लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील सिंह ने तीन नए काला कृषि कानून के 18 दिन पर आंदोलित किसानों को लेकर कहा है कि किसान आंदोलन ने केंद्र सरकार की बुनियाद हिला दी है। उसके फासीवादी दमन की धज्जियां उड़ा दी हैं सिंह ने कहा कि अमेरिका, विश्व व्यापार संगठन (WTO) और कारपोरेट पूंजीपतियों के दबाव में आरएसएस/भाजपा द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलित हैं।
इन कानूनों के कारण लाखों गरीब और छोटे किसानों की जमीन छिन जाएगी। इनके जरिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमसीपी) पर सरकारी खरीद समाप्त करने का रास्ता तैयार किया जा रहा है। राशन की दुकानों (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) की व्यवस्था की जगह बैंक खातों में सीधे पैसे जमा (ङीबीटी) करने के रास्ते से सरकार खाद्य सुरक्षा की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना चाहती है।
कृषि मंडियों के मुकाबले देशी-विदेशी कंपनियां छा जाएंगी। ये कंपनियां उन जिन्सों का ही उत्पादन करेंगी, जिनसे ज्यादा से ज्यादा मुनाफा हो। वे कृषि उत्पादों का विदेशों में निर्यात कर मुनाफा बटोरने में लगी रहेंगी, चाहे जनता भूखों मरे। खुले बाजार के नाम पर कालाबाजारी और जमाखोरी को इजाजत मिल जाएगी, खाद्यान्न महंगाई बेलगााम हो जाएगी।
श्री सिंह ने आगे कहा कि तीन नए कृषि कानून का इसका समाधान मंडी समितियों का सुधार है, न कि किसान को मंडी समितियों की जगह निजी कंपनियों (मगरमच्छों)के हवाले करना।फसल के समय कंपनियां अपने गोदाम भरेंगी, बाद में अधिक दाम पर बेचेंगी। इस तरह मंहगाई बढ़ेगी। यह सिर्फ किसानों के लिए ही नहीं, आम जनता के लिए भी खतरनाक है।