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राजनीति की बिसात पर भाजपा और संघ ने बनाई कसी हुई रणनीति, इस बार मुस्लिम मतों को अपने पाले में लाने की कोशिश

       दया शंकर चौधरी

अयोध्या में दीपोत्सव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड और उज्जैन की यात्रा कर जहाँ एक ओर सनातनी धर्मावलंबियों को सार्थक संदेश दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम मतदाताओं पर भी भाजपा पैनी नजर बनाये हुए है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा के बीच मुसलमानों के मुद्दे पर हाल के दिनों में बेहतरीन तालमेल देखने को मिल रहा है। दोनों ही संगठनों के नेता लगातार मुसलमानों को साधने की कोशिश करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं।

संघ प्रमुख मोहन भागवत मुसलमानों के बिना हिंदुस्तान के पूरा न होने की बात करते हैं, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा की हैदराबाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी में एलान कर चुके हैं कि पार्टी का मिशन मुसलमानों के करीब तक पहुंचने का होना चाहिए। कश्मीर के नेता गुलाम अली खटाना को राज्यसभा में भेजना भी संघ परिवार की मुसलमानों से करीबी बढ़ाने की इसी सोच की एक मिसाल है। आइए समझते हैं कि संघ और भाजपा में मुसलमानों के प्रति आ रहे इस बदलाव का कारण क्या है? यह अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम बिरादरी के बीच भारत की छवि बेहतर करने की कोशिश है या इसके जरिए संघ किसी बड़े बदलाव की योजना बना रहा है।

भागवत ने बोला था, हिंदू और मुसलमानों का डीएनए एक है

हालांकि, ऐसा नहीं है कि भाजपा और आरएसएस ने मुसलमानों के करीब पहुंचने की यह कोई पहली कोशिश की हो। दोनों ही संगठन लंबे समय से #हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते रहे हैं। भाजपा में तो इसके स्थापना काल से ही कई मुस्लिम नेता इसके सर्वोच्च नेताओं में शुमार रहे हैं। सिकंदर बख्त की लोकप्रियता आम जनता के बीच भले ही कम रही हो, लेकिन पार्टी संगठन में उनकी अहमियत को सभी ने स्वीकार किया है।

संघ ने भी अनेक मौके पर यह साफ किया है कि उसे उन मुसलमानों से कोई परेशानी नहीं है जो भारत को अपनी मातृभूमि मानते हैं और यहां की संस्कृति को अपना समझते हैं। यह क्रम गुरु गोलवलकर ने शुरू किया था, जो #संघ प्रमुख मोहन भागवत के 2018 के उस बयान में भी दिखाई पड़ा, जब उन्होंने मुसलमानों के बिना हिंदुस्तान अधूरा होने की बात कही। उन्होंने भी यह बताने की कोशिश की कि हिंदू और मुसलमानों का डीएनए एक है, और दोनों ही इस देश के मूल निवासी हैं। इस देश की संस्कृति को बचाए रखना भी दोनों की ही जिम्मेदारी है।

 

बावजूद इसके सच्चाई यह रही है कि दोनों संगठनों से मुस्लिम समुदाय की दूरी बनी रही। इसके लिए भाजपा का अपना राजनीतिक आधार बढ़ाने की तिकड़मों को ज्यादा जिम्मेदार बताया जाता है। हाल के दिनों में जब कर्नाटक में दोनों समुदायों के बीच हिजाब के मुद्दे पर तनाव बढ़ा तब भी इसे इसी दृष्टि से जोड़कर देखा गया। लेकिन माना जा रहा है कि संघ और भाजपा अब इस दौर से आगे की राजनीति करना चाहते हैं जिसके लिए वे मुसलमान समुदाय को भी अपने साथ साधना चाहते हैं। मुस्लिम समुदाय तक पहुंचने की कोशिशों को इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा सकता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि #पीएम नरेंद्र मोदी भारत को दुनिया में बड़ी आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभारने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे भी यह जानते हैं कि छोटे-छोटे कारोबार से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती दे रहे मुस्लिम समुदाय को साथ लिए बिना यह सपना पूरा नहीं हो सकता। आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए पड़ोसी देशों से बेहतर संबंध होना भी जरूरी है।

पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश से एक दीर्घकालिक बेहतर संबंध तभी स्थापित हो सकता है, जब भारत के अंदर मुसलमानों की स्थिति बेहतर होगी और उनका सरकार के साथ अविश्वास के भ्रम को दूर किया जाये।

भारत का अंतरराष्ट्रीय व्यापार भी सबसे ज्यादा मुसलमान देशों के साथ ही होता है। इस व्यापार में भी अपना महत्त्व बनाए रखने के लिए भारत को मुसलमानों का साथ चाहिए। ऐसा माना जा रहा है कि मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर में सफलतापूर्वक चुनाव कराकर इसे अपनी बड़ी राजनीतिक उपलब्धि साबित करना चाहती है।

यदि केंद्र सरकार कश्मीर में सफलतापूर्वक चुनाव कराने और शांति स्थापित करने में सफल हो जाती है, तो इससे पीएम नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि बहुत बड़ी हो जाएगी। इससे न केवल पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर एजेंडे को बेनकाब किया जा सकेगा, बल्कि उसकी घाटी में आतंकवाद आधारित राजनीति को भी गहरी चोट लगेगी। देश का एक तबका कश्मीर में अशांति के लिए नेहरू की नीतियों को जिम्मेदार मानता रहा है। यदि केंद्र सरकार कश्मीर में शांतिपूर्वक चुनाव कराने में सफल हो जाती है, तो इससे भाजपा घरेलू स्तर पर कांग्रेस को हमेशा के लिए घेरने में भी सफल हो जाएगी।

वह जानती है कि मुस्लिम बहुल कश्मीर में सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न कराने के लिए मुसलमानों को भरोसे में लेना जरूरी होगा। इससे भाजपा को भविष्य की राजनीति के लिए वह इतिहास पुरुष भी मिल जाएगा, जिसकी उसे ‘नेहरू से तुलना करने के लिए’ तलाश है।

कांग्रेस के वार को कमजोर करने की कवायद

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के जरिए रोज संघ और भाजपा की कथित सांप्रदायिक राजनीति पर हमला बोल रहे हैं। संघ के प्रतीक हाफ खाकी पैंट में आग लगने का संकेत देकर कांग्रेस ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं। इससे कहीं न कहीं संघ की छवि पर असर पड़ता है। लेकिन यदि मुसलमानों का एक तबका भाजपा और संघ के समर्थन में आ जाता है, तो कांग्रेस का यह वार कमजोर हो जाएगा। यह भी एक कारण है कि संघ और भाजपा मुसलमानों को अपने साथ जोड़कर राहुल गांधी के इस वार को कमजोर करना चाहते हैं।

वोट शेयर बढ़ाने के लिए चाहिए मुसलमानों का साथ

दरअसल, संघ और #भाजपा की पूरी राजनीतिक कोशिश भी अब तक उसे राष्ट्रीय चुनावों में 37.36 फीसदी से ज्यादा वोट दिलाने में असफल साबित हुई है। गुजरात, मध्यप्रदेश और दिल्ली जैसे अनेक राज्यों में यह पहले ही 51 फीसदी की मनोवैज्ञानिक सीमा को पार कर चुका है। केरल जैसे राज्यों में भाजपा की पूरी कोशिश के बाद भी अब तक यह एक सीमा से ज्यादा नहीं बढ़ पाई है। भाजपा को मिले कुल वोट में सबसे बड़ा वोट बैंक हिंदू मतदाताओं का ही है।

