लवलीना से लेकर निकहत तक उम्मीदों पर खरा नहीं उतरे भारतीय मुक्केबाज, नहीं ला सके पदकtsपेरिस ओलंपिक का समापन हो गया है और भारत ने इन खेलों में एक रजत और पांच कांस्य सहित छह पदक अपने नाम किए। पेरिस ओलंपिक में भारतीय मुक्केबाजों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन निकहत जरीन और लवलीना बोरगोहेन जैसे विश्व चैंपियन खिलाड़ियों के बावजूद भारतीय मुक्केबाज पेरिस में प्रभावित नहीं कर सके और उन्हें बिना पदक के लौटना पड़ा। लवलीना और निकहत और पदक लाने के प्रबल दावेदार थे, लेकिन इन दोनों पहलवानों ने निराश किया।
मुक्केबाजी में पदक की थी उम्मीद
विजेंदर सिंह के बीजिंग ओलंपिक 2008 में ऐतिहासिक कांस्य पदक जीतने के बाद भारतीय मुक्केबाजों से ओलंपिक में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जाने लगी थी। इसके चार साल बाद एमसी मैरी कॉम ने लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। रियो ओलंपिक 2016 में भारतीय मुक्केबाज पदक नहीं जीत पाए लेकिन टोक्यो ओलंपिक में लवलीना कांस्य पदक हासिल करने में सफल रही थीं। इस परिदृश्य में उम्मीद की जा रही थी कि भारतीय मुक्केबाज पदक जीतने का सिलसिला जारी रखेंगे लेकिन उनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा। खेल के जानकारों का मानना था कि क्वालिफाई करने वाले छह मुक्केबाजों से दो नहीं तो कम से कम एक पदक की उम्मीद की जा सकती है। दो बार की विश्व चैंपियन जरीन (50 किग्रा), लवलीना (75 किग्रा) और विश्व चैंपियनशिप 2023 के कांस्य पदक विजेता निशांत देव (71 किग्रा) सभी को पोडियम पर पहुंचने का मजबूत दावेदार माना जा रहा था। लेकिन जब वास्तविक प्रतिस्पर्धा की बात आई तो भारतीय खिलाड़ियों में आवश्यक गति की कमी नजर आई।
लवलीना-निकहत ने किया निराश
निशांत को अपवाद माना जा सकता है क्योंकि क्वार्टर फाइनल में विवादास्पद परिणाम के कारण वह पदक से वंचित हो गए। जहां तक जरीन और लवलीना का सवाल है तो वह अपनी मजबूत प्रतिद्वंदियों के सामने संघर्ष करती हुई नजर आईं। अमित पंघाल (51 किग्रा) अपनी पिछली फॉर्म को दिखाने में नाकाम रहे। लवलीना, पंघाल और निशांत को पदक सुरक्षित करने के लिए सिर्फ दो जीत की जरूरत थी।