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सोलर उद्योग के लिए अंतरराज्यीय शुल्क पर, छूट की समय सीमा बढ़ाने की मांग

भारतीय राष्ट्रीय सौर ऊर्जा महासंघ द्वारा सरकार से अनुरोध किया गया है कि वह भारत की सौर ऊर्जा क्षेत्रों के लक्ष्य को पूरा करने के लिए रिन्यूबल एनर्जी परियोजनाओं के लिए अंतरराज्यीय शुल्क (इंटरस्टेट ट्रासमिशन सिस्टम -आईएसटीएस) पर छूट की समय सीमा को बढ़ाए। मौजूदा समय में 30 जून 2025 से पहले शुरू की गई हरित योजनाओं और बैटरी, सौर ऊर्जा और पंप भंडारण परियोजनाओं के लिए 25 साल के लिए शुल्क को माफ कर दिया गया है। लेकिन भारतीय राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संघ का कहना है कि 2025 के बाद शुरू होने वाली योजनाओं के लिए शुल्क में छूट देने पर विचार करने की आवश्यकता है।

अंतिम उपभोक्ता तक टैरिफ का लाभ
महासंघ के अधिकारी बताते हैं कि आईएसटीएस छूट नई ऊर्जा क्षमता में विस्तार तो करेंगी साथ ही इसकी तुलना में बिजली की लागत कम हो जाती है, जिसमें अंतिम उपभोक्ता तक टैरफि का लाभ पहुंचता है। इसी को देखते हुए भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट रिन्यूबल एनर्जी (नवीकरण ऊर्जा) कर लक्ष्य रखा है। वर्तमान में आईएसटीएस शुल्क 0.80-1.20 रुपये प्रति यूनिट है, जो उद्योग के अनुसार यह सौर टैरफि का एक तिहाई और हाइब्रिड टैरफि का एक चौथाई है। उनका कहना है कि भारत ने महत्वाकांक्षी रिन्यूबल एनर्जी परियोजनाओं का लक्ष्य पूरा करने के लिए अगले छह महीने काफी महत्वपूर्ण होंगे और मिलने वाली छूट लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार साबित होगी। सरकार से सिफारिश की गई है कि आईएसटीएस छूट को उपयोगी हाईब्रिड, ओपन एक्सेस और ग्रीन हाइड्रोजन सहित सभी रिन्यूबल एनर्जी परियोजनाओं के लिए बढ़ाया जाना चाहिए।

सब्सिडी अगले कुछ साल तक रहे लागू
फ्रेयर एनर्जी के संस्थापक और प्रबंध निदेशक सौरभ मर्दा का कहना है कि स्थानीय सोलर निर्माताओं को सरकार से आगामी बजट में प्रोत्साहन दे और सब्सिडी योजना को अगले कुछ सालों के लिए लागू रखने की मांग हम कर रहे हैं। इससे भारतीय कंपनियों को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी और भारत को अपने हरित योजनाओं के लक्ष्य को पूरा करने में सहायक होगा। जानकारों का कहना है कि आईएसटीएस का शुल्क हर राज्य में बदल जाता है, जिसको लेकर इसका इंस्टलैशन पर खर्च बढ़ता है। सरकार को बुनियादी ढांचे से लेकर सब्सिडी का खर्च इस ओर बढ़ाना होगा।

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