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भाई दूज का उपहार

माँ इस बार मैं आपकी नहीं सुनूँगा, दीदी की शादी को तीन साल हो गए! इस बार भाईदूज मैं दीदी के घर ही मनाऊँगा। “तुम हर बार मुझे ये कहकर रोक देती हो की बेटियों के घर बार-बार नहीं जाना चाहिए, कह कर रोहित संजना के घर जाने की तैयारी करने लगा। इस बार कल्याणी ने भी नहीं रोका, बोली ठीक है हो आओ बहुत दिनों से संजू भी नहीं आई उसे भी अच्छा लगेगा।

जी माँ दी का घर दूर कहाँ, महज़ दो घंटे का रास्ता तो है सुबह जाऊँगा रात को लौट आऊँगा। कल्याणी ने बेटी और दामाद के लिए कुछ तोहफ़े और मिठाईयाँ दी साथ में, वो लेकर रोहित निकल गया। अचानक जाकर खुशी-खुशी बहन को सरप्राइज़ देना चाहता था तो बिना कोई खबर दिए ही चल निकला।

रास्ते में रोहित को संजना के साथ बिताए बचपन के एक-एक पल याद आ रहे थे। सिर्फ़ दो साल ही बड़ी थी दीदी, पर माँ जितना खयाल रखती थी। मेरी हर छोटी मोटी जरूरत का खयाल दी ने रखा, परिक्षा के दिनों में जब रात भर मैं पढाई करता था तो दी उठ-उठ कर चाय बना देती थी, नास्ता बना देती थी।

मेरी गलती खुद के सर लेकर माँ से डांट भी खाती थी। उसके ससुराल चले जाने के बाद तो मानों मेरा जीवन नीरस और शांत हो गया है। बहुत प्यारी है मेरी दी भगवान उसे हंमेशा खुश रखना। यूँ खयालों में दो घंटे कहाँ बीत गए पता नहीं चला बस से उतरकर ऑटो ले ली संजना का घर ज़्यादा दूर नहीं था। ऑटो वाले को पैसे देकर रोहित संजना के घर पहूँचा। जो खुद सरप्राइज़ देने वाला था वो खुद सरप्राइज़ हो गया। घर की दहलीज़ पर कदम रखते ही कदमों में रोती हुई संजना को पाया। संजना के पति ने संजना के गाल पर ज़ोरदार थप्पड़ रशीद कर दी ये कहते हुए की दो साल से तुझे बोल रहा हूँ तेरी माँ को बोल मुझे बाइक के लिए 50 हज़ार दें, पर तू है की तुझे मेरी कोई परवाह ही नहीं। तेरी माँ क्या उपर सब साथ में लेकर जाएगी? एक ही तो दामाद हूँ माँ-बेटी से इतना भी नहीं होता मेरे लिए।

रोहित अपनी दीदी को इस हालत में देखकर हैरान रह गया। विशाल का ये रुप भी था उसे विश्वास नहीं हुआ। विशाल ने ना रोहित का आदर सत्कार किया, ना एक नज़र देखा भी बस गुस्से में तिलमिलाता घर से बाहर निकल गया। और संजना इतना कुछ भुगत रही थी उसने आज तक कभी भनक तक नहीं पड़ने दी अपनी बहन की हालत देखकर रोहित भीतर से हिल गया। रोहित ने संजना को प्यार से उठाया और चलो दीदी घर चलो कहकर आँसू पौंछे। संजना रोहित से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी और बोली भाई तू चला जा मेरी किस्मत में यही सब लिखा है, विशाल का स्वभाव बहुत खराब है आए दिन हाथ उठाना और ताने देना उसकी आदत बन गई है। अब मुझे इन सबकी आदत हो गई है।

पर एक भाई अपनी बहन को इस हालत में कैसे देख सकता। प्यार से बहन को उठाकर गले लगाया और आँसू पौंछते बोला, दीदी अभी तुम्हारा भाई ज़िंदा है अभी के अभी अपना सामान पैक करो और चलो मेरे साथ, इस नर्क में तड़पते जीने की कोई जरूरत नहीं। संजना ने बहुत समझाया पर रोहित ने अपनी कसम देकर अपनी बहन को मना लिया। दोनों भाई-बहन घर आ गए और अपनी माँ को सारी बात बताई। एक विधवा माँ के उपर आसमान टूट पड़ा, बेटी को इस हालत में देखकर कुछ सूझ नहीं रहा क्या करें तो माँ ने कहा मेरी सोने की दो चूड़ी पड़ी है बेचकर दामाद जी को दे दो ताकि संजना का संसार बना रहे। पर रोहित ने साफ़ मना कर दिया और बोला माँ आज अगर उनकी मांग के सामने झुक गए तो कल को कुछ और मांगेंगे, कब तक हम सब बेच बेचकर उनका घर भरते रहेंगे।

“अगर उनको ये रिश्ता बचाना है तो दीदी को सम्मान से रखना होगा” हमारी हैसियत को समझते नाजायज़ मांग को वापस लेना होगा या तो तलाक देकर इस रिश्ते को खत्म करना होगा। मैं ना दहेज़ देने के हक में हूँ, ना लेने के! मैं अभी पहले पुलिस स्टेशन जाकर दीदी को प्रताड़ित करने के लिए और दहेज की मांग करने के जुर्म में जीजू के ख़िलाफ़ फ़रियाद लिखवाने जा रहा हूँ, और महेश चाचा का बेटा विकास जो वकील है उससे मिलकर आगे क्या करना है उसके लिए मशवरा करने जाता हूँ।

संजना और माँ ने बहुत समझाया कि ऐसा करने से रिश्ता बिगड़ सकता है पर रोहित आज के विचारों वाला युवा था तो अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने से खुद को कैसे रोकता। सारी कारवाई हो गई, वकील की नोटिस और पुलिस का समन्स मिलते ही दामाद जी कि सारी अकड़ निकल गई। दूसरे ही दिन बीवी संजना को घर ले जाने दौड़े-दौड़े चले आए और गलती की माफ़ी मांगते शर्मिंदा होते इतना ही बोले, मेरी मति मारी गई थी जो संजना जैसी गृहलक्ष्मी को प्रताड़ित करके नगद नारायण के मोह में अपना ही संसार उजाड़ने चला था।

“चलो संजना घर मुझे कुछ नहीं चाहिए तुम हो तो सबकुछ है”। और रोहित को भी भाई कि तरह गले लगाकर माफ़ी मांगते इतना ही बोला तू छोटा होकर भी कितना समझदार है, मैं वचन देता हूँ आज से संजना को पूरे मान-सम्मान के साथ रखूँगा। संजना के चेहरे पर खुशियों के लाखों दीप जल उठे। आज एक भाई ने भाईदूज के दिन बहन का संसार बचाकर एक बेहतरीन तोहफ़ा जो दिया अपनी बहन को। सभी ने साथ मिलकर सही मायने में खुशी-खुशी भाईदूज मनाई और संजना अपने भाई को ढ़ेरों आशिर्वाद देते पति के साथ अपने घर सिधार गई।

     भावना ठाकर ‘भावु’

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