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हरिद्वार महाकुम्भ में अखाड़ों की शोभा यात्रा के दौरान संतो महात्माओं के दर्शन हेतु उमड़ी भीड़

दया शंकर चौधरी

विश्व में सबसे बड़ा आस्था का मेला कुंभ इस बार उत्तराखंड की देव नगरी में आयोजित होने जा रहा है। आईये, हम जानते हैं कि कुंभ मेला क्यों लगता है? कब-कब इसका आयोजन होता है? हरिद्वार कुंभ मेले में शाही स्नान किस तारीख को होंगे?

विश्व में सबसे बड़ा आस्था का मेला कुंभ इस बार उत्तराखंड की देव नगरी हरिद्वार में आयोजित होने जा रहा है। माघ पूर्णिमा पर 27 फरवरी से कुंभ मेले की शुरुआत होकर, यह 27 अप्रैल तक चलेगा। हरिद्वार कुंभ मेले का पहला शाही स्नान 11 मार्च दिन गुरुवार को महाशिवरात्रि के दिन होने वाला है। कुंभ मेले में लोग आस्था की पवित्र डुबकी लगाएंगे। दुनिया के सबसे अनूठे कुंभ मेले में दुनियाभर से लोग पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए आते हैं।

क्यों लगता है कुंभ मेला

कुंभ का शाब्दिक अर्थ कलश होता है, जिसका तात्पर्य अमृत कलश से है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश निकला था, तब उसे पाने के लिए देवताओं और असुरों में 12 दिनों तक युद्ध हुआ। उस कलश की छीना-झपटी में अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरी ​थीं। उसमें प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन थे। कहा जाता है कि आदिगुरु शंकराचार्य ने कुंभ मेले की शुरुआत की थी ताकि मनुष्यों को भी अमृत तत्व का लाभ मिल सके । इस वजह से इन शहरों की पवित्र नदियों के किनारे कुंभ मेले का आयोजन होता है और लोग इसमें स्नान कर स्वयं को धन्य मानते हैं।

कब-कब लगता है कुंभ मेला

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के शास्त्री पंडित कृष्णा राम दीक्षित ने बताया कि धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व वाला कुंभ मेला करीब 48 दिनों तक चलता है। कुंभ मेले का आयोजन 12 साल में हर 3 साल के अंतराल पर प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में क्रमश: होता है। हरिद्वार में गंगा के तट पर, उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर, नासिक में गोदावरी नदी के तट पर और प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर कुंभ मेले का अयोजन होता है।

विद्वान पंडितों का कहना है कि ज्योतिषीय गणना के अनुसार जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तब हरिद्वार में कुंभ मेला का आयोजन होता है। इसी तरह जब सूर्य मकर राशि में तथा बृहस्पति वृषभ राशि में प्रवेश करे, तो कुंभ का आयोजन प्रयागराज में होता है। जब बृहस्पति और सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करते हैं, तो नासिक में कुंभ का आयोजन होता है।

विद्वानों के अनुसार जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करे, तब उज्जैन में कुंभ मेला लगता है। इसे सिंहस्थ कुंभ भी कहा जाता है।

हरिद्वार कुंभ मेला 2021: इस बार 11 साल पर ही हरिद्वार कुंभ लग रहा है क्योंकि 2022 में गुरु, कुंभ राशि में नहीं होंगे। इन चार स्थानों पर कुंभ मेला हर 12 वर्ष पर लगता है। आपको बता दें कि महाकुंभ केवल प्रयागराज में लगता है। यह हर 144 सालों में एक बार या 12 पूर्ण कुंभ के बाद आयोजित होता है।

हरिद्वार कुंभ 2021 के शाही स्नान

शास्त्री कृष्ण राम दीक्षित ने बताया कि पुराणों के अनुसार इस कुंभ में समस्त देवी देवता आकर गंगा जी में स्नान करते है और यहां आने वाले भारत वर्ष सहित विश्व के समस्त संत गण व अखाड़ों के साधु महात्मा श्रद्धालु भक्तों को दर्शन व आशीर्वाद देकर कृतार्थ करते है।

  • पहला शाही स्नान: 11 मार्च, दिन गुरुवार, शिवरात्रि के दिन।
  • दूसरा शाही स्नान: 12 अप्रैल, दिन सोमवार, सोमवती अमावस्या के दिन।
  • तीसरा मुख्य शाही स्नान: 14 अप्रैल, दिन बुधवार, मेष संक्रांति के दिन।
  • चौथा शाही स्नान: 27 अप्रैल, दिन मंगलवार, बैसाख पूर्णिमा के दिन।

कुंभ मेला में दर्शन हेतु लखनऊ से गये एक श्रद्धालु भक्त लालू भाई ने बताया कि उत्तराखंड हरिद्वार में महाकुम्भ के पावन अवसर पर महाशिवरात्रि के पूर्व भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ गंगा स्नान हेतु आ रही है। हर की पौड़ी, ब्रह्म कुण्ड, गौ घाट, आदि सहित सभी स्थान श्रद्धालुओं से भरे पड़े है।

सुबह होते ही श्रद्धालुओं के साथ साथ कांवड़िए भी भारी संख्या में दिल्ली उत्तर प्रदेश मध्यप्रदेश हरियाणा सहित कई अन्य राज्यो से भी जल भरने आ रहे है। कांवड़ियों द्वारा हर हर महादेव बम बम भोले और वीर बजरंगी के जयकारों से सारा घाट शिवमय हो जाता है। महाकुम्भ में सबसे आकर्षण का केंद्र अखाड़ों द्वारा निकाली जा रही शोभा यात्रा है। जूना अखाड़ा निरंजनी अखाड़ा सहित अन्य अखाड़ों द्वारा निकाली जा रही शोभा यात्रा में भारी संख्या में श्रद्धालु भक्त संतो महात्माओं के दर्शन व आशीर्वाद हेतु आ रहे है। इन शोभा यात्रा में कई बैंड की आकर्षक धुन पर सुसज्जित रथों पर सवार साधु महात्मा आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए है।

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