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फाइलेरिया उन्मूलन के लिए पिंडरा के सीएचओ को मिला प्रशिक्षण

• हाथीपांव ग्रसित पांच मरीजों को प्रदान की गई एमएमडीपी किट

वाराणसी। फाइलेरिया (हाथीपांव) उन्मूलन कार्यक्रम के लिए जिले के सभी आयुष्मान भारत-हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर को सुदृढ़ किया जा रहा है। इसी क्रम में मंगलवार को पिंडरा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) को प्रशिक्षण दिया गया। साथ ही फाइलेरिया हाथीपांव के पाँच मरीजों को रुग्णता प्रबंधन व दिव्यांग्ता रोकथाम (एमएमडीपी) किट प्रदान की गई।

फाइलेरिया हाथीपांव

यह कार्यक्रम मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी के निर्देशन में आयोजित हुआ। इस मौके पर डिप्टी सीएमओ डॉ एचसी मौर्य, प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ राहुल सिंह और फाइलेरिया नियंत्रण इकाई प्रभारी व बायोलोजिस्ट डॉ अमित कुमार सिंह ने सभी 19 सीएचओ को फाइलेरिया (हाथ-पैरों में सूजन और अंडकोषों में सूजन) के कारण, लक्षण, पहचान, जांच, उपचार व बचाव आदि के बारे में विस्तार से बताया।

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फाइलेरिया (हाथीपांव) की सभी ग्रेडिंग (हाथ-पैरों में सूजन व घाव की स्थिति) के बारे में जानकारी दी। इसके साथ ही नाइट ब्लड सर्वे (एनबीएस) और एमएमडीपी किट को हाथीपांव ग्रसित रोगियों के उपयोग के बारे में बताया। इस दौरान सीएचओ से कहा गया कि वह हर माह की 15 तारीख को मनाए जाने वाले एकीकृत निक्षय दिवस पर फाइलेरिया और कालाजार रोगियों की जानकारी ई-कवच पोर्टल पर अनिवार्य रूप से फीड करें। इसके अलावा अन्य वेक्टर जनित रोगों के बारे में भी प्रशिक्षण दिया गया।

फाइलेरिया हाथीपांव

डॉ अमित कुमार सिंह ने बताया कि फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत सीएचओ को फाइलेरिया और कालाजार के नए मरीजों को खोजने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। उन्होंने बताया कि फाइलेरिया मच्छर जनित रोग है। यह मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होता है। इसके संक्रमण से लिम्फोडिमा (हाथ, पैरों और स्तन में सूजन) और हाइड्रोशील (अंडकोषों में सूजन) रोग होता है।

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यह न सिर्फ व्यक्ति को दिव्यांग बना देती है बल्कि इस वजह से मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। शुरू में डॉक्टर की सलाह पर दवा का सेवन किया जाए तो बीमारी को बढ़ने से रोक सकते हैं। इसके अलावा नाइट ब्लड सर्वे में लोगों के ब्लड का सैंपल लेकर फाइलेरिया संक्रमण का पता किया जाता है। इसके परजीवी यानि माइक्रो फाइलेरिया रात में ही सक्रिय होतेहैं। इसमें 20 साल से अधिक आयु की महिलाओं एवं पुरुषों का सैंपल लिया जाता है।

फाइलेरिया हाथीपांव

सैंपल लेकर रक्त पट्टिका बनाईं जाती हैं। फाइलेरिया प्रभावित अंगों की साफ-सफाई और दवा का सेवन नियमित रूप से करना जरूरी है। सीफार संस्था की ओर से बनाए जा रहे फाइलेरिया नेटवर्क के सदस्य समुदाय को जागरूक कर फाइलेरिया से जुड़े मिथक व भ्रांतियों को दूर कर रहे हैं। सीएचओ मनोज मेहरा व दिनेश ने बताया कि प्रशिक्षण में फाइलेरिया प्रभावित अंगों के रुग्णता प्रबंधन और अच्छी तरह से साफ-सफाई के बारे में बताया गया। इसके साथ ही फाइलेरिया रोग के विस्तृत जानकारी दी गई जो मरीजों की स्क्रीनिंग में काफी मददगार साबित होगी।

बचाव- मच्छरदानी का प्रयोग करें। घर के आस- पास व अंदर साफ-सफाई रखें, पानी जमा न होने दें और समय-समय पर रुके हुए पानी में कीटनाशक, जला हुआ मोबिल, डीजल का छिड़काव करते रहें।

रिपोर्ट-संजय गुप्ता

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