देश के कुल मतदाताओं का लगभग 67 फीसदी वोट बैंक अभी भी उसकी पहुंच से बाहर रहा है। यदि महंगाई-बेरोजगारी जैसे किसी बड़े मुद्दे के साथ विपक्ष इस गैर भाजपाई वोट बैंक को एकजुट करने में सफल हो जाता है तो इससे 2024 में नरेंद्र मोदी की राह में मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। यदि भाजपा को लंबे समय तक सत्ता में रहना है, तो उसे अपना आधार वोट बैंक बढ़ाना होगा। लेकिन चूंकि हिंदू मतदाताओं के बीच अब उसकी लोकप्रियता एक बिंदु पर आकर ठहर गई है, यह अतिरिक्त वोट बैंक मुस्लिम मतदाताओं के बीच से ही हासिल हो सकता है। मुसलमान मतदाताओं के बीच बेहतर पहुंच बनाने की संघ परिवार की कोशिशों को इस चुनावी रणनीति से भी जोड़कर देखा जा सकता है।

भाजपा के लिए सार्थक है मुसलमानों का रुझान  

पारंपरिक राजनीति में यही माना जाता रहा है कि #मुसलमान मतदाता भारतीय जनता पार्टी को वोट नहीं करता। लेकिन पिछले कई चुनावों में भाजपा का यह विश्वास बढ़ता गया है कि वह मुसलमान मतदाताओं को भी अपने साथ ला सकती है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि कम संख्या में ही सही, भाजपा को मुसलमानों का समर्थन मिल रहा है। यदि उसे मुसलमानों का वोट न मिल रहा होता तो उसकी कई उन सीटों पर जीत असंभव थी जहां मुस्लिम मतदाता अकेले दम पर निर्णायक भूमिका में हैं। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा सरकार ने तीन तलाक जैसे मामलों का निपटारा कर मुस्लिम मतदाताओं का दिल जीता है। समाज के पढ़े-लिखे मुसलमानों का एक तबका भी इसके समर्थन में भाजपा के साथ खड़ा हुआ है।

सरकार के आंकड़े बताते हैं कि केंद्र सरकार की लाभकारी योजनाओं (राशन-पीएम आवास, उज्जवला योजना और किसान सम्मान निधि) का सबसे ज्यादा लाभ पिछड़ा होने के कारण सबसे ज्यादा मुसलमानों को ही मिला है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि इन्हीं गरीब मुसलमानों ने भाजपा का चुपचाप समर्थन किया, जिससे 2017-2019 के चुनावों में भाजपा को निर्णायक समर्थन मिल सका। अपने अगले कदम के रूप में पसमांदा मुसलमानों तक पहुंच बनाकर भाजपा इसी आधार को मजबूत करना चाहती है।

मुस्लिम नेताओं से भागवत की मुलाकात

हाल ही में संघ प्रमुख #मोहनभागवत ने कुछ मुस्लिम नेताओं से व्यक्तिगत स्तर पर मुलाकात की है। भागवत से मिलने वाले नेताओं में दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, जमीरुद्दीन शाह, सईद शेरवानी और शाहिद सिद्दिकी शामिल थे। इस मुलाकात में भी दोनों समुदायों के बीच मतभेद को कम करने के लिए संभावित उपायों पर चर्चा की गई। इसके पहले मुसलमानों के एक संगठन जमीअत-उलेमा-ए-हिंद के नेता मौलाना अरशद मदनी ने भी अगस्त 2019 को दिल्ली के झंडेवालान स्थिति संघ मुख्यालय पहुंचकर मोहन भागवत से मुलाकात की थी। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के नेता इंद्रेश कुमार की पहल पर हुई इस मुलाकात की भी बहुत चर्चा हुई थी। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अयोध्या में राम मंदिर पर सर्वोच्च न्यायालय पर फैसला (9 नवंबर 2019) आने के पहले दोनों शीर्ष नेताओं की इस मुलाकात को फैसला आने के बाद दोनों समुदायों में शांति बनाए ऱखने की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण माना गया था। चर्चा है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत आने वाले दिनों में कश्मीर के कुछ मुस्लिम नेताओं से भी मुलाकात कर सकते हैं। इसे कश्मीर में चुनावी राजनीति की दोबारा शुरुआत के बाद घाटी में शांति बनाए रखने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। ये नेता कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को घाटी में दोबारा सक्रिय न होने और कश्मीरी युवाओं को नए भारत से जोड़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

