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सिर्फ अखबार पढ़कर पीआईएल दाखिल न करें : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ राजधानी दिल्ली में पोस्टर लगाने संबंधी मामले में 24 लोगों पर मुकदमा दर्ज करने के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से आधी अधूरी जानकारी को लेकर अदालत ने कहा कि सिर्फ अखबार पढ़कर जनहित याचिका दाखिल नहीं की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील को एक हफ्ते में एफआईआर और ब्यौरा दाखिल करने को कहा है। दरअसल इस मामले में एफआईआर दर्ज करने पर दिल्ली पुलिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। याचिका में कोरोना को लेकर पीएम मोदी पर पोस्टर लगाने वालों के खिलाफ एफआईआर रद्द करने की मांग की गई है। साथ ही कहा गया है कि पुलिस को निर्देश दिया जाए कि वो वैक्सीन पर सवाल उठाते हुए लगाए गए पोस्टरों या विज्ञापन पर एफआईआर या कार्रवाई न करे। याचिका में मांग की गई है कि इन एफआईआर का सारा रिकॉर्ड भी पुलिस से मंगाया जाए। याचिकाकर्ता के वकील प्रदीप कुमार यादव ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी से इनकार नहीं किया जा सकता।

बकरीद पर लॉकडाउन में छूट पर केरल सरकार से मांगा जवाब

नई दिल्ली। केरल में 21 जुलाई को बकरीद पर लॉकडाउन में ढील देने के सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इस मामले पर सोमवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बकरीद से पहले कोरोना प्रतिबंधों में ढील देने के अपने फैसले के खिलाफ याचिका पर केरल सरकार से जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट मगलवार को इस मामले की सुनवाई करेगा।

अस्पताल पैसा कमाने का जरिया

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि अस्पताल बड़े उद्योग बन गए हैं और यह सब मानव जीवन को संकट में डालकर हो रहा है। हम उन्हें जीवन की कीमत पर समृद्ध नहीं होने दे सकते। बेहतर होगा ऐसे अस्पतालों को बंद कर दिया जाए। सोमवार को शीर्ष अदालत गुजरात के अस्पतालों में आग के मामले पर सुनवाई कर रही थी। शीर्ष अदालत ने भवन उपयोग अनुमति के संबंध में अस्पतालों के लिए समय सीमा जून, 2022 तक बढ़ाने को लेकर गुजरात सरकार की जमकर खिंचाई की। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से अस्पतालों को छूट देने वाली इस अधिसूचना को वापस लेने को कहा। पीठ ने कहा कि एक मरीज जो कोविड से ठीक हो गया था और उसे अगले दिन छुट्टी दी जानी थी, परंतु आग लगने से उसकी मौत हो गई और दो नर्सें भी जिंदा जल गईं। पीठ ने कहा कि ये मानवीय त्रासदी हैं, जो हमारी आंखों के सामने हुआ। फिर भी हम इन अस्पतालों के लिए समय बढ़ाते हैं।शीर्ष अदालत ने अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा के मुद्दे पर एक आयोग की रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में दायर करने पर भी नाराजगी जताई। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सीलबंद लिफाफे में आयोग की यह कौन सी रिपोर्ट है? यह कोई परमाणु रहस्य नहीं है। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी सोमवार को राजकोट और अहमदाबाद के अस्पतालों में आगजनी की घटनाओं के मद्देनजर देश भर के कोविड-19 अस्पतालों में आग की त्रासदियों से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान की।

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