कोरोना काल की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपदा में अवसर का विचार दिया था। वैश्विक संकट के बाबजूद भारत में अनेक उल्लेखनीय कार्य भी हुए। इस दौर में अनेक प्रयोग भी हुए। विकल्प के रूप में ये उपयोगी भी साबित हुए। यह सही है कि क्लास रूम में शिक्षा व अध्यापक विद्यार्थी के प्रत्यक्ष संवाद अपने में श्रेष्ठ होता है। लेकिन कोरोना जैसी आपदा ने इसमें विराम लगाया है। क्लास रूम की शिक्षा आवश्यक होती है। लेकिन जीवन से बढ़ कर कुछ नहीं होता। भारतीय चिंतन में भी आपद धर्म का उल्लेख किया गया है।
इस आपदा में ऑनलाइन शिक्षा ऑनलाइन चिकित्सा को बढ़ावा दिया है। कुलाधिपति व राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल भी इसके प्रति सजग रही है। कोरोना की शुरुआत के समय ही उन्होंने उच्च शिक्षण संस्थानों को वर्चुअल माध्यम से शिक्षा संचालित रखने के सुझाव दिए थे। आनन्दी बेन शिक्षा से संबंधित अनेक कार्यक्रमों में वर्चुअल रूप में सहभागी होती रही है। कोरोना की इस दूसरी लहर ने एक बार फिर संकट को बढ़ाया है। इसमें शिक्षण संस्थान बन्द किये गए। आनन्दी बेन ने एक बार फिर डिजिटल प्रयासों को आगे बढाने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कहा कि कोरोना संकट ने ई पाठ्यक्रम और डिजिटल शिक्षा के महत्व को बढ़ाया है। कोविड ने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की प्रेरणा दी है। पठन पाठन के तरीकों पर लगातार शोध करते रहने की जरूरत है।
इस पर अमल से विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित नहीं होगी। अब फ्लिप क्लास रूम का समय है,वर्चुअल लैब भी जरूरी है। इससे विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा मिलेगी। शिक्षक खुद को अपग्रेड करते रहेंगे। आनंदीबेन पटेल ने राजभवन से ऑनलाइन राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद एवं इंटीग्रल विश्वविद्यालय,लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 2nd Zone-wise meeting on “All India Analysis of Accreditation Report” नार्थ रीजन में प्रतिभाग कर रहे उत्तर भारत के आठ राज्यों के प्रतिनिधियों को सम्बोधित किया।
शिक्षा में गुणवत्ता
राज्यपाल ने कहा कि एक अच्छी शिक्षा व्यवस्था नये भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को साकार करने के लिए महत्वपूर्ण है। वैश्वीकरण के आज के युग में शिक्षण संस्थानों के समक्ष स्वयं को वैश्विक स्तर पर स्थापित एवं प्रस्तुत करने की बड़ी चुनौती है। उच्चतर शिक्षा में गुणवत्ता उत्कृष्टता के साथ साथ प्रासंगिकता का भी मूल्य बढ़ा है। वैश्विक स्तर पर उच्च शिक्षण संस्थानों की मूल्यांकन हेतु क्यूएस रैंकिंग,टाइम्स रैंकिंग तथा इसी प्रकार की कई अन्य रैंकिंग इकाइयों द्वारा मूल्यांकन की व्यवस्थाएं दी गई हैं।
नैक का महत्व
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्वायत्त संस्था राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद की स्थापना उच्च शिक्षा के भारतीय संस्थानों को निर्धारित मानदंडों के आधार पर मूल्यांकन एवं प्रत्यायन की प्रक्रिया के माध्यम से उनका अंतर निरीक्षण कर मूल्यांकन की सेवा प्रदान करने के लिए ही हुआ है। नैक संस्था शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान नवाचार तथा नव पद्धतियों को प्रोत्साहित करके स्व मूल्यांकन एवं जवाबदेही के आधार पर बेहतर शैक्षणिक परिवेश को प्रोत्साहित करती है। इसका लाभ विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों को भी मिलता है, जिससे वे पुनः निरीक्षण प्रक्रिया के माध्यम से अपनी दुर्बलताएं एवं अवसरों को पहचान सकते हैं एवं नई तथा आधुनिक पद्धति के अध्यापन को अपने संस्थानों में अपना सकते हैं। युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देकर देश की मुख्यधारा से जोड़ना हम सभी का कर्तव्य है। राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा नीति के बदले कलेवर को समग्रता में देखा जाना चाहिए। जब उच्च शिक्षण संस्थान अपना मूल्यांकन करता है तो वह राष्ट्रीय विकास में योगदान देता है।
स्किल डेवलपमेंट
राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा के लिए यह जरूरी नहीं है कि सब कुछ क्लास रूम में ही हो। प्रयोगशाला को कक्षा और कक्षा को प्रयोगशाला में परिवर्तित करने का समय है। शिक्षकों की स्किल को बढ़ाने के लिए लगातार काम करने का समय है। उन्होंने कहा कि अध्यापक और अध्यापिकाओं को और संवेदनशील,उत्साही एवं विद्यानुरागी बनाने के लिये उनके प्रशिक्षण की सतत् आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमें पढ़ाने और शिक्षा शास्त्र के नये तरीके गढ़ने पर विचार करना होगा। साथ ही शिक्षकों के प्रशिक्षण में व्यापक सुधार के लिए शिक्षक प्रशिक्षण और सभी शिक्षा कार्यक्रमों को सभी स्कूलों चाहे वह सरकारी हों या गैर सरकारी सभी को जोड़ने की कोशिश करनी होगी। राज्यपाल ने कहा कि परम्पराओं, संस्कृतियों और भाषाओं की विविधता को ध्यान में रखते हुए तेजी से बदलते समाज की जरूरतों के आधार पर पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि शोध एवं अनुसंधान भी अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि शोध का समाज के व्यापक हित चिंतन में प्रयोग हो इसके लिए संस्थाएं सिर्फ पब्लिकेशन मात्र के लिए शोध न करें, बल्कि समाज के मूल विषयों पर भी शोध करें, जिसका फायदा समाज को मिले।
उच्च शिक्षण संस्थानों की भूमिका
आनंदीबेन पटेल ने कहा कि उत्तर प्रदेश में पचास हजार से अधिक महाविद्यालय हैं अगर एक एक काॅलेज एक-एक गांव गोद लें और उसके विकास पर ध्यान दें तो गांव से कुपोषण,क्षणरोग, कुरीतियां,बाल विवाह आदि का शीघ्र समापन हो सकता है। इसके साथ ही वे शिक्षा प्रसार, स्वच्छता, जल संचयन, गर्भवती महिलाओं का प्रसव अस्पतालों में ही कराने आदि पर कार्य करें। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार कृषि से जुड़े महाविद्यालय कृषकों की समस्याओं का समाधान करने और किसान उत्पादक संगठन को मजबूत करने आदि पर भी कार्य कर सकते हैं।
इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री डाॅ. दिनेश शर्मा, राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद के निदेशक डाॅ. एससी शर्मा, प्रमुख उच्च शिक्षा मोनिका एस गर्ग सहित अनेक शिक्षाविद उपस्थित रहे।