Acharya Vinoba Bhave का जन्म 11 सितंबर, 1895 को हुआ था। आचार्य विनोबा तो आज इस दुनिया में नहीं है लेकिन समाज में भी योगदान के किस्से प्रचलित हैं। इसके चलते पिसावा में रहने वाले कुंवर महेंद्र सिंह ने दैनिक जागरण से एक बातचीत में उनके भूदान आंदोलन के बारे में विस्तार से बताया।
Acharya Vinoba Bhave निस्वार्थ भाव से करते थे
कुंवर महेंद्र सिंह का कहना है की आचार्य विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन 18 अप्रैल 1950 को शुरू किया था। इसके तहत वह जमींदारों, राजाओं व धनाढ्य परिवारों के पास जाकर उनसे जमीन दान करने को कहते थे। जिससे कि उस जमीन से गरीब आैर असहाय लोग उससे अपना जीवन बसर कर सकें। आचार्य विनोबा भावे के मन में अपने लिए तनिक भी लालच नहीं था। यह सब वे निस्वार्थ भाव से करते थे।
आप मुझे गोद ले लीजिए
कुंवर महेंद्र सिंह ने आचार्य विनोबा भावे का अलीगढ़ जिले के पिसावा स्टेट के राजा श्यौदान सिंह का किस्सा बताया जो कम ही लोगों को पता है। किस्सा कुछ इस तरह है की गांधी जी के प्रिय शिष्य आचार्य विनोबा भावे जब भूदान आंदोलन के तहत अलीगढ़ के पिसावा पहुंचे और वहां के दानशील राजा श्यौदान सिंह को सूचना भिजवार्इ। राजा ने जनसभा में आचार्य विनोबा भावे का शानदार स्वागत करते हुए उनके अलीगढ़ आने का कारण पूछा। इस पर विनोदा भावे ने कहा कि महाराज, आप मुझे गोद ले लीजिए।
यह सुनते ही जनसभा में लोग हंसने लगे लेकिन श्यौदान सिंह चुप रहे। वह समझ गए कि विनोबा की यह बात हल्की नहीं है। इस पर राजा ने कहा मुझे यह प्रस्ताव स्वीकार है और यह घोषणा करता हूं कि आपको विधिवत गोद लूंगा। यह सुनकर जनसभा में सन्नाटा पसर गया।
पिसावा के बेघर-निर्धनों के बीच
राजा की घोषणा के कुछ पल बाद ही विनोबा ने कहा कि पिताजी, अब आप मुझे अलग कर दीजिए। मैं आपका तीसरा पुत्र हूं। इसलिए आप मुझे मेरे हिस्से की भूमि के रूप में छठवा हिस्सा दे दीजिए। इसके बाद राजा श्यौदान सिंह ने 2000 बीघा जमीन आचार्य विनोबा भावे को देने का एेलान कर दिया। वहीं आचार्य विनोबा भावे ने इसके बाद पिसावा के बेघर-निर्धनों के बीच उस जमीन को बांट दिया था। वहीं विनोबा भावे के इस फैसले से राजा श्यौदान सिंह भी काफी खुश हुए थे। इसके बाद से वह भी गरीबों की मदद करने लगे थे।