मक्के यानी कॉर्न की पैदावार के लिए छिंदवाड़ा जाना जाता है। यहां देश में सबसे ज्यादा मक्का पैदा होता है। यहां हर वर्ष दिसंबर में कॉर्न फेस्टिवल का आयोजन होता है, जिसमें मक्के के 200 से अधिक व्यंजन बनाकर परोसे जाते हैं।
ले सकते हैं आदिवासी खानपान का आनंद-
छिंदवाड़ा में अधिकतर जनता आदिवासी है। यहां के पातालकोट में आदिवासियों के आदिम व्यंजनों के स्वाद चखने को मिलते हैं। आप जब पातालकोट जाएं, तो वहां किसी आदिवासी परिवार के घर में भोजन करें। पहले से अनुरोध करने पर ये लोग भोजन की व्यवस्था करते हैं। ट्राइबल एस्केप नाम से सोशल एंटरप्रेन्योर चलाने वाले पवन श्रीवास्तव ने तामया में पातालकोट की रसोई नाम से एक नई शुरुआत की है, जिसके अंतर्गत आम लोगों को आदिवासी स्वाद चखाए जाते हैं।
इस रसोई में जनजातीय गांवों से आई महिलाओं द्वारा भोजन तैयार किया जाता है, जिसमे मक्के का हलवा, मक्के की सब्जी, मक्के की खिचड़ी, मक्के की खीर और छोटे-छोटे जंगली टमाटरों (भेजरा) की चटनी, ज्वार और उड़द की रोटी, बाजरे की रोटी, मक्के की रोटी, घुघरी की सब्जी, बलहर की सब्जी, चने की भाजी का साग, बरबटी की दाल, महुए की पूरी, गूलर की रोटी आदि शामिल हैं। यहां एक खास प्रकार का चावल होता है, जिसे कुटकी कहते हैं। यह चावल के पहले की फसल है, जिसे प्राचीन फसल माना जाता है। इसमें आज तक कीटनाशक या रसायनों का प्रयोग नहीं हुआ है।
पेजा एनर्जी ड्रिंक-
यहां के आदिवासी लोग एक विशेष प्रकार का एनर्जी ड्रिंक पीते हैं, जिसे पेजा कहा जाता है। इसे मक्के और कुटकी से तैयार किया जाता है। इसे खाने के बाद दिन भर एनर्जी बनी रहती है। अगर आप नॉन-वेज प्रेमी हैं तो आपके लिए देसी मुर्गा यहां बड़े चाव से बनाया जाता है। यहां एक विशेष प्रकार का मुर्गा कड़कनाथ भी ऑर्डर पर बनवाया जाता है। यह मुर्गा पूरी तरह से काला होता है, जिसकी तासीर बहुत गर्म होती है।