रिपोर्ट-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
प्रचार, हंगामा, सियासत आदि में अरविंद केजरीवाल अपनी महारथ पहले ही साबित कर चुके है। अन्ना हजारे के आंदोलन को उन्होंने भरपूर राजनीतिक लाभ उठाया। इस दौर में कांग्रेस का पराभव उनके लिए वरदान साबित हुआ। वह लगातार दूसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। इसमें उनकी मुफ्त योजनाओं का बड़ा योगदान था,जिसे कुछ मोहल्ला क्लिनिक व कतिपय मॉडल स्कूलों की तस्वीरों से ढंकने का जतन किया गया। यह फार्मूला सफल भी रहा। लेकिन व्यक्ति हो या सरकार उसकी वास्तविक परख आपदा काल में होती है। इसी में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पूरी तरह विफल प्रमाणित हुए। ये बात अलग है कि वह इस मुसीबत में भी अपने प्रचार का मोह छोड़ नहीं सके। प्रचार में यह दिखाने का प्रयास रहता था कि कोरोना आपदा प्रबंधन में उनसे बढ़ कर कोई नहीं है।
अपने चिर परिचित अंदाज में वह लोगों के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करते रहे। लेकिन जमीन पर ऐसा कुछ नहीं था। शुरुआती समय में उन्होंने वोटबैंक सियासत पर अमल किया। जमात के प्रति उनका रुख इसी के अनुरूप था। बताया गया कि दिल्ली के प्रवासी मजदूरों के बीच सुनियोजत ढंग से भय का प्रचार किया गया। इनके बीच भगदड़ शुरू हुई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस संकट के समाधान की कमान ना संभाली होती तो स्थिति विकराल हो सकती थी। मतलब साफ था। केजरीवाल इन लोगों को भोजन तक नहीं दे सके,मोहल्ला क्लिनिक कांग्रेस की एक हजार बसें,सब नदारत रही। दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ ने इन प्रवासी श्रमिकों की सकुशल व सम्मानजनक वापसी सुनिश्चित की,अब इनको रोजगार देने की योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
दिल्ली में संकट के पहले चरण की यह दशा था,जिसमें योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से श्रमिकों की समस्या का समाधान हुआ। अब दूसरे चरण की समस्या का समाधान हेतु केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कमान संभाली है। ऐसा नहीं कि अमित शाह ने दिल्ली सरकार के अधिकारों में हस्तक्षेप का प्रयास किया है। ऐसा होता तो अरविंद केजरीवाल इस पर भी हंगामा,धरना आदि कर सकते थे। वस्तुतः दिल्ली की बदहाली पर सुप्रीम कोर्ट के कड़े तेवर दिखाए थे। यह अपरोक्ष रूप से केजरीवाल की नाकामी का परिणाम था। इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में कोरोना के खिलाफ लड़ाई का मोर्चा संभाला। सबका विश्वास हासिल करने के लिए उन्होंने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इसमें दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधऱी,भाजपा प्रदेश अध्यक्ष आदेश कुमार गुप्ता और आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह शामिल हुए थे। शाह ने सबसे पहले कोरोना की जांच बढ़ाने का निर्णय लिया।
इतना ही नहीं दिल्ली में कोरोना टेस्ट की कीमत आधी करने का भी निर्णय लिया गया। अगले दो चार दिन में यहां अठारह हजार कोरोना टेस्ट प्रतिदिन होने लगेंगे। व्यवस्था को जमीनी स्तर पर निरीक्षण क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए अंडमान निकोबार और अरुणाचल प्रदेश से दो दो वरिष्ठ अधिकारियों का तत्काल दिल्ली ट्रांसफर किया गया है। केंद्र में कार्यरत दो आइएएस अधिकारियों को भी दिल्ली सरकार के साथ काम करने के लिए कहा गया है। शाह ने कहा कि केंद्र सरकार दिल्ली में कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए जरूरी उपकरण और सुविधाएं उपलब्ध कराएगी।लोगों की सुविधा हेतु हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया है। केजरीवाल ऐसा करने में भी विफल रहे थे। छोटे अस्पतालों को फोन पर सही जानकारी देने को एम्स के डॉक्टरों की टीम गठित करने की बात कही गई थी। इसीलिए स्वास्थ्य मंत्रलय ने हेल्पलाइन नंबर जारी किया। कोरोना चिकित्सा में लगे डॉक्टर एम्स के तीन वरिष्ठ डॉक्टरों से किसी भी समय परामर्श ले सकेंगे। इस नंबर पर ओपीडी अपॉइंटमेंट और वॉलंटियर से मदद लेने का भी विकल्प मिलेगा।
