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पीएम मोदी की सर्व धर्म समभाव की नीति को आगे बढ़ाने पर काम कर रही है बीजेपी

लखनऊ के एक कार्यक्रम में एक खास नारा लगा है, ‘ना दूरी है ना खाई है, मोदी हमारा भाई है!’ ये नारा उत्तर प्रदेश के 100 दरगाहों से आए 200 सूफी लोगों ने लगाया है. नारा यह बताने के लिए काफी है कि पीएम मोदी का संकल्प ‘सबका साथ सबका विकास’ जमीन पर दिखता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि देश का विकास तभी संभव है जब समाज के लोग आपसी भाईचारे के साथ रहें और धर्म, संप्रदाय और जाति कोई भी हो जब तक इसे मुख्यधारा में नहीं जोड़ा जाएगा समाज का उत्थान संभव नहीं है. यही वजह है कि पीएम मोदी की नीतियों को बढ़ाते हुए बीजेपी सर्व धर्म समभाव को बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है.

हैदराबाद में हुई बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पीएम मोदी ने अपने संबोधन में पार्टी से पसमांदा मुसलमानों के उत्थान के लिए काम करने को कहा तो उसके पीछे छिपी मंशा साफ दिखती है कि पीएम मोदी किस तरह समाज के दबे, कुचले, पिछड़ोंं को आगे लाने के लिए सतत प्रयासरत रहते हैं.

जब पीएम मोदी ने कहा कि पार्टी को पसमांदा मुस्लिमों को मुख्यधारा और उनके उत्थान के लिए काम करना है, तो उऩके आलोचकों ने सवाल खड़े कर दिए कि आखिर पीएम मोदी का ये ह्रदय परिवर्तन क्यों हुआ. क्या ये मुस्लिमों में पार्टी की अपना वोट बैंक तलाशने की कोशिश नहीं है. लेकिन पीएम मोदी के पसमांदा को जोड़ने के पीछे की मंशा को समझा गया तो आलोचकों के मुंह पर भी ताला लग गया. क्या मुस्लिम का एक वर्ग जो पिछड़ा हुआ है उसकी बात नहीं होनी चाहिए. आखिर पीएम मोदी ने जिस पसमांदा मुसलमानों की बात की है वो कौन हैं. आखिर इसे राजनीति से क्यों जोड़ा जा रहा है.

पसमांदा का हो विकास
पसमांदा फारसी का शब्द है, जिसका अर्थ है वो जो पीछे छूट गए. साधारण शब्दों में वैसे मुसलमान जो कौम के दूसरे वर्गों की तुलना में तरक्की की दौड़ में पीछे छूट गए, उन्हें पसमांदा कहते हैं. उनके पीछे रहने की वजहों में से एक बड़ा कारण जाति व्यवस्था बताई जाती है. जातिगत जनगणना नहीं होने के बाद इनको लेकर किसी तरह का कोई आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है कि पसमांदा समुदाय की संख्या कुल मुस्लिम जनसंख्या में कितनी है. लेकिन 1931 की जनगणना के आधार पर जिसमें अंतिम बार जनगणना में जाति को भी गिना गया था, पसमांदा समाज से जुड़े लोगों का दावा है कि ये संख्या 80-85 फ़ीसद तक होनी चाहिए. नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) के अनुसार मुस्लिमों में ओबीसी जनसंख्या 40.7 फीसद है जो कि देश के कुल पिछड़े समुदाय की तादाद का 15.7 प्रतिशत है. सच्चर कमीशन ने कहा है कि सरकार की ओर से जो लाभ उन्हें मिलने चाहिए थे वो उन तक नहीं पहुंच पा रहे. क्योंकि जहां हिंदू पिछड़ों-दलितों को आरक्षण का लाभ है वहीं ये फायदा मुस्लिम आबादी को नहीं मिल रहा है.

सूफी को भी मिले उचित अधिकार
पीएम मोदी र बीजेपी की कोशिश ना केवल पसमांदा मुस्लिम बल्कि सूफी समाज के लोगों को भी मुख्यधारा में जोड़ने की है. BJP के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी का कहना है कि पीएम मोदी सूफियों को भारतीय परंपरा का एक जरूरी हिस्सा मानते हैं. सूफी आम लोगों के बीच रहते थे, वे लोगों को धर्म, जाति, पंथ और विश्वास के अलग-अलग होने पर भी बराबरी की शिक्षा देते है. पीएम मोदी चाहते हैं कि सूफी लोग उनके दृष्टिकोण और सरकार की कल्याणकारी नीतियों के बारे में लोगों को जागरूक करें.

सूफी मत को मानने वालों मुस्लिम समुदाय के अलावा बाकी धर्मों के लोग भी शामिल हैं, लेकिन उत्तर भारत में मुस्लिम सबसे ज्यादा हैं. Pew research 2011 की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर भारत के 37 फीसदी मुसलमान खुद को सूफी मानते हैं. सूफी समाज के विकास और उत्थान और उनकी स्थिति को लेकर पीएम मोदी ने मार्च, 2016 में दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय सूफी सम्मेलन का आयोजन करवाया था. इस सम्मेलन में 20 मुल्कों के 200 से ज्यादा सूफी स्कॉलर शामिल हुए थे. पीएम मोदी ने उस सम्मेलन में कहा था, ‘इस्लाम अमन का पैगाम देता है, सूफीज्म उसकी आवाज है. अल्लाह के 99 नाम हैं, इनमें से किसी का भी मतलब हिंसा नहीं है.’ मोदी ने कहा था, ‘दुनिया को हिंसा और आंतक की लंबी होती छाया ने घेर रखा है. ऐसे अंधेरे माहौल में आप उम्मीद का नूर हो. मिस्र और पश्चिम एशिया में अपने उदय के बाद से ही सूफीज्म ने पूरी दुनिया में शांति और मानवता का मैसेज दिया है. सूफी लोगों के लिए खुदा की सेवा का मतलब मानवता की सेवा है.’ हजरत निजामुद्दीन औलिया का हवाला देते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि अल्लाह उन्हें प्यार करता है जो इंसानियत से प्यार करते हैं.

प्रधानमंत्री बनने के बाद सभी धर्मों, सभी जाति, सभी पंथ और सम्प्रदाय के लिए पीएम मोदी का विशेष लगाव रहा है. सर्वधर्म के विकास के लिए पीएम मोदी लगातार लगे रहते हैं. पीएम मोदी का मकसद सभी धर्मों को साथ लेकर चलना था. पीएम मोदी का ना केवल हिंदू धर्म बल्कि ईसाई, बौद्ध, सिख, जैन जैसे धर्मों से खास लगाव रहा है. यही वजह है कि लाख आलोचनाओं के बावजूद पीएम मोदी मुस्लिम समुदाय के पिछड़े लोगों के उत्थान के लिए सतत प्रयासरत हैं

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