नवरात्रि के 8वें दिन की देवी मां महागौरी हैं। मां गौरी का वाहन बैल और उनका शस्त्र त्रिशूल है। परम कृपालु मां महागौरी कठिन तपस्या कर गौरवर्ण को प्राप्त कर भगवती महागौरी के नाम से संपूर्ण विश्व में विख्यात हुईं। भगवती महागौरी की आराधना सभी मनोवांछित कामना को पूर्ण करने वाली और भक्तों को अभय, रूप व सौंदर्य प्रदान करने वाली है अर्थात शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के विष व्याधियों का अंत कर जीवन को सुख-समृद्धि व आरोग्यता से पूर्ण करती हैं।
अष्टमी का महत्व अधिक है। यह तिथि परम कल्याणकारी, पवित्र, सुख को देने वाली और धर्म की वृद्धि करने वाली है। अधिकतर घरों में अष्टमी की पूजा होती है। देव, दानव, राक्षस, गंधर्व, नाग, यक्ष, किन्नर, मनुष्य आदि सभी अष्टमी और नवमी को ही पूजते हैं। कथाओं के अनुसार इसी तिथि को मां ने चंड-मुंड राक्षसों का संहार किया था। नवरात्रि में महाष्टमी का व्रत रखने का खास महत्व है। मान्यता अनुसार इस दिन निर्जला व्रत रखने से बच्चे दीर्घायु होते हैं।
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अष्टमी के दिन सुहागन औरतें अपने अचल सुहाग के लिए मां गौरी को लाल चुनरी जरूर चढ़ाती हैं। अष्टमी के दिन कुल देवी की पूजा के साथ ही मां काली, दक्षिण काली, भद्रकाली और महाकाली की भी आराधना की जाती है। माता महागौरी अन्नपूर्णा का रूप हैं। इस दिन माता अन्नपूर्णा की भी पूजा होती है इसलिए अष्टमी के दिन कन्या भोज और ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है।
अष्टमी के दिन नारियल खाना निषेध है, क्योंकि इसके खाने से बुद्धि का नाश होता है। इसके आवला तिल का तेल, लाल रंग का साग तथा कांसे के पात्र में भोजन करना निषेध है। माता को नारियल का भोग लगा सकते हैं। कई जगह कद्दू और लौकी का भी निषेध माना गया है क्योंकि यह माता के लिए बलि के रूप में चढ़ता है। यदि अष्टमी को पारण कर रहे हैं तो विविध प्रकार से महागौरी का पूजन कर भजन, कीर्तन, नृत्यादि उत्सव मनाना चाहिए विविध प्रकार से पूजा-हवन कर 9 कन्याओं को भोजन खिलाना चाहिए और हलुआ आदि प्रसाद वितरित करना चाहिए।
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मां भगवती का पूजन अष्टमी को करने से कष्ट, दुःख मिट जाते हैं और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती। मां की शास्त्रीय पद्धति से पूजा करने वाले सभी रोगों से मुक्त हो जाते हैं और धन-वैभव संपन्न होते हैं। महाष्टमी के दिन महास्नान के बाद मां दुर्गा का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। महाष्टमी के दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है इसलिए इस दिन मिट्टी के नौ कलश रखे जाते हैं और देवी दुर्गा के नौ रूपों का ध्यान कर उनका आह्वान किया जाता है।
भारत के कुछ राज्यों में नवरात्रि के नौ दिनों में कुमारी या कुमारिका पूजा होती है। इस दिन कुमारी पूजा अर्थात अविवाहित लड़की या छोटी बालिका का श्रृंगार कर देवी दुर्गा की तरह उनकी आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार 2 से 10 वर्ष की आयु की कन्या कुमारी पूजा के लिए उपयुक्त होती हैं। कुमारी पूजा में ये बालिकाएं देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों को दर्शाती है। इस बार अष्टमी और नवमी 11 अक्टूबर 2024 को माना जायेगा।
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अष्टमी तिथि 10 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 31 मिनट पर प्रारंभ होगी और 11 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 06 मिनट पर समाप्त होगी। नवमी तिथि 11 अक्टूबर 2024 को दोपहर 12 बजकर 06 मिनट पर प्रारंभ होगी और 12 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी। 10 अक्टूबर को अष्टमी व्रत इसलिए नहीं रखा जाएगा क्योंकि सप्तमी युक्त अष्टमी व्रत रखना धर्म ग्रंथों में निषेध माना गया है। 11 अक्टूबर को अष्टमी तिथि दोपहर तक रहेगी और उसके बाद नवमी प्रारंभ होगी। अष्टमी युक्त नवमी व्रत रखा जा सकता है। इसलिए इस साल अष्टमी व नवमी एक ही दिन मनाई जाएगी।
अष्टमी और नवमी पूजा का मुहूर्त
पंचांग के अनुसार , 11 अक्टूबर 2024 को चर यानी पूजा का सामान्य मुहूर्त प्रात: काल 06:20 मिनट से लेकर सुबह 07:47 मिनट तक है। चर मुहूर्त के बाद लाभ यानी उन्नति मुहूर्त सुबह में 07:47 मिनट से लेकर 09:14 मिनट तक है। अमृत मुहूर्त में भी अष्टमी और नवमी की पूजा करना शुभ माना जाता है। 11 अक्टूबर को अमृत मुहूर्त सुबह 09:14 मिनट से लेकर सुबह 10:41 मिनट तक है।
नोट-अपने पुरोहित व पंचाग विशेषज्ञों के मताअनुसार व्रत धारण करें।