केजरीवाल किंकर्तव्यविमूढ़ रहे,फिर भी अमित शाह ने संवैधानिक मर्यादा का पालन किया। उन्होंने अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल अनिल बैजल के साथ स्थिति पर विचार हेतु बैठक की। समीक्षा के बाद अमित शाह ने अनेक निर्णय लिए। जिनमें टेस्टिंग की क्षमता,मरीजों के लिए बिस्तर,निजी अस्पतालों में इलाज के खर्चे पर लगाम लगाने जैसे मुद्दे शामिल हैं। जाहिर है कि केजरीवाल का इस ओर ध्यान ही नहीं था। इतना ही नहीं शाह ने दिल्ली के तीनों नगर निगमों के मेयर और आयुक्तों से भी मुलाकात की थी। उनके साथ भी विचार विमर्श किया था। अमित शाह के प्रयास से दिल्ली में कोरोना वायरस की जांच दोगुनी की गई है। दिल्ली में कोरोना वायरस के मामलों में तेजी से हो रही बढ़ोतरी के दृष्टिगत यह कदम उठाए जा रहे है। बैठकों के बाद ही अमित शाह ने कहा था कि निरुद्ध क्षेत्र में हर मतदान केंद्र पर कोरोना जांच शुरू की जाएगी। संक्रमण के ज्यादा मामले वाले इलाके में संपर्क का पता लगाने के लिए घर घर जाकर सर्वेक्षण किया जाएगा।
दिल्ली में कोरोना मरीजों के लिए बेड की कमी को देखते हुए मोदी सरकार रेलवे के पांच सौ कोच उपलब्ध कराएगी। मतलब साफ है,बेड की कमी की ओर भी केजरीवाल का ध्यान नहीं था। अमित शाह ने चारों दलों से अपने कार्यकर्ताओं को दिल्ली सरकार के कोरोना वायरस के दिशा निर्देशों को जमीनी स्तर पर लागू करवाने में मदद करने की अपील करने को कहा। सत्ता में होने के बाद भी आम पार्टी कार्यकर्ताओं ने इस कार्य में लापरवाही की थी। अमित शाह ने कहा कि इन कदमों से जनता का विश्वास बढ़ेगा। शाह ने ठीक कहा कि इस समय सभी दल राजनीतिक मतभेद भुलाकार प्रधानमंत्री के नेतृत्व में दिल्ली की जनता के हितों के लिए काम करें। सभी दलों की एकजुटता से जनता में विश्वास बढ़ेगा। कोरोना के विरुद्ध लड़ाई को बल मिलेगा। अमित शाह ने दिल्ली के लोगों के कल्याण के लिए केंद्र सरकार के फैसले को लागू करने में सहायता हेतु सभी दलों को अपने कार्यकर्ताओं सक्रिय करने का आह्वान किया। दिल्ली के लोगों को राहत देने के लिए अमित शाह राजनीति से ऊपर उठकर प्रयास कर रहे है।
पिछले दिनों उन्होंने पश्चिम बंगाल सरकार से भी इसी प्रकार की अपील की थी। उनका कहना था कि राजनीतिक मतभेद स्वभाविक है। लेकिन इनका असर आमजन पर नहीं पड़ना चाहिए। शाह ने कहा था कि आयुष्मान भारत योजना से देश के लगभग एक करोड़ लोग अब तक लाभ उठा चुके हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल इस लाभ से अछूता है। क्योंकि ममता दीदी ने इस योजना को राज्य में लागू ही नहीं होने दिया। गरीब कल्याण पैकेज के तहत देश के आठ करोड़ से अधिक किसानों को सोलह हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि सीधे उनके बैंक अकाउंट में ट्रांसफर की गई है। लेकिन पश्चिम बंगाल के एक भी किसान को इसका फायदा नहीं मिल पाया है। ममता बनर्जी सरकार ने किसानों की सूची ही केंद्र सरकार को नहीं भेजी है। अमित शाह ने ममता सरकार को कहा कि आप किसानों की सूची भेजिए,हम तुरंत ही किसानों के एकाउंट में पैसा ट्रांसफर करेंगे। अमित शाह ने यह भी पूंछा था कि ममता दीदी, मतुआ,नामशूद्र और बांग्लादेश से आये शरणार्थियों ने आपका क्या बिगाड़ा है,जो आप इतना विरोध कर रही हैं।
आपको पश्चिम बंगाल की जनता को इस विरोध का कारण बताना चाहिए। नागरिकता संशोधन कानून तो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धर्म, परिवार और जीवन की रक्षा भारत आये शरणार्थियों का अधिकार है जिसका वादा विभाजन के समय में किया गया था। मोदी सरकार ने इस वादे को पूरा किया। केंद्र ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई, लेकिन ममता बनर्जी ने अपने ही राज्य के मजदूरों का अपमान करते हुए इन ट्रेनों को कोरोना एक्सप्रेस की संज्ञा दी। यह श्रमिकों का सीधा अपमान था।आजादी के समय देश की पच्चीस प्रतिशत से भी अधिक उत्पादन पश्चिम बंगाल से होती थी, जो आज तीन प्रतिशत पर आ गया है। सुप्रीम कोर्ट की टिपण्णी से केजरीवाल सरकार की हकीकत सामने आ गई थी। कोरोना की स्थिति से निपटने के तरीकों, अस्पतालों में मरीजों के लिए बिस्तरों की उपलब्धता नहीं होने व लैब में जांच में आ रही मुश्किलों को लेकर केजरीवाल सरकार के प्रति लोगों में भारी नाराजगी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए केजरीवाल सरकार को फटकार लगाई थी। उसने कहा कि दिल्ली में अस्पतालों की स्थिति बेहद भयावह है। उपराज्यपाल बैजल को भी इस बदहाली को दूर करने पर विचार हेतु छह सदस्यीय समिति का गठन करना पड़ा। बैजल ने दिल्ली सरकार के उस फैसले को पलट दिया था जिसमें कहा गया कि अस्पताल के बिस्तर और जांच सिर्फ दिल्ली वालों के लिये हैं। और जांच भी उन मरीजों की होगी जिनमें लक्षण नजर आएंगे।