इस बँटवारे के लिए राम मनोहर लोहिया ने ‘भारत विभाजन के गुनहगार’ में बँटवारे के आठ मुख्य कारण गिनवाए हैं । एक-ब्रितानी कपट, दो-कांग्रेस नेतृत्व का उतारवय, तीन-हिन्दू-मुसलिम दंगों की प्रत्यक्ष परिस्थिति, चार-जनता में दृढ़ता और सामर्थ्य का अभाव, पाँच-गाँधी जी की अहिंसा, छह-मुसलिम लीग की फूटनीति, सात-आये हुए अवसरों से लाभ उठा सकने की असमर्थता और आठ-हिन्दू अहंकार।
गणेश शंकर विद्यार्थी का साप्ताहिक पत्रिका प्रताप में लिखा वह लेख आज भी प्रासंगिक है जो उन्होंने “धर्म की आड़” नाम से लिखा था। उन्होंने लिखा, ‘देश में धर्म की धूम है और इसके नाम पर उत्पात किए जा रहे हैं। लोग धर्म का मर्म जाने बिना ही इसके नाम पर जान लेने या देने के लिए तैयार हो जाते हैं।’ हालांकि, इसमें वे आम आदमी को ज्यादा दोषी नहीं मानते। अपने इस लेख में वे आगे कहते हैं, ‘ऐसे लोग कुछ भी समझते-बूझते नहीं हैं। दूसरे लोग इन्हें जिधर जोत देते हैं,ये लोग उधर ही जुत जाते हैं।’
सोचने वाली बात है कि हम जिस देश में रह रहे हैं उसकी 75 प्रतिशत आबादी मुस्लिम नहीं है। लेकिन इसके बावजूद इस देश को ज़ुबान, मज़हब और सूबों के नाम पर बांट दिया गया है। इन्हीं सबके बीच कुछ ऐसी ताक़तें भी हैं, जो समय समय पर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करती रहती हैं। बहरहाल ऐसी ताक़तें पहले भी थी और मनुष्य के अस्तित्व तक अपना कुचक्र रचती रहेंगी। बस जरूरत है अपनी गंगा-जमुनी तहजीब को बचाये रखने की। हाल फिलहाल फ्रांस की घटनाओं को लेकर जिस तरह से भारत में कुछ तत्वों द्वारा उग्र प्रदर्शन कराये जा रहे हैं और हिंसक विचार व्यक्त किये जा रहे हैं वे पूरी तरह अनुचित हैं। क्योंकि भारत का संविधान शान्तिपूर्ण प्रदर्शन की इजाज़त ही देता है। गनीमत है कि कुछ बड़े शहरों के अलावा कट्टरपंथियों का असर देश के अधिसंख्य इलाकों में नहीं है। क्योंकि वतनपरस्त मुसलमानों ने इसे बहुत संजीदगी के साथ लिया है और धैर्य का परिचय दिया है।