दीपोत्सव में स्वस्तिक व शुभ लाभ का विचार प्रतीक रूप में सुशोभित होता है। ब्रह्मकुमारी की बहन स्वर्णलता ने इसके व्यापक महत्व को रेखांकित किया। वह लायंस क्लब राजधानी अनिंद के द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रही थी। भारतीय चिंतन में स्वस्तिक व शुभ लाभ का विशेष महत्व है। दीपावली उत्सव में इसे विशेष रूप से महत्व दिया गया। स्वस्तिक की समस्त रेखाएं समान होती है।
जीवन में भी संतुलन होना चाहिए। दिवस माह वर्ष स्वभाविक रुप से गतिमान रहते है। इसके अनुरूप जीवन चक्र चलता रहता है। स्वस्तिक स्वयं के अस्तित्व को बताने वाला है। स्वस्तिक में चारों युग समाहित है। सतयुग त्रेता,द्वापर और कलियुग। वर्तमान समय मे कलियुग चल रहा है। इसके बाद फिर सतयुग आएगा। स्वयं को जानना आवश्यक है। हमारे ऋषियों ने अहम ब्रह्मष्मी का सन्देश दिया। आत्मा परमात्मा का अंश है। आत्मा अजर अमर है।
गीता में भगवान कृष्ण ने इसका सन्देश दिया। आत्मा शरीर बदलती है। कर्मों का चक्र चलता रहता है। मानव शरीर नश्वर है। जीवन में इसको सर्वस्त्व मान लेना गलत है। परम सत्ता का सदैव स्मरण रखना चाहिए। जीवन का लक्ष्य भी यही है। धर्म अर्थ काम मोक्ष चार पुरुषार्थ बताए गए। धर्म के अनुरूप अर्थ व कार्य करने चाहिए। इस मार्ग का अनुसरण करते हुए मोक्ष को प्राप्त करने का लक्ष्य होना चाहिए। नर से नारायण की ओर बढ़ने का सतत प्रयास चलना चाहिए।
शुभ भाव से ही लाभ की कामना करनी चाहिए। अशुभ मार्ग पर चलते हुए कमाया गया धन कभी कल्याणकारी नहीं होता। कलियुग में परिस्थितियां प्रतिकूल होती है। कलह की संभावना अधिक रहती है। नैतिकता का महत्व कम दिखाई देता है। रिश्तों में परस्पर सम्मान स्नेह का अभाव रहता है। इस माहौल में ही मानव की परीक्षा होती है। गोस्वामी जी कहते है कि कलियुग केवल नाम अधारा इसका अर्थ है कि ईश्वर पर सदैव विश्वास रखा जाए। उनका स्मरण चलता रहे। ग्रहस्त जीवन पर अमल चलता रहे। किंतु यह सब अनाशक्त भाव में रहे। शास्वत तो केवल प्रभु है। यह कल्पना रहे कि उनकी कृपा बनी रहे। इसके लिए अच्छे कर्म ही करने चाहिए। ऐसा करने से ही मन शांत रहेगा। नकारात्मक विचार परेशान नहीं करेंगे।
बड़े भाग मानुष तन पावा
इसलिए हमारा आचरण मनुष्य जैसा होना चाहिए। मनुष्य रहते हुए पशु की भांति आचरण नहीं करना चाहिए। विवेक की शक्ति केवल मनुष्य में होती है। वही ध्यान तप सत्संग कर सकता है। पशुओं में यह क्षमता नहीं होती। उनका व्यवहार व प्रकृति एक निर्धारित सीमा में रहते है। वह इसी के अंतर्गत रहते है। व्यक्ति अपने आचरण को सुधारने की क्षमता रखता है। उसके पास बुद्धिबल होता है।
इस रूप में वह सत्मार्ग व कुमार्ग दोनों पर चलने की क्षमता रखता है। ऐसे में उसकी विवेक शक्ति महतबपुर्ण हो जाते है। विवेक व अंतरात्मा उसे सत्मार्ग पर चलने को प्रेरित करती है। मन में द्वंद भी रहता है। मन में कुरु क्षेत्र भी होता है। गुण व अवगुण में टकराव रहता है। अपने विवेक के आधार पर मन की आसुरी प्रवत्ति को नियन्त्रित किया जा सकता है।
यतो धर्मह ततो जयः
अंतरआत्मा की आवाज सुन कर चलेंगे तो परमात्मा की ओर बढ़ना संभव होगा। कार्यक्रम में राकेश अग्रवाल,अजित सिंह,नरेश चन्द्र,योगेश गोयल,योगेश दीक्षित महेश जैन,आशीष गांगुली,इंद्राणी गांगुली जंबू जैन,राम कुमार आजाद नितिन हिमांशु धर्मेंद्र,गौरव संजय सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।