चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने ही वाला था कि आखिरी के डेढ़ मिनट में इसरो का उससे सम्पर्क टूट गया. जिसके बाद वैज्ञानिक मायूस हो गए. जिस समय लैंडर का सम्पर्क टूटा वह चांद की सतह से केवल 2.1 किलोमीटर की दूरी पर था. उसके साथ किया हुआ, वह कहां व किस हालत में है इसके बारे में वैसे कोई जानकारी नहीं है. हालांकि ऑर्बिटर पर लगे अत्याधुनिक उपकरों से जल्द ही सभी सवालों के जवाब मिलने की उम्मीद है.
इसरो के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि अगले तीन दिनों में विक्रम कहां व किस हालत में है इसका पता चल सकता हैएक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा, ‘तीन दिनों में लैंडर विक्रम के मिलने की उम्मीद है. इसकी वजह है जिस जगह पर लैंडर से सम्पर्क टूटा है उस स्थान पहुंचने में ऑर्बिटर को तीन दिन का समय लगेगा. हमें लैंडिंग साइट का जानकारी है. आखिरी पलों में लैंडर अपने रास्ते से भटक गया था.‘
हाई रेजोल्यूशन तस्वीरों से लैंडर का लगाया जाएगा पता
उन्होंने आगे कहा, ‘ऑर्बिटर के तीन उपकरणों SAR (सिंथेटिक अपर्चर रेडार), IR स्पेक्ट्रोमीटर
व कैमरे की मदद से 10 x 10 किलोमीटर के इलाके को छानना होगा
. लैंडर विक्रम का पता लगाने के लिए हमें उस इलाके की हाई रेजोल्यूशन
फोटोज़ लेनी होंगी
.‘ वैज्ञानिकों से साफ किया कि यदि विक्रम ने क्रैश लैंडिंग की होगी
व उसके टुकड़े-टुकड़े हो गए होंगे तो उसके मिलने की
आसार बहुत ज्यादा कम है
.
वैज्ञानिकों ने बताया कि यदि उसके कंपोनेंट को नुकसान नहीं पहुंचा होगा तो हाई रेजोल्यूशन तस्वीरों के जरिए उसका पता लगाया जा सकता है. इसरो अध्यक्ष के सिवन का भी बोलना है कि अगले 14 दिनों तक लैंडर से सम्पर्क साधने की कोशिशें लगातार जारी रहेंगी. इसरो की टीम मिशन के कार्य में जुटी हुई है. देश को उम्मीद है कि 14 दिनों में कोई खुशखबरी मिल सकती है.
सात वर्ष तक कार्य करेगा ऑर्बिटर
इसरो का बोलना है कि चंद्रयान-2 के सटीक प्रक्षेपण व मिशन प्रबंधन की वजह से चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा ऑर्बिटर सात साल तक कार्य करता रहेगा. पहले की गई गणना में इसकी आयु एक साल आंकी जा रही थी. इसकी कारण है उसके पास बेहद ईंधन बचा हुआ है. ऑर्बिटर पर लगे उपकरणों के जरिए लैंडर विक्रम के मिलने की आसार है. साथ ही इसरो ने मिशन को 90 से 95 फीसदी तक पास बताया है.