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समुदाय में जागरूकता लाएं- उपेक्षित बीमारियों पर काबू पाएं

  • नेगलेक्टेड ट्रापिकल डिजीज डे (30 जनवरी) पर विशेष
  • उपेक्षित बीमारियां रोगी बनाने के साथ परिवार को आर्थिक रूप से कमजोर भी बनाती हैं
  • चिकित्सक व जनता का इन बीमारियों के प्रति संवेदनशील होना जरूरी

कानपुर। फाइलेरिया, कालाजार, चिकनगुनिया, कुष्ठ रोग जैसी उपेक्षित बीमारियों (नेगलेक्टेड ट्रापिकल डिजीज) को खत्म करने को लेकर स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से दृढ़संकल्प है। समुदाय को भी इन बीमारियों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए ही हर साल 30 जनवरी को नेगलेक्टेड ट्रापिकल डिजीज डे मनाया जाता है। यह बीमारियां किसी इंसान को रोगी बनाने के साथ-साथ परिवार को आर्थिक रूप से कमजोर भी बना देती हैं।

ट्रापिकल बीमारियों के सम्बन्ध में संचारी रोगों के नोडल अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ एके मिश्रा के मुताबिक यह बीमारियां वायरस, बैक्टीरिया, पैरासाइट, फंगस और टाक्सिन से होती हैं। यह बीमारियां उपेक्षित जनता के बीच ही पाई जाती हैं, इसीलिए यह उपेक्षित बीमारियां होती हैं। उन्होंने बताया कि इन बीमारियों के प्रति विभाग के अलावा समुदाय भी जागरूक नहीं रहा है। समुदाय के स्तर पर अगर किसी मरीज को हल्के लक्षण भी दिखें तो फौरन पास के सरकारी अस्पताल में दिखाएं, वह चाहे परिवार का सदस्य हो या आस-पास का। आगे बढ़कर की गई यही मदद इन बीमारियों को काबू करने में सहायक बनेंगी।

सतर्कता बरतें- बीमारियों से बचें : जिला मलेरिया अधिकारी एके सिंह का कहना है कि इनमें से अधिकतर बीमारियाँ मच्छरों के काटने से होती हैं, इसलिए मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए घर व आस-पास साफ-सफाई रखें, जलजमाव न होने दें। सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल करें, पूरी आस्तीन के कपड़े पहनें। इसके प्रति जनजागरूकता को बढ़ावा देकर भी इन बीमारियों से बचा जा सकता है।

एके सिंह के मुताबिक हम समय समय पर फाइलेरिया का एमडीए व आईडीए राउंड चलाते हैं, जिसमें स्वास्थ्य कर्मियों ने घर-घर जाकर लोगों को अपने सामने दवा खिलाते हैं।

उन्होंने कहा कि एनटीडी पर समुदाय में भी जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। समुदाय की जागरूकता उसे और उनके जैसों को इस बीमारी से बचा सकती है। मामूली लक्षण देखें तो फौरन पास के सरकारी अस्पताल ले जाएं।

क्या कहते हैं आँकड़े : ग्लोबल बर्डन आफ डिज़ीज़ स्टडी की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की 16 उपेक्षित बीमारियों में से 11 भारत में बहुतायत में पाई जाती हैं यानि इन 11 बीमारियों के सबसे ज्यादा और सबसे बिगड़े केस अपने देश में हैं। रिपोर्ट बताती है कि भारत में लिम्फैटिक फाइलेरिया के 87 लाख केस हैं जो दुनिया का 29 प्रतिशत है। इसी तरह कालाजार के देश में 13530 केस हैं जो दुनिया का 45 प्रतिशत है। कुष्ठ रोग के 187730 केस हैं जो दुनिया का 36 फीसदी है। रैबीज के 4370 केस हैं जो विश्व का 33 प्रतिशत है।

उपेक्षित बीमारियां : फाइलेरिया, कालाजार, कुष्ठ रोग, चिकनगुनिया, डेंगू, रैबीज, स्कैबीज, हुकवार्म, एसकैरियासिज।

जो गलती मुझसे हुई -वह कोई और न करे, फाइलेरिया से सुरक्षित बनें

कानपुर के ब्लॉक कल्याणपुर के ग्राम सचेंडी के 60 वर्षीय राम स्वरुप अब हर किसी से यही कहते हैं कि जो गलती मुझसे हुई, वह कोई और न करे और फाइलेरिया जैसी जीवन को मृत समान बनाने वाली बीमारी से अपने को सुरक्षित बनाएं। रामस्वरूप १२ वीं पास है तथा पान मसाला की गुमटी से अपना जीवन यापन करते है! परिवार में ४ सदस्य है।

रामस्वररूप बताते हैं 6 साल पहले दाया पैर में अचानक सूजन आ गई थी! तभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भौती में दिखा दिया था तभी डॉक्टर ने फाइलेरिया बताया था तथा ३० गोली दी थी! उस दवा से हम बिल्कुल ठीक हो गए थे! फिर दवा छोड़ दिया। कुछ सप्ताह पहले फिर से पैर में पुन सूजन आ गई! अबकी बार बुखार भी बहुत तेज आया था! उठना बैठना मुश्किल हो गया था! सर्दी भी बहुत लग रही थी पर इस बार मेडिकल स्टोर से दवा ले ली! दवा से बुखार तो ठीक हो गया परन्तु सूजन और दर्द में आराम नहीं मिला! फिर भी मेडिकल स्टोर से दवा लेते रहे।

10 दिन बाद मेरा पेट फूल गया तो कानपुर में २ दिन प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती रहे! डॉ. ने बताया की लीवर ख़राब हो गया है! एडीमा की समस्या हो गई थी! फिर 10 दिन बाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भौती गये वह डॉ. ने देखा और ३० गोली दे दी! डॉ. ने ३ टाइम खाने को बताया था! जो राम स्वरुप ने खा ली! मीटिंग में राम स्वरुप ने बताया की अब हमे कोई समस्या नहीं है! हमारा पैर पहले की तरह ही हो गया है! अब पैर की सूजन लगभग खत्म हो गई है। अब उनके यहां जो भी आता है उसे रामस्वरूप यही बताते हैं कि फाइलेरिया की दवा खाएं और जिंदगी को नरक होने से बचाएं।

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर

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