भाजपा की नजर पसमांदा मुसलमानों पर

जैसा कि भाजपा विभिन्न राज्यों के चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी कर रही है, पार्टी अल्पसंख्यक वोटों को मजबूत करने की विपक्ष की संभावनाओं को कम करने के लिए पसमांदा समुदाय को अपने पाले में लाना चाहती है।

हैदराबाद में हाल ही में संपन्न भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से पसमांदा मुसलमानों जैसे अल्पसंख्यक समुदायों के वंचित और दलित वर्गों तक पहुंचने का आग्रह किया। सूत्रों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और लोकसभा उपचुनाव में मुस्लिम बहुल इलाकों रामपुर और आजमगढ़ में पसमांदा मुसलमानों ने पर्याप्त संख्या में वोट देकर बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई थी।

कौन हैं पसमांदा मुसलमान

#पसमांदा शब्द फारसी से लिया गया है और इसका अर्थ है “पीछे छोड़ दिया”। पसमांदा मुसलमानों के नेताओं के अनुसार, समुदाय भारत के कुल मुसलमानों का 85 प्रतिशत है। बहुसंख्यक होने के बावजूद पसमांदा मुस्लिम समुदाय सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है। समुदाय में दलित (अर्जल) और पिछड़े मुस्लिम (अजलाफ) आबादी शामिल है। बाकी 15 फीसदी मुसलमानों को उच्च वर्ग या अशरफ माना जाता है।

पसमांदा मुसलमानों के भीतर जातियां आमतौर पर उनके पेशे से तय होती हैं। पसमांदा में मलिक (तेली), मोमिन अंसार (बुनकर), कुरैशी (कसाई), मंसूरी (रजाई और गद्दे बनाने वाले), इदरीसी (दर्जी), सैफी (लोहार), सलमानी (नाई) और कपड़े धोने वाले शामिल हैं।

पसमांदा मुसलमानों में अन्य दलों पर ऐतिहासिक भेदभाव की कसक

पसमांदा मुसलमानों ने दावा किया है कि उच्च वर्ग के मुसलमानों या अशरफों द्वारा उनके साथ ऐतिहासिक भेदभाव किया गया है। पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने की पीएम मोदी की अपील के पीछे संभावित कारण यह भी हो सकता है कि वे उच्च वर्ग के मुसलमानों की तुलना में आर्थिक रूप से कमजोर हैं। अपने अलग-अलग पेशों के बावजूद, पसमांदा मुसलमानों की आर्थिक स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है। पसमांदा मुसलमानों के बीच अपनी पहुंच को स्पष्ट करते हुए, भाजपा ने उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में मोहसिन रजा के बजाय दानिश अंसारी को मंत्री पद की पेशकश की है, जो पसमांदा समुदाय से संबंधित हैं।

इसके अलावा, जानकारों का कहना है कि भाजपा सांसद और विधायक गरीबों के लिए केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं के बारे में पसमांदा समुदाय को संवाद करने और सूचित करने के लिए ‘स्नेह यात्रा’ निकालेंगे। बता दें कि बीपी मंडल की आरक्षण रिपोर्ट, रंगनाथ मिश्रा की अनुसूचित जाति रिपोर्ट और मुस्लिम समुदाय पर राजिंदर सच्चर की रिपोर्ट मुस्लिम समुदाय के आरक्षण की स्थिति, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति में सुधार का सुझाव देती है।

मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण शुरू किया गया था। इसमें से 79 जातियां मुस्लिम समुदाय से थीं, लगभग सभी पसमांदा समुदाय से संबंधित थीं। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना ​​है कि मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री जीवन सुरक्षा योजना आदि पसमांदा समुदाय को समाज से जोड़ने में सबसे कारगर साबित होंगी। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा अपने बारे में गलत धारणाओं को दूर करने और पीएम मोदी की “सबका साथ, सबका विकास, और सबका विश्वास” स्लोगन को आगे बढ़ाने के लिए इस समुदाय के साथ संवाद करना चाहती है।

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