• बच्चों को कुपोषण से बचाता है छह माह के बाद सही ऊपरी आहार
• गर्भावस्था से ही पौष्टिक आहार की दी गई सलाह
औरैया। छह माह के बाद बच्चों को माँ के दूध के साथ-साथ ऊपरी आहार की भी ज़रूरत होती है। सही समय पर सही मात्रा में खाना देने से बच्चों में होने वाली कुपोषण की समस्या पर प्रभावी ढंग से काबू पाया जा सकता है। 6 से 8 माह तक बच्चों को एक से दो चम्मच मसला हुआ अर्धठोस आहार देना चाहिए, 8 माह से 1 वर्ष तक के बच्चे को आधी कटोरी आहार दिन में दो बार देना चाहिए जबकि 1 से 2 वर्ष के बच्चे को एक कटोरी आहार दिन में दो से तीन बार देना चाहिए।यह चर्चा मंगलवार को विकास खंड अछल्दा के ग्राम पंचायत औतों के आंगनबाड़ी केंद्र पर अन्नप्राशन (Annaprashan) उत्सव के दौरान हुई।
सर्वप्रथम किशोरी बालिका स्वर्णिका वंशिका मनस्वी रिद्धि ने स्तनपान जागरूकता रंगोली बनाई तत्पश्चात आंगनबाड़ी कार्यकत्री सुमन चतुर्वेदी ने राधिका को छह माह पूरा करने पर खीर खिलाकर अन्नप्राशन कराया। कार्यक्रम में आई महिलाओं और राधिका की मां को बताया कि बच्चे को जन्म से 6 माह तक केवल स्तनपान करवाएं और 6 माह पूर्ण होने पर ऊपरी आहार खिलाना प्रारंभ करें। ऊपरी आहार में गाढ़ी दाल दलिया मसले हुए फल अवश्य दें। दाल दलिया में एक छोटा चम्मच घी या सरसो का तेल गरम करके डालें। दो वर्ष तक ऊपरी आहार के साथ स्तनपान करवाएं। साथ में पांच वर्ष तक सम्पूर्ण टीकाकरण अवश्य करवाएं।
इसके साथ ही अन्नप्राशन कार्यक्रम के संबंध में उन्होंने बताया कि ऊपरी आहार से बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास तेजी से होता है। कहा कि धात्री महिलाओ को भी पूरक पोषाहार लेना चाहिए। इससे बच्चा कुपोषण से बच जाता है। उन्होंने बच्चों में होने वाली बीमारियों व उसके बचाव के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि मां के दूध के साथ पूरक आहार, माता के उचित आहार, खिलाने के तरीके, साफ-सफाई पर ध्यान आदि की जानकारी दी।
अन्नप्राशन संस्कार का महत्व
“अन्नाशनान्मातृगर्भे मलाशाद्यपि शुद्धयति” इसका अर्थ है कि माता के गर्भ में रहते हुए जातक में मलिन भोजन के जो दोष आते हैं उनके निदान व शिशु के सुपोषण हेतु शुद्ध भोजन करवाया जाना चाहिए। छह माह तक माता का दूध ही शिशु के लिये सबसे बेहतर भोजन होता है। इसके पश्चात उसे अन्न ग्रहण करवाना चाहिए।
इसलिए अन्नप्राशन संस्कार का बहुत अधिक महत्व है। शास्त्रों में भी अन्न को ही जीवन का प्राण बताया गया है। अन्न से ही मन का निर्माण होता है। अन्न का जीवन में बहुत अधिक महत्व है। कहा भी गया है कि “आहारशुद्धौ सत्वशुद्धिरू”। अन्न के महत्व को व्याख्यायित करने वाली एक कथा का वर्णन भी धार्मिक ग्रंथों में मिलती है।
रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर