मध्य प्रदेश की शिवराज कैबिनेट ने शनिवार (26 दिसंबर) को लव जिहाद के खिलाफ ‘धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम 2020’ को मंजूरी दे दी. ऐसा करने वाला मध्य प्रदेश दूसरा राज्य बन गया है. इससे पहले उत्तर प्रदेश में योगी कैबिनेट से मंज़ूरी के बाद विधानसभा में पारित होने के साथ ही वहां यह कानून लागू कर दिया गया है. तुलनात्मक रूप से मध्य प्रदेश में शिवराज कैबिनेट से पास हुआ बिल उत्तर प्रदेश से ज्यादा सख्त नज़र आ रहा है.
आखिर उत्तर प्रदेश से कितना अलग है मध्य प्रदेश का लव जिहाद के खिलाफ कैबिनेट से पास हुआ अध्यादेश, आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में.
दरअसल, अध्यादेश के मुताबिक, मध्य प्रदेश में प्रलोभन, धमकी, प्रपीड़न, विवाह या किसी अन्य कपट पूर्ण साधन द्वारा धर्म परिवर्तन कराने वाले या फिर उसका प्रयास या षड्यंत्र करने वाले को, 5 वर्ष तक के कारावास के दंड और अर्थदंड 25,000 रुपए से कम नहीं होगा. वहीं, उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने इसके लिए 15,000 रुपए के अर्थदंड का प्रावधान रखा है. यहां भी अधिकतम 5 साल तक की सजा का प्रावधान है.
मध्य प्रदेश में अपराध यदि किसी नाबालिग या अनुसूचित जाति जनजाति की महिला/युवती के साथ किया जाता है तो इसके लिए 10 साल तक की सज़ा और 50,000 रुपए के अर्थदंड का प्रावधान है, जबकि उत्तर प्रदेश में इसके लिए 25,000 रुपए के अर्थदंड का प्रावधान है. साथ ही यहां 3 साल से लेकर अधिकतम 10 साल तक की सज़ा का प्रावधान रखा गया है.
मध्य प्रदेश में सामूहिक रूप से विधि विरुद्ध धर्म-परिवर्तन कराने वाले को भी 10 साल तक के कारावास और 1 लाख रुपए के अर्थदंड से कम नहीं होगा. वहीं, उत्तर प्रदेश में इसके लिए 50,000 रुपए के अर्थदंड का प्रावधान है.
मध्य प्रदेश में विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन शून्य घोषित होगा और धर्म परिवर्तन करके किया गया विवाह भी शून्य घोषित होगा, लेकिन ऐसे विवाह के बाद पैदा हुई संतान वैध होगी और उसे अपने पिता की संपत्ति में अधिकार प्राप्त होगा. इसके अलावा ऐसी संतान और उसकी मां विवाह शून्य घोषित होने के बाद भी संतान के पिता से भरण पोषण प्राप्त कर सकेंगे. जबकि, उत्तर प्रदेश के कानून में यह प्रावधान नहीं है.
एमपी और यूपी के कानूनों में समानता?
आपको बता दें कि लव जिहाद के खिलाफ़ लाए गए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कानूनों में कुछ समानताएं भी हैं. जैसे कि धर्म परिवर्तित व्यक्ति उसके माता, पिता या भाई-बहन को पुलिस थाने में इस अधिनियम में कार्यवाही किए जाने के लिए शिकायत करने का अधिकार रहेगा.
साथ ही अधिनियम के तहत दर्ज अपराध संज्ञेय और गैर जमानती होगा और मामले की जांच सब-इंस्पेक्टर स्तर या उससे उच्च पद का अधिकारी ही कर सकेगा. धर्म परिवर्तन कराने वाली संस्था या संगठन के विरुद्ध भी व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध पर दिए जाने वाले कारावास तथा अर्थदंड के समकक्ष प्रावधान किए गए हैं और ऐसी संस्थाओं तथा संगठनों के पंजीयन को निरस्त कर दिया जा सकेगा.