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भारतीय समाज को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक कर रहा “सामुदायिक रेडियो”

“मेरा नाम शबनम है मैं गोपालगंज की निवासी हूं. मुझे फाइलेरिया के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. यही कारण है कि आज तक कभी फाइलेरिया की दवा खाने का सोचा भी नहीं था लेकिन जब एक दिन रेडियो पर फाइलेरिया से संबंधित प्रोग्राम सुना तब यह आवश्यक लगा कि हम सबको फाइलेरिया रोग से बचने के लिए दवा का सेवन अवश्य करना चाहिए। अतः हम लोगों ने पूरे परिवार के साथ अपने घर पर आशा कार्यकर्ता के सामने दवा का सेवन किया और अब मन में संतुष्टि भी है।”

फाइलेरिया की दवा खाने वाले एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि “मेरा नाम गैंदलाल है मैं छत्तीसगढ़ के रायगढ़ शहर में बाल काटने का काम करता हूं. मुझे फाइलेरिया बीमारी के बारे में सामुदायिक रेडियो पर जानकारी मिली। लेकिन मैं अपने काम में व्यस्त रहा जिसके कारण समय पर दवा ना खा सका. मैं बहुत परेशान था कि अब क्या करूं? इसी बीच सामुदायिक रेडियो पर दोबारा यह जानकारी मिली कि जिन लोगों ने फाइलेरिया की दवाएं नहीं खाई हैं वह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर जा कर दवा ले सकते हैं. तो मैं अपने पूरे परिवार के साथ वहां गया और स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा दी गई दवाई उन्हीं के सामने खाई।”

सामुदायिक रेडियो

ज्ञात हो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा फाइलेरिया को नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज में शामिल किया गया है। इस की रोकथाम के लिए सर्वजन दवा सेवन अभियान के तहत जिन जिलों में फाइलेरिया की आशंका है वहां दस फरवरी से लोगों को फाइलेरिया की दवा खिलाई गई। एनटीडी की श्रेणी में फाइलेरिया सहित मलेरिया, कालाजार, कुष्ठ रोग, डेंगू, चिकन गुनिया, रैबीज, कृमि रोग सहित कई अन्य रोग आते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार के रोगों के मामले अधिक मिलते हैं। जनजागरूकता के अभाव में ग्रामीण क्षेत्रों में इन बीमारियों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज से जुड़े सभी रोगों को खत्म करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा जनजागरूकता पर बल दिया गया है।

भारत में रेडियो की शुरुआत वर्ष 1922 से होती है, लेकिन पब्लिक रेडियो की बात करें तो दुनिया का सबसे बड़ा रेडियो नेटवर्क “आकाशवाणी” 1936 में स्थापित हुआ। रेडियो की उपयोगिता को देखते हुए भारत सरकार ने अपनी नीति में बदलाव किया और इसे गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के रूप में अनुमति दी। जिसके परिणामस्वरूप आज पूरे भारत में लगभग 400 सामुदायिक रेडियो स्टेशन हैं।

ऐसी ही दिल्ली में स्थित एक एनजीओ “SMART” है, जो न केवल “रेडियो मेवात” चलाती है बल्कि देश भर के कई राज्यों में स्थित कई अन्य सामुदायिक रेडियो का मार्गदर्शन भी कर रही है। स्मार्ट एनजीओ ने स्वास्थ्य विभाग के लगभग सभी कार्यक्रमों और अभियानों में सक्रिय रूप से भाग लिया है, चाहे वह देश को टीबी मुक्त करने का अभियान हो या भारत को फाइलेरिया से मुक्त करने का अभियान। स्मार्ट एनजीओ देशभर में फैले सामुदायिक रेडियो द्वारा स्वास्थ्य विभाग को सहयोग देती रही है।

स्मार्ट एनजीओ की संस्थापक एवं प्रमुख अर्चना कपूर ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग के इस विशेष अभियान में सामुदायिक रेडियो महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, स्वास्थ्य विभाग ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच कर उन्हें अपने अभियान का हिस्सा बनाना चाहता है. इस काम में सामुदायिक रेडियो समर्थन दे रहे हैं, कारण स्पष्ट है कि आजकल लगभग हर घर में स्मार्टफोन है और प्रत्येक स्मार्टफोन में पहले से ही एक रेडियो है, इसलिए सामुदायिक रेडियो भाषा और साक्षरता के बंधनों से मुक्त होकर स्थानीय भाषा में सामुदायिक रेडियो के माध्यम से स्वास्थ्य विभाग का संदेश व्यक्तिगत रूप से लोगों तक पहुंचता रहे।

सामुदायिक रेडियो

इसीलिए 01 से 28 फरवरी तक विभिन्न रूपों में सामुदायिक रेडियो पर दिन भर फिलेरिया जागरूकता अभियान चलाया गया। भारत के सात राज्यों में 22 सामुदायिक रेडियो ने अपनी स्थानीय भाषा या बोली में लोगों को रेडियो जिंगल, नैरोकास्ट, ब्रॉडकास्ट, रेडियो प्रोग्राम, फाइलेरिया के नोडल अधिकारियों के इंटरव्यू, लाभार्थियों, आशा कर्मियों इत्यादि से साक्षात्कार और दवा खाने वालों के फीडबैक द्वारा फाइलेरिया रोधी दवा लेने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते रहे। जिसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश शामिल हैं।

