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इन मंदिरों में भाई-बहन को साथ करनी चाहिए पूजा, भैया दूज के दिन दर्शन करना होता है शुभ

दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस और समापन भाई दूज पर होता है। पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व का समापन होने जा रहा है। इस साल भाई दूज 3 नवंबर को मनाया जा रहा है। नाम से ही स्पष्ट है कि ये पर्व भाई बहन के रिश्ते को मजबूत बनाने का त्योहार है।

साल में दो बार भाई दूज मनाई जाती है। एक होली के बाद और दूसरी दीपावली के बाद। ये पर्व रक्षाबंधन के जैसा ही होता है। हालांकि इसे मनाने का तरीका कुछ अलग होता है। इसमें रक्षाबंधन की तरह भाई की कलाई पर राखी नहीं बांधी जाती, बल्कि मस्तक पर तिलक लगाकर आरती उतारी जाती है। इस मौके पर बहनें चौक बनाकर पूजा करती हैं। हालांकि देश में कई ऐसे मंदिर हैं जहां बहन और भाई साथ में पूजा करने जा सकते हैं। भाई दूज के मौके पर इन मंदिरों में दर्शन करने का विशेष लाभ मिल सकता है। रक्षाबंधन और भाई दूज के मौके पर यहां काफी भीड़ भी होती है।

इस लेख में उन पवित्र मंदिरों के बारे में बताया जा रहा है, जहां हर भाई बहन को दर्शन और पूजा करने जाना चाहिए।

मथुरा का यमुना धर्मराज मंदिर

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में एक मंदिर स्थित है जो कि भाई-बहन को समर्पित है। इस मंदिर में मृत्यु के देवता यमराज जी और उनकी बहन यमुना माता विराजमान हैं। मथुरा स्थित घाट पर बने इस मंदिर में यमराज जी और यमुना जी की खास पूजा होती है। कहते हैं कि भाई और बहन को यहां यमुना नदी में एकसाथ डुबकी लगाकर स्नान करना चाहिए और मंदिर में साथ दर्शन करने चाहिए। इससे दोनों के रिश्ते की डोर मजबूत होती है और मनोकामना पूर्ण होती है।

भैया बहिनी गांव, बिहार

बिहार राज्य के सिवान जिले में भाई-बहन का खास मंदिर है। मंदिर महाराजगंज अनुमंडल मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूर भीखा बांध के पास स्थित है। यहां तक कि इस स्थान का नाम भी भैया बहिनी गांव है। मंदिर का इतिहास 500 साल से अधिक पुराना बताया जाता है, जहां सदियों से भाई-बहन की पूजा की जाती है। कथा प्रचलित हैं कि एक भाई-बहन ने इसी गांव में जिस स्थान पर समाधि ली थी, वहां दो वटवृक्ष निकल आएं हैं, जिनकी जड़ों का पता किसी को नहीं है। मान्यता है कि भाई-बहन यहां वटवृक्ष की परिक्रमा करने आते हैं।

बिजनौर में भाई-बहन का मंदिर

बिजनौर में चूड़ियाखेड़ा के जंगल में भाई-बहन का एक प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि सतयुग में एक भाई अपनी बहन को ससुराल से पैदल लेकर लौट रहा था, इस दौरान डाकुओं ने दोनों को रोककर महिला संग बदसलूकी और अभद्र व्यवहार किया। भाई-बहन ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की। भाई बहन पत्थर की प्रतिमा में परिवर्तित हो गए। आज भी उनकी प्रतिमा देवी देवताओं के रूप में विराजमान है।

उत्तराखंड का बंसी नारायण मंदिर

उत्तराखंड में स्थित बंसी नारायण के कपाट साल में एक ही बार खुलते हैं। हालांकि अगर आप घूमने जा रहे हैं तो इस मंदिर को घूम आएं। वंशीनारायण का यह चमत्कारी और अनोखा मंदिर चमोली जिले में स्थित है। मान्यता है कि भगवान विष्णु वामन अवतार से मुक्त होने के बाद सबसे पहले यहां प्रकट हुए थे। इस मंदिर में बहन अपने भाई के माथे पर तिलक कर सकती है।

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