10 हजार साल में एक बार चलने वाली गर्म हवाओं के कारण यह स्थिति यूरोपीय देशों में बनी है. दिल्ली में भी पारा 49 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया. इसके उलट न्यूजीलैंड में सर्दी ने 55 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. यहां बर्फीला तूफान आया हुआ है. इस कारण बर्फ से सड़कें और हवाई अड्डे पट गए हैं.
अंटार्कटिका, खाड़ी देश, यूरोप, पाकिस्तान, भारत, अमेरिका और न्यूजीलैंड के मौसम में भारी बदलाव देखने को मिला है. इसे आम भाषा में एक्सट्रीम वेदर कंडीशन कहा जाता है, जो दुनिया में तबाही का संकेत देती है. जून के आखिर में हुए मौसम के बदलाव और उनके अलग-अलग कारणों पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि कनाडा में हीड डोम की स्थिति बनी हुई है. जिसके कारण लोग लू के थपेड़ों का सामना कर रहे हैं .
कनाडा में इससे पहले 1937 में कई इलाकों का तापमान 45 डिग्री तक पहुंच गया था. लेकिन इस बार पहले से भी घातक स्थिति देखने को मिल रही है. जिसके कारण स्कूल और कॉलेज से लेकर वैक्सीनेशन केंद्र तक बंद हैं. वहीं मृतकों की संख्या 400 से अधिक हो गई है (Canada Heat Dome). वैंकूवर जैसे स्थानों में सड़कों पर पानी का फव्वारा छोड़ने वाली मशीनें लगाई गईं हैं.
साफ है कि वैश्विक तापमान के बढ़ते खतरे ने आम आदमी के दरवाजे पर दस्तक दे दी है. दुनिया में कहीं भी एकाएक बारिश, बाढ़, बर्फबारी, फिर सूखे का कहर यही संकेत दे रहे हैं.
इस समय न्यूजीलैंड का तापमान 11 से 15 डिग्री रहता है, जो घटकर एक से चार डिग्री नीचे चला गया है. आर्कटिक की ओर से आ रही बर्फीली हवाओं ने समुद्र की लहरों में ज्वार ला दिया है. ओलावृष्टि के साथ भयंकर बारिश भी हो रही है.