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30 साल में 18% तक बढ़ गए इस जानलेवा समस्या के मामले, ये एक आदत सबसे ज्यादा हानिकारक

हृदय रोगों को दुनियाभर में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है, हर साल लाखों लोगों की इससे मौत हो जाती है। पर क्या आप जानते हैं कि हृदय रोग और हार्ट अटैक (Heart disease and heart attack) की ही तरह स्ट्रोक का जोखिम भी वैश्विक स्तर पर बढ़ता जा रहा है। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि विश्व स्तर पर युवा वयस्कों में स्ट्रोक की घटनाएं बढ़ रही हैं।

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30 साल में 18% तक बढ़ गए इस जानलेवा समस्या के मामले, ये एक आदत सबसे ज्यादा हानिकारक

स्ट्रोक को ब्रेन स्ट्रोक के नाम से भी जाना जाता है। ये समस्या तब होती है जब कोई चीज मस्तिष्क के हिस्से में रक्त की आपूर्ति को अवरुद्ध करने लगती है या जब मस्तिष्क में रक्त वाहिकाएं किसी कारण से फट जाती हैं।

इसी से संबंधित अध्ययनों के विश्लेषण के अनुसार, पिछले 30 वर्षों में स्ट्रोक जैसी न्यूरोलॉजिकल स्थितियों से पीड़ित या मरने वाले लोगों की संख्या में 18 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई हुई है। लैंसेट न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित यह शोध काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि न्यूरोलॉजिकल स्थितियों का स्वास्थ्य बोझ पहले की तुलना में कहीं अधिक हो गया है।स्ट्रोक के जोखिमों की रोकथाम और उपचार के बारे में जागरूकता बढ़ाने और जीवित बचे लोगों के लिए बेहतर देखभाल और सहायता सुनिश्चित कराने के उद्देश्य से हर साल 29 अक्तूबर को विश्व स्ट्रोक दिवस (World Stroke Day) मनाया जाता है।

स्ट्रोक के बारे में जानना जरूरी

स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, स्ट्रोक किसी को भी हो सकता है। युवा-बुजुर्ग सभी लोगों को इसके जोखिमों को लेकर सावधान रहने की आवश्यकता है। स्ट्रोक मुख्यरूप से दो प्रकार के होते हैं।

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इस्केमिक स्ट्रोक- मस्तिष्क में अवरुद्ध धमनियों के कारण होता है।

रक्तस्रावी स्ट्रोक (हेमोरेजिक स्ट्रोक) मस्तिष्क में रक्त वाहिका के लीक होने या फटने के कारण होता है। लाइफस्टाइल और आहार में गड़बड़ी को स्ट्रोक के प्रमुख जोखिम कारकों में से एक माना जाता है।

क्या है बढ़ते स्ट्रोक की वजह

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा और हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया जैसी स्थितियां स्ट्रोक के जोखिमों को बढ़ाने वाली हो सकती हैं। इसी को लेकर किए गए एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि धूम्रपान के कारण युवा आबादी स्ट्रोक का अधिक शिकार हो रही है। इतना ही नहीं सेकेंड हैंड स्मोकिंग के कारण भी इसका जोखिम बढ़ता देखा जा रहा है।

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