भारत अपने ज्ञान विज्ञान के बल पर विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित रहा है। हमारे यहां शिक्षा का मूल उद्देश्य रोजगार या डिग्री प्राप्त करना नहीं था। बल्कि यह धर्म अर्थ काम के मर्यादा अनुरूप पालन करने का मार्ग प्रशस्त करती थी। इससे नैतिक विचारों का जागरण होता था। इस मार्ग पर चलते हुए मोक्ष तक पहुंचने की कामना रहती थी। आज दुनिया में अनेक प्रकार की विकृति दिखाई देती है। नैतिकता का महत्व नहीं रहा। आतंक और नफरत का वातावरण है। प्रकृति का प्रकोप बढ़ रहा है।
उपभोगवादी सभ्यता संस्कृति से भौतिक विकास तो हुआ। लेकिन अनेक समस्याओं का जन्म भी हुआ। इनका समाधान पाश्चात्य जगत के पास नहीं है। ऐसे में भारतीय चिंतन पर विचार होने लगा है। कोरोना कालखंड में इसे प्रत्यक्ष रूप में देखा गया। नई शिक्षा नीति में सांस्कृतिक मूल्यों को भी महत्व दिया गया। इसके पहले भी अनेक आध्यात्मिक संस्थान शिक्षा के माध्यम से भारतीय संस्कृति व राष्ट्रीय स्वाभिमान का जागरण करते रहे है। इनमें गोरक्ष पीठ भी सम्मलित रही है।
गोरक्ष पीठ के योगी श्री महंत व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसका उल्लेख किया। कहा कि धर्म केवल उपासना मात्र नहीं है। धर्म सदाचार नैतिक मूल्य और अपने स्वयं के कर्तव्यों के प्रति निरंतर प्रेरित करता है। भारतीय परम्परा किसी को कोई विशेष पूजा पद्धति का अनुसरण करने के लिए बाध्य नहीं करती है। महंत महेंद्रनाथ जी ने गोरखपुर में गोरक्षपीठ की परम्परा को देखा। वहां कार्य करने का अनुभव प्राप्त किया।
गोरखपुर में गोरक्षपीठ में दिग्विजयनाथ महाराज जी, अवैद्यनाथ महाराज जी के मार्गदर्शन में प्रेरणा ली। धर्मस्थल की सामाजिक कार्यों सहभागिता को देखा। इस प्रकार धार्मिक संस्थान को लोककल्याण माध्यम बनाया जा सकता है। गोरख पीठ ने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के माध्यम से शिक्षा के लिए एक व्यापक अलख जगाने का कार्य किया। आज महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के पचास से ज्यादा संस्थान कार्यरत हैं। पांच हजार से ज्यादा शिक्षक शिक्षण कार्य कर रहे हैं।
पचास हजार से अधिक बच्चे इन संस्थानों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद द्वारा पॉलिटेक्निक व पहले डिग्री कॉलेज की स्थापना के माध्यम से शिक्षा को बढ़ाने का कार्य किया गया। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद द्वारा गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए जमीन दान की गई।
गोरखपुर में गोरक्षपीठ द्वारा बनवासी छात्रों के लिए छात्रावास की स्थापना की गई। जिसमें थारू जनजाति के छात्रों व नागालैण्ड,मिजोरम, मेघालय क्षेत्रों से जनजाति के छात्रों को शिक्षा प्रदान की जाती है। उसी तर्ज पर थारू जनजाति छात्रावास की स्थापना हुई। बलरामपुर के बच्चों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के लिए देवीपाटन मंदिर में देवीपाटन विद्यालय की स्थापना की गई।
देवीपाटन तुलसीपुर में थारू जनजाति छात्रावास की स्थापना की गई। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मंदिर का स्वरूप सेवा का माध्यम होना चाहिए। इसी भावना के साथ महंत महेंद्रनाथ जी ने देवीपाटन तुलसीपुर में लोक कल्याणकारी कार्यों को प्रारम्भ किया किया। वह निरन्तर लोक कल्याणकारी पथ पर आगे बढ़ते रहे। उन्होंने लोक कल्याण के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया।
लोक कल्याण,मानवता के कल्याण,शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, स्वास्थ्य की बेहतर सुविधा, गौ सेवा कार्यों को मंदिर से जोड़ते हुए आगे बढ़ाया गया। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर आस्था के प्रतीक के साथ साथ भारत और नेपाल के सांस्कृतिक स्वरूपों को जोड़ने का एक महत्वपूर्ण आधार है।