किसी ने क्या खूब कहा है…… “लक्ष्य को पाने के जलती आग रखता हूँ, मन में इलाहाबाद और दिल में प्रयाग रखता हूँ” जो भी इलाहाबाद में अपने बहुमूल्य जीवनकाल के क्षण यहां व्यतीत किया है उनके सामने, मन में इलाहाबाद का नाम आते ही चारों ओर एक नई रोमांचकारी दुनिया का चित्रण विराजमान हो जाता है। यहां पर रहने वाले वास्तविक छात्र का सर्वांगीण विकास इस पवित्र स्थान पर होता है। इलाहाबाद में ज्ञान की नगरी, धर्म की नगरी, साहित्य की नगरी, राजनैतिक नर्सरी की नगरी, अधिकारियों की नगरी और लाजवाब बकैती की नगरी आदि समाहित है! गजब का जादू है इस शहर का जो दूर है इस शहर से वो दुबारा आना बसना चाहता है, जीना चाहता है और जो मौजूद है वो छोड़कर जाना नही चाहता।
वैसे जो छोड़कर जाते भी हैं वो कहीं भी रहे उनके दिल, मन के कोने में इलाहाबाद बसता है। कुछ ऐसा ही जुड़ाव, लगाव इलाहाबाद से एक IRS अधिकारी अंजनी पांडेय का है। इलाहाबाद के नैनी के रहने वाले अंजनी। इलाहाबाद से शिक्षा दीक्षा हासिल कर 2010 में भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में सेलेक्शन के बाद इलाहाबाद से दूर सूरत में जॉइंट कमिश्नर पद पर कार्यरत रहने के बावजूद इलाहाबाद से जुड़ाव और इलाहाबाद से जुड़ी यादों, अनुभव को सजीवता प्रदान करते हुए उसे अमर करने के उद्देश्य से एक लोकप्रिय किताब “इलाहाबाद ब्लूज ” की रचना की।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र कहीं भी रहे, उसका लगाव और अपनत्व अपने शहर से और इविवि से आजीवन जीवित रहता है। अपने भीतर धड़कते इलाहाबाद को अंजनी कुमार पांडेय ने अपनी किताब ‘इलाहाबाद ब्लूज’ में सजीवता प्रदान की है। इस किताब में एक शहर बसता है, और उसी के साथ एक घटना को सजीवता मिलती है।
एक घटना जो हम सब के जीवन में घटती है। वो घटना है कॉलेज, और कुछ लोगों के लिए सिविल परीक्षा की तैयारी। पूरी किताब किसी कॉलेज के मित्र से बातचीत सी अपनी लगती है। किताब की पहली ही पंक्ति है- ‘इलाहाबाद एक शहर नहीं, बल्कि एक रोमांटिक कविता है, एक जीवन शैली है, एक दर्शन है।’ अंजनी कुमार पांडेय यूं तो भारतीय राजस्व सेवा के अफसर हैं। लेकिन ये किताब बताती है कि वो अच्छे लेखक भी हैं।
‘इलाहाबाद ब्लूज’ में अंजनी कुमार पांडेय ने अपने बचपन से लेकर अब तक के संस्मरणों को पिरोया है। सिविल लाइन का इडली-डोसा, विश्वविद्यालय की आत्मा यूनिवर्सिटी रोड, बकइती का अड्डा ठाकुर की दुकान। हर इलाहाबादी का इंतजार माघ मेला। मनोकामना मंदिर के महादेव। सबसे अलबेले लेटे हुए हनुमान जी। गौतम-संगीत-दर्पण सिनेमा। लक्ष्मी टाकीज!
‘इलाहाबाद ब्लूज’ तो जैसे इलाहाबाद की परिक्रमा करवा देता है। डीबीसी यानी दाल-भात-चोखा का जिक्र वाकई इलाहाबाद के उन दिनों में पहुंचा देता है। इलाहाबाद में अगर किसी ने नौजवानी में ‘गुनाहों का देवता’ नहीं पढ़ी, तो समझो कुछ नहीं पढ़ा। इलाहाबाद में रहने वाला हर नौजवान खुद को ‘चंदर’ समझता है और अपनी ‘सुधा’ की तलाश करता है। अंजनी कुमार पांडेय में भी ‘चंदर’ बसता था और एक ‘सुधा’ भी थी। जिसके बारे में लिखते हैं-‘मुझे उसकी और उसे मेरी आदत पड़ गई थी। मैं उसका इंतजार था और वह मेरी चाहत। वह चमकती थी गुलाब की पंखुड़ियों की तरह और मैं फरफराता था अमलतास के फूलों जैसा।’
इलाहाबाद से कहानी पहुंचती है दिल्ली, जहां सिविल सर्विसेज की तैयारी और संघर्ष की दास्तान है। जहां पहली बार ‘कमीना’ शब्द को चरितार्थ करने वाले प्रॉपर्टी के दलाल और मकान मालिक से भेंट हुई। ‘इलाहाबाद ब्लूज’ 132 पेज की किताब है। भाषा बहुत ही सहज है और तथ्य बहुत ही रोचक। किताब कब खत्म हो जाती है, पता ही नहीं चलता। ये किताब अब अमेज़न के बेस्टसेलर लिस्ट में है।आधुनिक हिंदी साहित्य वापिस अपनी जगह बना रहा है। लोगों द्वारा पढ़ा-पढ़ाया जा रहा है। ऐसी क़िताबों को श्रेय जाता है, जो आम पाठक को अपनी तरफ खींच रही हैं। इस किताब में आप बीती का सजीव चित्रण शब्दों के माध्यम से किया गया है। प्रतियोगी छात्रों के लिए यह किताब प्रेरणास्रोत की भूमिका निभा रही है।
“चलते फिरते हुए महताब दिखाएँगे तुम्हें,
हमसे मिलना कभी ‘इलाहाबाद’ दिखायेंगे तुम्हें”
वास्तव में यह किताब आपको इलाहाबाद की आत्मा से रुबरु कराएगी इलाहाबाद के प्रति आपके नजरिए को परिवर्तित करने का काम करेगी।लेखक IRS अंजनी कुमार पांडेय को ढेरो साधुवाद आपकी लेखनी में मां सरस्वती का आशीर्वाद आजीवन बना रहे।