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अयोध्या की परिक्रमा करने से कष्टों का होता है नाश, पाप से मिलती मुक्ति

अयोध्या। सप्तपुरियों में श्रेष्ठ राम नगरी अयोध्या में कार्तिक माह के अक्षय नवमी को चौदह कोसी व देवोत्थानी एकादशी को पंचकोसी परिक्रमा होती है। कार्तिक मास की शुरुआत होते ही हजारों भक्त परिक्रमा करते हैं। नवमी को देश विभिन्न कोने कोने से लाखों श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं। लाखों श्रद्धालु सरयू सलिला में स्नान कर भगवान की आराधना वा राम नाम के भक्ति में लीन होकर नंगे पैरों से अयोध्या की परिक्रमा करते हैं।

अयोध्या की परिक्रमा करने से कष्टों का होता है नाश, पाप से मिलती मुक्ति

चौदह कोसी परिक्रमा अयोध्या की सरयू सलिला के तट से शुरू होकर आसपास बसे कई गांव के मार्गों से गुजरता है और श्रद्धालु मार्गों की कठिनाइयों की बिना किसी परवाह के भगवान के भक्ति में चलते रहते हैं जबकि इन मार्गो पर नंगे पैर चलना कष्टकारी रहता है। रास्ते में पड़े गिट्टियों व उसके छोटे छोटे टुकड़े कांटों की तरह पैर में चुभते हैं।

श्रद्धालु सिर्फ अपनी आस्था में राम नाम जप राम नाम जयकारों के साथ चलते रहते हैं। चौदह कोसी परिक्रमा लगभग 42 किलोमीटर की परिधि में की जाती है। 24 घंटे समय रहता है। अनवरत चलते रहने कुछ श्रद्धालु आठ घंटे में भी परिक्रमा पूरी कर लेते हैं। कुछ परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु 12 घंटे से अधिक समय चलते हैं उम्र दराज़ बुजुर्गों को और समय लग जाता है। इन मार्गों पर श्रद्धालु लगातार चलते रहते हैं।

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कुछ श्रद्धालु सरयू में पहले स्नान करने के बाद परिक्रमा प्रारंभ करते हैं। ज्यादातर परिक्रमा पूरी होने के बाद सरयू मे स्नान दान करने बाद विभिन्न मंदिरों दर्शन पूजन करते हैं। परिक्रमा का इतिहास बेहद पुराना है। भगवान प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि है।

अयोध्या परिक्रमा सभी तीर्थ स्थानों की होती है भगवान जहां स्वयं अवतार लिए हो उस स्थान पर परिक्रमा अनंत काल से चल रही है। चौदह कोसी की परिक्रमा करने से करोड़ों जन्म जन्मांतर का पाप नष्ट हो जाते हैं परिक्रमा करने की प्रथा बहुत ही प्राचीन है। यह अनादि काल से चल रही है।

अयोध्या की परिक्रमा करने से कष्टों का होता है नाश, पाप से मिलती मुक्ति

साधु संतो के अनुसार तल, अतल, वितल ,सुतातल ,ब्रह्मलोक, जल लोक, स्वर्ग लोक आदि लोक हैं जिस की परिक्रमा कर हमें पुन्य फल की प्राप्ति होती है। चौदह लोको में हमें सिर्फ स्वर्ग लोक की प्राप्ति हो तथा परमात्मा के धाम की प्राप्ति हो जहां जाने पर हमारे सभी कष्ट का नाश हो जाए इसलिए हम परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा पूरी होने पर सरयू सलिला में स्नान दान करते हैं। विभिन्न मंदिरों दर्शन पूजन करते हैं।

स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा श्रध्दालुओं के सुविधाएं उपलब्ध कराया जाता है। जिसमें खान पान से लेकर जलपान व पानी चाय के जगह जगह स्टाल लगाये जाते हैं। दवाएँ भी जगह स्वयंसेवी संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा स्टाल लगाकर वितरित की जाती है। प्रशासन द्वारा सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किया जाता है। बार 9 नवम्बर को सायं 6 बजकर 40 मिनट से प्रारंभ होकर 10 नवम्बर को सायं 4 बजकर 44 मिनट तक होगी।

रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह 

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