इस संबंध में अपने अनुभव साझा करते हुए वॉइस ऑफ आजमगढ़ सामुदायिक रेडियो ने बताया कि “फाइलेरिया की दवा को लेकर आजमगढ़ के ग्रामीण अंचल में कई भ्रांतियां थी। जिसमें प्रमुख रुप से यह था कि क्या दवा सुरक्षित है? दवा खाने के बाद किसी तरह का नुकसान तो नहीं होगा? क्या दवा खाने के बाद हमारी हाथीपांव की बीमारी ठीक हो जाएगी? हमें तो इस तरह की कोई तकलीफ नहीं है हमें दवा खाने की क्या जरूरत है? इसके अलावा कुछ लोगों का यह भी मानना था कि इस दवा को खाने से नपुंसकता आ सकती है और भविष्य में संतानोत्पत्ति मे परेशानी हो सकती है।

इस चुनौती का सामना करने के लिए हमने लोगों से मिलकर व्यक्तिगत एवं समूह में चर्चा करके उन्हें जागरूक किया। इसके लिए कुछ स्थानों पर हमने स्थानीय डॉक्टरों तथा आशा एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का सहयोग लिया। कुछ विद्यालयों के शिक्षकों ने भी हमारा सहयोग किया और इस प्रकार हम लोगों के भ्रम को काफी हद तक दूर कर पाने में सफल रहे। इसके पश्चात हमने दवा खाने वाले कई लोगों के अनुभवों को लोगों के साझा किया और उसकी ऑडियो और व्डियो क्लिप्स भी अन्य स्थानों पर दिखाई, जिससे अन्य स्थानों पर भी फाइलेरिया की दवाई लेने की जागरूकता पैदा की जा सकी। हमारे प्रयासों के लिए स्थानीय प्रशासन एवं मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने भी अपनी प्रसन्नता व्यक्त की है।”

फाइलेरिया

जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यालय, सिवान, बिहार से डॉ एमआर रंजन का रेडियो स्नेही 90.4F.M को एक प्रशंसा-पत्र मिला है जिस में लिखा है कि “स्नेही लोकोत्थान संस्थान तथा स्मार्ट एनजीओ, नई दिल्ली द्वारा संयुक्त रूप से संचालित फाईलेरिया उन्नमूलन कार्यक्रम में सामुदायिक रेडियो स्टेशन ” रेडियो स्नेही 90.4F.M.” द्वारा फाईलेरिया उन्नमूलन हेतु रेडियो कार्यक्रम का प्रसारण किया गया तथा आउट-रीच गतिविधियाँ भी की गयी। जिससे जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण ईकाई (फाईलेरिया) को सहयोग प्राप्त हुआ। मैं सामुदायिक रेडियो स्टेशन रेडियो स्नेही 90.4F.M.” सिवान के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ।”

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ से रेडियो धूम ने बताया कि “स्वास्थ्य विभाग के ज़िला नोडल अधिकारी डॉक्टर टी जी कुल्वेदी ने हमारे काम की सराहना की और ये भी कहा कि रेडियो धूम के प्रयास से उन्हें काफी सहयोग मिला है। एपिसोड और प्रोमोज को उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के ऑफिशियल वेबसाइट पर शेयर भी किया है और अन्य प्रचार के माध्यमों में भी उन्होंने रेडियो धूम के ऑडियो का उपयोग किया है।”

ऐसा ही एक प्रशंसा पत्र मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िला में स्थित रेडियो स्टाइल को भी जिला स्वास्थ्य अधिकारी श्री लखन तिवारी द्वारा प्राप्त हुआ. जिस में उन्होंने लिखा है कि “ में डॉ लखन तिवारी CMSHO छतरपुर जिले की आम जनता को जागरूक करने और फाइलेरिया रोग से मुक्त कराने के लिए 10 से 22 फरवरी तक जिले में फाइलेरिया की दवा का सेवन करने के लिए चले अभियान में रेडियो स्टाइल से हमें काफी सहयोग मिला इससे लोगों में जागरूकता आई और दवा सेवन का टारगेट पूरा करने में हम काफी हद तक सफल रहे। मैं रेडियो स्टाइल के कार्य की सराहना करता हूं और भविष्य में भी इस तरह के कार्यक्रमों में सहयोग की कामना करता हूं।”

फैलेरिया अभियान में दिए गए सहयोग के लिए सामुदायिक रेडियो की सराहना करते हुए श्रीमती कपूर ने कहा कि विभिन्न राज्यों के जिलों के स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा सामुदायिक रेडियो स्टेशनों को दिए जाने वाले यह प्रशंसा पत्र अपने आप में बड़ी चीज हैं. जो यह दर्शाते हैं कि स्वास्थ्य विभाग सामुदायिक रेडियो द्वारा काफी हद तक समुदाय में अपनी पहुंच बनाने में कामयाब हुए हैं. हम आशा करते हैं कि दूसरे स्वास्थ्य कार्यक्रमों में भी हमारे सामुदायिक रेडियो का योगदान स्वास्थ्य विभाग के साथ जारी रहेगा।

         अनीस आर खान

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