बम्बई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने कहा है कि कोरोना वायरस को रोकने के लिए लगे लॉकडाउन के कारण देश में व्याप्त वर्तमान असाधारण स्थिति में काम नहीं-वेतन नहीं के सिद्धांत को लागू नहीं किया जा सकता है.
न्यायमूर्ति आरवी घुगे ने औरंगाबाद के तुलजाभवानी मंदिर संस्थान ट्रस्ट को निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करें कि उसके सभी ठेका मजदूर, जो महामारी के मद्देनजर मंदिरों और पूजा स्थलों के बंद होने के कारण वहां काम करने में असमर्थ हैं, उन्हें 2020 के मई महीने तक पूरी मजदूरी का भुगतान किया जाए.
अदालत ठेका मजदूर संघ राष्ट्रीय श्रमिक आघाड़ी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दावा किया गया कि लॉकडाउन के बावजूद, मजदूर संघ के सदस्यों ने तुलजाभवानी मंदिर संस्थान में सुरक्षा गार्ड के तौर पर तथा अन्य काम करने की इच्छा व्यक्त की. दो महीनों से मजदूरों को भुगतान की राशि कम दी गई.
याचिका के अनुसार, मंदिर ट्रस्ट ने हालांकि लॉकडाउन के कारण उन्हें अपने काम करने की अनुमति नहीं दी. उसमें बताया गया कि इस वर्ष मार्च और अप्रैल के महीनों के लिए ठेकेदारों द्वारा मजदूरों को किए गए भुगतान की राशि जनवरी और फरवरी में किए गए भुगतान से कम थी.
याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि उस्मानाबाद के जिलाधिकारी तुलजाभवानी मंदिर संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं और तहसीलदार इसके प्रबंधक हैं. श्रमिकों की दुर्दशा के प्रति असंवेदनशील नहीं हो सकते.
न्यायमूर्ति घुगे ने कहा, प्रथम दृष्टया, मुझे लगता है कि इस तरह की असाधारण परिस्थितियों में काम नहीं-वेतन नहीं का सिद्धांत लागू नहीं किया जा सकता है. अदालत ऐसे श्रमिकों की दुर्दशा के प्रति असंवेदनशील नहीं हो सकती है, जो दुर्भाग्य से कोविड-19 महामारी के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं.
अदालत ने ट्रस्ट के अध्यक्ष के तौर पर उस्मानाबाद के जिलाधिकारी को इस वर्ष मार्च, अप्रैल और मई के महीनों तक ठेका मजदूरों को पूरी मजदूरी देने का निर्देश दिया है. अदालत ने कहा कि अगले आदेश तक काम नहीं-वेतन नहीं का सिद्धांत लागू नहीं किया जाएगा. मामले की अगली सुनवाई नौ जून को निर्धारित की गई है.