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Tag Archives: भावना ठाकर ‘भावु’

लेट लतीफ़

अंजली आज सुबह से आकाश का सिर खा रही थी। सुनिए अब तो सारे रिश्तेदारों में आपकी लेट लतीफ़ वाली इमेज चर्चा का विषय बन गई है। कहीं भी जाना होता है तो हर बार हमारी फ़ैमिली ही आपकी वजह से कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद ही पहुँचती है। कई ...

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मंज़िल को हमेशा ही ढूंढना होगा

हर इंसान मुँह में सोने की चम्मच लेकर नहीं जन्मता। जन्म से लेकर मृत्यु तक के सफ़र में खुद को प्रस्थापित करने के लिए जूझना पड़ता है। जीवन संघर्षों का बिहड़ जंगल है और हर किसी के लिए सफलता सबसे अहम होती है। सफ़लता ज़िंदगी के किसी मोड़ पर खड़ी ...

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कामकाजी महिला से रत्ती भर कमतर नहीं गृहिणी

“कहते है लोग वक्त ही वक्त है उसके पास, खा-पीकर टीवी ही देखती रहती है कहाँ कोई काम खास, करीब से कोई देखें तो पहचान पाए, मरने का भी वक्त नहीं होता एक गृहिणी के पास” एक आम और मामूली सा शब्द है ‘गृहिणी’ यानि की गृह को संभालने वाली ...

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सहो मत आत्मनिर्भर बनो

क्या स्त्रियों के उपर हुए शारीरिक अत्याचार ही घरेलू हिंसा कहलाता है? मानसिक प्रताड़ना का क्या? जो एक होनहार महिला को अवसाद का भोग बना देता है। लगता है कुछ स्त्रियाँ प्रताड़ना सहने के लिए ही पैदा हुई होती है। ऐसी स्त्रियों को पता भी नहीं होता घरेलू हिंसा और ...

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लग्नेत्तर संबंध कितना जायज़

आजकल समाज में एक हवा चल रही है (Extra marital affairs) यानी कि लग्नेत्तर संबंध। बहुत बार हम पढ़ते है, सुनते है लग्नेत्तर संबंधों के बारे में, पर इसके पीछे का कारण क्या हो सकता है इसका अंदाज़ा नहीं लगा सकते। ऐसे रिश्तों में क्या एक दूसरे के प्रति शिद्दत ...

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भाई दूज का उपहार

माँ इस बार मैं आपकी नहीं सुनूँगा, दीदी की शादी को तीन साल हो गए! इस बार भाईदूज मैं दीदी के घर ही मनाऊँगा। “तुम हर बार मुझे ये कहकर रोक देती हो की बेटियों के घर बार-बार नहीं जाना चाहिए, कह कर रोहित संजना के घर जाने की तैयारी ...

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बहू को बेटी सा प्यार देकर बुढ़ापा सुरक्षित कर लीजिए

बूढ़े माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बेटा नहीं…. एक अच्छी संस्कारी बहु होती है। हर माँ-बाप को बेटे की शादी के लिए मन में चिंता रहती है। आजकल बेटी के लिए अच्छा ससुराल देखना जितना जरूरी है; उतना ही बेटे के लिए #संस्कारी और सुलझी हुई लड़की बहू के रुप ...

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पुरानी चीज़ों का सुइस्तमाल करें

दिवाली नज़दीक आ रही है, तो ज़ाहिर सी बात है सबके घर के कोने-कोने की साफ़ सफ़ाई होगी। खासकर स्टोर रूम और अलमारियों की। पर देखने वाली बात ये है की पिछले दस सालों में कुछ चीज़ों का इस्तमाल नहीं हुआ होता फिर भी हम, “कभी काम आएगी सोचकर वापस ...

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बजट में खेलिए ज़िंदगी की रेस आसान लगेगी

परिवार चलाना कोई बच्चों का खेल नहीं, लोहे के चने चबाने जितना कठिन काम है। “संसार के सारे मर्दों के जज़्बे को सौ सलाम”। एक इंसान बीवी-बच्चों और परिवार को तमाम सुख-सुविधा देने के लिए रीढ़ झुकने तक ताज़िंदगी पसीने में नहाता है। उस मेहनत के बदले मिली पगार को ...

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क्यूँ न बच्चों को संस्कृति से परिचय करवाया जाए

आजकल की पीढ़ी भौतिकवाद और आधुनिकता को अपनाते हुए अपने मूलत: संस्कार, संस्कृति और परंपरा की अवहेलना कर रही है। नई पीढ़ी को परंपराएं चोंचले लगती है। बड़े बुज़ुर्गों का आशिर्वाद लेना, त्योहार मनाना, या पारंपरिक तरीके से कोई रस्म निभाना आजकल के बच्चों को फालतू बातें लगती है। त्योहारों ...

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