लखनऊ। शहीद भगत सिंह के शहीद दिवस पर बुधवार को
ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरु नानक देव जी नाका हिण्डोला में मुख्य ग्रंथी ज्ञानी सुखदेव सिंह ने संगत की उपस्थिती में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के चरणों में देश की समृद्धि एवं अखण्डता की अरदास की।
इस अवसर पर दीवान की समप्ति के उपरान्त ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरु नानक देव जी लखनऊ के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि जब 26 अगस्त, 1930 को ब्रिटिश अदालत ने भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई। फाँसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई। इसके बाद भगत सिंह की फाँसी की माफी के लिए अपील दायर की गई यह सब कुछ भगत सिंह की इच्छा के खिलाफ हो रहा था क्योंकि भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ की जाए। कमेटी के प्रवक्ता सतपाल सिंह मीत ने बताया कि 23 मार्च 1931 को शाम को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे, कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा – ठहरिए!
पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।
फिर एक मिनट बाद बोले – ठीक है अब चलो।
फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला।
माय रँग दे बसन्ती चोला।।
महामंत्री हरमिन्दर सिंह टीटू ने कहा कि फाँसी के बाद कहीं कोई आन्दोलन न भड़क जाये इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किये फिर इसे बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गये जहाँ घी के बदले मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया गया। गाँव के लोगों ने आग जलती देखी तो करीब आए। इससे डरकर अंग्रेजों ने इनकी लाश टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंका और भाग गए। जब गाँव वाले पास आए तब उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ो कों एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया और भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु हमेशा के लिए अमर हो गयेरिपोर्ट-दयाशंकर चौधरी