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प्राइवेट स्कूलों से हो रहा संस्कृति का विनाश

एक अभिभावक अपने चार साल के मासूम को लेकर…एक अच्छे स्कूल की उम्मीद में एक नामी-गिरामी फाइव स्टार टाइप स्कूल में एडमिशन के लिए पहुंचा। अभिभावक ने उनके स्कूल की प्रोसेस के बारे में पूछा तो प्रिंसिपल बोला “₹20000 डोनेशन फीस ₹30000 साल की फीस उसके अलावा ड्रेस, शूज स्कूल से ही लेने पड़ेंगे।

अभिभावक के मन में अभी भी एक सवाल कीड़े की तरह उनके दिमाग को चाट रहा था। क्या बच्चे को हिंदू धर्म अनुसार रामायण, गीता भी कोर्स में पढ़ाई जावेगी ? इस सवाल पर प्रिंसिपल ने चुप्पी साध ली ” क्योंकि वह एक ईसाई मिशनरी स्कूल था। इस सवाल को नजरअंदाज करते हुए प्रिंसिपल ने अभिभावक से कहा “आपका बच्चा तभी अच्छा पढ़ पाएगा…जब आप उसको घर पर भी पढ़ाई करवाएंगे…उस पर घर पर ध्यान देंगे और उसकी कोचिंग लगवाएंगे। अभिभावक इस बात से अचंभित हो गया! चार पांच साल के बच्चे को कोचिंग लगाने का क्या औचित्य है? जब वह फाइव स्टार नुमा स्कूल में अपने बच्चे का एडमिशन करवा रहा है।

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इस तरह के चुटकुले आपको सोशल मीडिया पर देखने और सुनने को अक्सर मिल जाएंगे। मगर वर्तमान समय की शिक्षा व्यवस्था का यही एक कड़वा सत्य है। जिसे आम अभिभावक पचा नहीं पाता है। हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि शिक्षा और चिकित्सा दोनों ही सेवा का माध्यम है। इन दोनों ही संस्थानों में सेवा भावना से समर्पित शिक्षा और चिकित्सा मुहैया कराई जाती है। मगर अब दौर बदल गया है। अब प्राइवेट स्कूल और हॉस्पिटल सेवा भावना से नहीं खोले जाते हैं। अब यह दोनों ही कमाई का जरिया बन गए हैं। आजकल वर्तमान परिदृश्य में स्कूल किसी फाइव स्टार नुमा की तरह खुलने लगे हैं चलो मान लिया वर्तमान के हिसाब से और डिजिटल युग के हिसाब से स्कूलों की दरों दीवारें चेंज हो गई है।

प्राइवेट स्कूल

मगर इसके उलट सेवा भावना का कोई स्थान नहीं है। इन फाइव स्टार नुमा स्कूलों में अभिभावकों को गन्ने की तरह निचौड़ा जाता है। उनके खून पसीने की कमाई को दिखावे के नाम पर ऐठ लिया जाता है। आजकल हर छोटे और बड़े जिलों में ईसाई मिशनरी स्कूल खोले जा रहे हैं जो किसी आलीशान होटलों से कम नहीं लगते हैं। इन आलीशान स्कूलों की चकाचौंध में पड़कर आम अभिभावक अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए , इनके चक्रव्यू में आसानी से फंस रहे हैं।

इन स्कूलों का सिर्फ एक ही उद्देश्य है कमाई करना छोटे बच्चों को यह स्कूल वाले 90 प्लस नंबर देते हैं जिन से अभिभावक खुश हो जाते हैं। चाहे उनका बच्चा कमजोर ही क्यों ना हो । मगर नंबरों के इस जाल में फस कर वह अपने बच्चों का भविष्य और अपने बच्चों की नींव कमजोर कर रहे हैं। इसके विपरीत कमीशन के चक्कर में छोटे-छोटे बच्चों के बस्ते का बोझ इतना बढ़ जाता है। कि छोटे-छोटे बच्चे इन बेगो को उठा पाने में भी असमर्थ महसूस करते हैं। मगर मजबूरी में उठाना पड़ता है।

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इन मासूम बच्चों का भविष्य इन भारी-भरकम बेगो के वजन तले रौंदा जा रहा है। और आने वाले भविष्य में इसका दुष्परिणाम यह देखने को मिलेगा कि आने वाली पीढ़ी की लंबाई कम होने लगेगी… जहां पहले 5:30 / 6 फुट के इंसान हुआ करते थे। अब वह 4:30/ 5 फुट पर ही सिमट कर रह जाएंगे। और आने वाले भविष्य में सबसे बड़ा नुकसान हमारी भारतीय संस्कृति का होगा…आने वाली पीढ़ी इस बात से बिल्कुल अनभिज्ञ रहेगी की राम कौन था? कृष्ण कौन था ?क्योंकि यह आधुनिक शिक्षा हमें अपने सनातनी धर्म से दूर कर रही है। क्योंकि ईसाई मिशनरी स्कूलों में हमारे धार्मिक ग्रंथों को ना पढ़ा कर अपने धर्म का प्रचार प्रसार करने पर ज्यादा जोर दे रही है। यह अच्छी बात है की नई पीढ़ी के लिए अंग्रेजी बहुत आवश्यक भाषा है, मगर यह विडंबना है।

इन प्राइवेट स्कूलों की कि यह अंग्रेजी तो हमारी अच्छी कर देते हैं। मगर हमें हिंदी और संस्कृत से कोसों दूर कर देते हैं। आए दिन प्राइवेट स्कूलों से यह शिकायत मिल रही है कि आजकल के बच्चे संस्कृत और हिंदी में कमजोर होते जा रहे हैं। स्कूलों का पूरा पूरा ध्यान इंग्लिश मीडियम पर रहता है। मगर हिंदी और संस्कृत को नजरअंदाज कर दिया जाता है। या यूं कहें इन दोनों भाषाओं को औपचारिकता वश पढ़ाया जा रहा है। इन प्राइवेट स्कूलों की फैक्ट्रियों से बच्चे साक्षर होने के बजाय रोबोट बन कर निकल रहे हैं। जिन्हें अपनी संस्कृति का दूर-दूर तक कोई ज्ञान नहीं है।

यह हमारी संस्कृति के लिए बहुत ही घातक है। और इसके दुष्परिणाम आने वाले भविष्य में नई पीढ़ी को भुगतने होंगे…इन प्राइवेट स्कूलों में कमीशन खोरी के चक्कर में बेवजह का कोर्स बढ़ाकर आने वाली पीढ़ी को कुछ भी गलत पढ़ाया जा रहा है। एक समय था जब 80 परसेंट गुरुकुल हुआ करते थे। जहां पर उन्हें बौद्धिक शिक्षा धार्मिक शिक्षा और जीवन में काम आने वाली सामान्य शिक्षा दी जाती थी अगर वक्त के साथ अब सब बदल गया है । अब 80 परसेंट प्राइवेट स्कूल छोटे-छोटे जिलों में आलीशान फाइव स्टार होटल की तरह खुल गए हैं और गुरुकुल नाम मात्र के रह गए हैं, जो हमारी धार्मिक संस्कृति के लिए घातक है।

        कमल राठौर साहिल

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