतन में सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना की गई। वस्तुतः यह समरसता का ही विचार है। जिसमें उदार चरित्र को महत्व दिया गया। वसुधा को कुटम्ब माना गया। जब विविधता में एकता का मूलभाव कमजोर हुआ,तभी विदेशी आक्रांताओं ने लाभ उठाया। भारतीय संविधान के माध्यम से पुनः राष्ट्रीय एकता व समरसता को स्थापित किया गया। इस सन्दर्भ में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद लखनऊ महानगर इकाई द्वारा समरसता दिवस की पूर्व संध्या पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय ने कहा कि महापुरुषों की जयंती या पुण्य तिथि प्रेरणा लेने का कारक होता है। ज्ञान शील और एकता का यदि समाज में उदाहरण देखना है तो बाबा साहब से बेहतर उदाहरण और कोई नहीं हो सकता।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रोफेसर ए.पी. तिवारी ने विभिन्न आयामों जैसे कृषि,युद्ध,अर्थव्यवस्था समरसता एवं समाज शास्त्र जैसे विषयों पर बाबा साहब के दर्शन को बताया। बताया कि जीएसटी के अंतर्गत केंद्र और राज्य के बीच में वित्तीय वितरण होना चाहिए। केंद्र को कमजोर कर के राज्य को वित्तीय स्वायत्तता नहीं दी जा सकती। प्रो तिवारी ने यह भी बताया कि भारत एक अविनाशी तत्व है,भारत एक आत्मा है। बाबा साहब के समरसता के संदेश को प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए। लखनऊ विश्वविद्यालय विधि संकाय के असिस्टेंट प्रोफेसर वरुण ने स्वागत भाषण में संविधान की महत्वता को समझाया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. राकेश द्विवेदी ने कहा कि विद्यार्थी परिषद ने अपने स्थापना काल से ही समाज में जागरूकता एवं फैली कुरीतियों को समाप्त करने का प्रयास किया है विद्यार्थी परिषद अपने तीन राष्ट्रीय कार्यक्रम में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी की पुण्यतिथि को सामाजिक समरसता दिवस के रूप में मनाती है।
कार्यक्रम मे रक्तदान महादान विषय पर पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण कार्यक्रम किया गया। महानगर अध्यक्ष डॉ. मंजुला उपाध्याय ने कार्यक्रम में आए हुए सभी अतिथियों विद्यार्थियों शिक्षकों को आभार ज्ञापित किया। संयोजक डॉ. विभावरी सिंह, प्रांत कोषाध्यक्ष डॉ. शिवकुमार, डॉ. संजय बाजपाई, डॉ. दीपा द्विवेदी, डॉ. संजय, डॉ. प्रवीण सिंह महानगर मंत्री अभिमन्यु प्रताप सिंह, कामायनी, सृष्टि सिंह आदि शिक्षक एवं विद्यार्थी मौजूद मौजूद रहे।