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नवयुग में आयोजित हुआ आदि जगतगुरु शंकराचार्य व्याख्यान माला

लखनऊ। नवयुग कन्या महाविद्यालय तथा भारतीय भाषा समिति शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के संयुक्त तत्वाधान में आदि जगतगुरु शंकराचार्य व्याख्यान माला का आयोजन प्राचार्य प्रोफेसर मंजुला उपाध्याय की अध्यक्षता में तथा डॉ वन्दना द्विवेदी के संयोजकत्व में आयोजित किया गया।

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कार्यक्रम के दौरान मुख्य वक्ता डॉक्टर अनूप पति तिवारी काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के भारत अध्ययन केंद्र से तथा विशिष्ट वक्ता शंकर मार्गी लेखक विचारक रामबाबू पांडे और विद्या भारती उच्च शिक्षा के क्षेत्र संयोजक प्रोफेसर जयशंकर पांडे उपस्थित रहे।

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कार्यक्रम का प्रारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन के साथ प्रारंभ किया गया मंगलाचरण श्रेया श्रीवास्तव के द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्र, पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक पौधा और स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी भारत अध्ययन केंद्र के डॉक्टर अनूप पति तिवारी रहे।

नवयुग में आयोजित हुआ आदि जगतगुरु शंकराचार्य व्याख्यान माला

उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य के आविर्भाव से पूर्व भारत की वैदिक स्थिति विखंडित हो रही थी नास्तिकता का बहुत ही उद्धव हो रहा था तथा कर्मकांड प्रबल हो गया था। ऐसे में आचार शंकर का जो दर्शन था वह भारतीयों को एक नई दिशा प्रदान करने में बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हुआ। आचार्य शंकर समन्वय एवं मर्यादा के आचार्य हैं। उनका जीवन और कर्म भारतीय ऋषि परंपरा का ऐतिहासिक प्रमाण है।

शंकर निर्णय केवल शास्त्री आधार पर बल्कि सामाजिक स्तर पर देश को एक स्वतंत्रता में बांधने हेतु पूरे देश की यात्रा करते हुए देश के चारों कोनों पर चारों पीठों की स्थापना तथा द्वादश चारों पीठों की स्थापना तथा अखाड़े आदि की स्थापना किए थे।

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अखाड़े हमारे धर्म सैनिक हुआ करते थे और आवश्यकता पड़ने पर हमारे भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति की रक्षा करते थे।इसी के क्रम में दूसरे विशिष्ट वक्ता शंकर मार्गी रामबाबू पांडे ने अपने उद्बोधन में आचार्य शंकर के प्रारंभिक बाल्यावस्था से लेकर उनके जीवन दर्शन एवं उनके कृतियों पर तथा उनके दार्शनिक विचारों पर प्रकाश डाला।

विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर जयशंकर पांडे ने आचार्य शंकर एवं भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य में अपने विचारों को रखा कि आचार्य शंकर की जो ज्ञान परंपरा है, आज भी सभी के लिए अनुकरणीय है एवं वर्तमान समय में प्रासंगिक और उपादेय है।कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्बोधन तथा धन्यवाद ज्ञापन प्राचार्या प्रोफेसर मंजुला उपाध्याय द्वारा किया गया।

उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय भाषा समिति की इस तरह की पहल बहुत ही प्रशंसनीय है। यदि इस तरह के पहल नहीं होती तो हमारी आज के युवा वर्ग छात्र- छात्राएं आचार्य शंकर के जीवन दर्शन से परिचित नहीं हो पाते।

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21वीं शताब्दी के बहुलवादी संस्कृति को एक सूत्र में बाधने तथा तारतम्यता में बनाए रखने के लिए शंकराचार्य की अवदान को सनातन संस्कृति मेंसदैव याद किया जाएगा। कार्यक्रम का सफल संचालन एसोसिएट प्रोफेसर संस्कृत विभाग की डॉक्टर वंदना द्विवेदी के द्वारा किया गया।

इस अवसर पर महाविद्यालय की प्रोफेसर सृष्टि श्रीवास्तव, प्रोफेसर ऋचा शुक्ला, प्रोफेसर संगीता शुक्ला, प्रोफेसर शर्मिता नंदिनी, प्रोफेसर नीतू सिंह खेसारी, सीमा सरकार, डॉक्टर विनीत सिंह, डॉक्टर अंजुला कुमारी, नेहा पांडे, कुमारी, दीक्षा सहित छात्राएं एवं भारतीय शिक्षण मंडल के प्रांत संगठन मंत्री शिवेंद्र तिवारी तथा संगम बाजपेई, आकाश मिश्रा, विशाल पाठक, राजू मौर्य, नितेश कुमार आदि उपस्थित रहे।

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