देश में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए केंद्र सरकार, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में पराली जलाने की समस्या के स्थायी समाधान के लिए नीति बना रही है। जिसमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया गया है। इसे लेकर कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने शुक्रवार को राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया कि आइसीएआर के सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक हुई है।
पराली जलाने की समस्या से छुटकारा पाने के लिए बनाई गई नीति में एक समिति का गठन कर दिया गया है। ये समिति लगभग एक-दो महीने में अपनी रिपोर्ट देगी।
इस समस्या पर रुपाला ने कहा कि पराली जलाने के एवज में नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा देने की फिलहाल कोई योजना नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान अगले फसल की बुआई से पहले खेत खाली करने के लिए पराली जलाते है।
जिसमें सरकार उन्हें फसलों की विविधता के बारे में प्रशिक्षित करने के लिए योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने 1,151 करोड़ रुपये की मशीनें किसानों को पराली प्रबंधन के लिए दी है। वहीं 55,000 मशीनें तीन राज्यों के किसानों को दी गई है।
पराली जलाने से मिट्टी की उत्पादक क्षमता कम होने की जानकारी देते हुए रुपाला ने कहा कि एक टन धान की पराली में लगभग 505 किग्रा नाइट्रोजन, 2.3 किग्रा फॉस्फोरस पेंटॉक्साइड, 25 किग्रा पोटेशियम ऑक्साइड, 1.2 किग्रा सल्फर, 50 से 70 फीसदी सूक्ष्य पोशक तत्व और 400 किग्रा कार्बन नष्ट होता है। इसके साथ ही मिट्टी के तापमान, पीएच, नमी, ये सब मिट्टी की क्षमता को प्रभावित करती है।