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चिकेन पाक्स:  बचाव ही है बेहतर इलाज, प्रशिक्षित चिकित्सक से ही लें सलाह

 • माता समझ मरीज को घर में ही न डालें रखें, जरूर कराएं ईलाज

कानपुर। आज कल दिन और रात के तापमान में ज्यादा अंतर होने से चिकेन पॉक्स समेत कई मौसमी बीमारियों का खतरा बढ़ा हुआ है। इसकी चपेट में बच्चे, बड़े और बूढ़े सब आ रहे हैं। यह संक्रमण शारीर में सामान्यतः दो हफ्ते तक रहता है। हालांकि इसके बाद व्यक्ति ठीक हो जाता है।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आलोक रंजन ने बताया कि चिकेन पाक्स संक्रमित बीमारी है। इसके होने पर उस समय मरीज जिस-जिस स्थिति से गुजरता है। उसका ही इलाज कराना चाहिए। यदि मरीज को बुखार है तो उसका इलाज कराना चाहिए। उन्होंने साफ कहा कि चिकेन पाक्स को माता समझ इलाज में लापरवाही नहीं करनी चाहिये। ऐसी भूल से मरीज को और अधिक खतरा हो सकता है।

उप जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ जसबीर सिंह के अनुसार चिकन पॉक्स गर्मियों में होने वाली आम बीमारियों में से एक है जिसे आम भाषा में बड़ी माता भी कहा जाता है। जो की आम व्यक्ति के खाँसने , छींकने , त्वचा के संपर्क में आने से या गर्भवती से उसके बच्चे में फैलता है। इसकी शुरुअत शरीर पर लाल चकत्ते पड़ने से होती है जो धीरे-धीरे पानी से भरे फफोले बन जाते है। साथ ही पीड़ित व्यक्ति को हल्का बुखार भी आता है।

चिकेन पॉक्स

चिकन-पॉक्स के कुल मरीजों में से 90% छोटे बच्चे होते हैं। 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों को इस संक्रमण का सबसे अधिक खतरा होता है। इससे बचाव के लिए जन्म के 15 वें माह में वैरीसेला का टीका लगता है। सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली में यह टीका उपलब्ध नहीं है लेकिन प्राइवेट अस्पतालों में यह टीका लगाया जा सकता है। इससे इस बीमारी से जीवन भर बचाव संभव है। इसकी कीमत 1500 से 2500 रुपए है।

वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डा शिव कुमार ने बताया कि चिकेन पाक्स वैरीसेला जास्टर वाईरस से होता है। यह बीमारी बच्चों व बड़ों दोनो को होती है। बच्चों मे इसका फीसद आधिक होता है। सर्दी से गर्मी आने पर यह फैलती है। जिस व्यक्ति या बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, वही इसकी चपेट में आते है। इसमे तेज बुखार होता है। ग्रसित को समय पर इलाज न मिलने पर उसे दिमागी बुखार का खतरा हो सकता है।

ग्रसित होने पर यह करें

  • ग्रसित व्यक्ति को आराम करने दें।
  • उसे अन्य सदस्यों से दूर अलग  साफ-सुथरे कमरे में ठहराए ताकि दूसरे लोग ग्रसित न हो सके।
  • शरीर में पड़े दानों को फोड़ना नहीं   चाहिये। उन्हें अपने से फूटने का इंतजार करें।
  • ग्रसित व्यक्ति के बेड की चादर को साफ सुथरा रखें,  हो सके तो रोजाना धुले।
  • उन्हें साफ स्वच्छ धुले हुए कपड़े  ही पहनाए।
  • प्रशिक्षित चिकित्सक से ही सलाह व इलाज लें।
  • दाने फूटने पर उन्हें साफ व हल्के सूती कपड़े से सहलाएं।
  • गर्म तरल पेय पदार्थ का सेवन करें।

इनसे करें परहेज

  • इलाज के लिए झोलाछाप के चक्कर में ना पड़े।
  • बड़ी माता की भ्रांति में झाड़-फूंक कदापि न करायें।
  • ग्रसित व्यक्ति धूप में न निकलें ऐसा करने पर शरीर में जलन बढ़ेगी और खुजली भी होगी।
  • खुजली होने पर खुजलाने से बचें।

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर

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