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मैं जोकर या तुम जोकर!

मेली बुआ की थादी में जलूल जलूल…जलूल आना’ शादियों या लग्न के मौके पर शादी के निमंत्रण पत्रों पर इस तरह के अव्यवहारिक सन्देश अक्सर लिखे आपने देखे होंगे।
विश्व की प्राचीनतम सामाजिक व्यवस्थाओं में शादी प्रमुख है। विद्वान इसका अर्थ – आत्माओं का मिलन, परिवारों का मिलन, संस्कारों का मिलन…इत्यादि कई प्रकार से बताते हैं।
व्यवस्था और जुगाड़:-
कुछ तो ये भी कहते हैं – शादियाँ जब होती हैं तो उनकी जोड़ियाँ स्वर्ग में बनाई जाती हैं – पूरा व्यवस्था और जुगाड़ मृत्युलोक यानि कि पृथ्वी पर होता है – जाहिर है सारे so called Single  यानि की आविवाहित नरक में रहते हैं – ऐसा भी प्रतीत नहीं होता है और उनके भी जीवन खुशहाल रहते हैं और ऐसा सुनने में भी आता है और प्रतीत भी होता है।
जितनी भी सामाजिक रीतियां वर्तमान में व्याप्त हैं उनमे शादी या ब्याह की रीति सबसे पुरानी और शायद सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से भी इसका महत्व अतुलनीय रहा है। हिन्दू समाज में तो देवों के देव श्री महादेव द्वारा प्रदत्त अर्धनारीश्वर का रूप ही शादी का प्रतिस्थापन और प्रतिपादन के लिए सर्वोपरि माना गया है। इसी स्वरूप में संसार के विकास की कहानी भी निहित है और पुराणों में तो यहाँ तक कहा गया है कि यदि देवाधिदेव शिव और माता श्री आदिशक्ति पार्वती इस स्वरूप को धारण नहीं करते तो शायद सृष्टि का सृजन ही संभव नहीं होता।
ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि रचना का कार्य समाप्त किया तब देखा कि विकास की गति शिथिल है – रचित जीवों की जनसंख्या कदाचित स्थिर है। परिणामतः सृष्टि के उद्भव को व्याकुल ब्रह्म देव भगवान विष्णु के पास पहुंचे – श्री नारायण ने उन्हें शिव जी की आराधना का विमर्श दिया। भगवान शिव ने ब्रह्मदेव को मैथुनी सृष्टि की रचना का आदेश दिया। ब्रह्मा जी को मैथुनी सृष्टि का रहस्य समझाने के लिए महादेव ने अपने शरीर के अर्ध भाग को नारी रूप में प्रकट कर दिया, इसके बाद नर और नारी भाग अलग हो गये।
तत्पश्चात ब्रह्मदेव की प्रार्थना पर शिवा अर्थात शिव के नारी स्वरूप ने अपने रूप से एक अन्य नारी की रचना की और ब्रह्मा जी को सौंप दिया। तदोपरांत मैथुनी सृष्टि से संसार का विकास गतिशील हुआ।
शिव के नारी स्वरूप ने कालांतर में हिमालय की पुत्री पार्वती रूप में जन्म लेकर शिव से मिलन किया।
दसेक साल पहले शादी एक जन्म जन्मान्तर का सम्बन्ध कहीं कहीं तो सात जन्मों का सम्बन्ध माना जाता था – खास करके हिंदुस्तान के सन्दर्भ में यदि बात की जाये तो।
कहना गलत न होगा हमारी भारतीय सभ्यता धीरे धीरे, अब तो यूँ कहें के काफी गति से, पश्चिमी सभ्यता का खास करके अमरीकी सभ्यता का अंधा अनुकरण करने लगी है।
तलाक होगा कम:-
दुनिया के सबसे विकसित देश अमरीका की बात करें तो वहां लोगों का ऐसा मानना है की भविष्य में उनके देश में Divorce यानि तलाक की संख्या काफी कम हो जायेगी और ऐसा इसलिए होगा क्योकि शादियों की संख्या काफी कम हो जायेगी – रुचिकर है शादियाँ होंगी ही नहीं तो तलाक होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
जाहिर है भगवान शिव की मैथुनी प्रक्रिया समाज में तो रहेगी परंतु अनेकानेक जुगाड़ों के साथ, अर्थात – लिव-इन संबंधो की स्वीकृति,Gay  या Lesbians या फिर सम लैंगिक विवाह समाज में स्वीकृत होगा। कुछ काल खंड के उपरांत शायद हमारे देश में भी अविवाहित माताओं की संख्या भी काफी बढ़ जायेगी जो कि विकसित देशों में एक प्रचलन जहाँ  कीunwed mothers  पे कोई भी प्रश्नवाचक चिन्ह नहीं लगाता है – फिल्म अभिनेत्री नीना गुप्ता ने करीब दो दशक पहले इस परिपाटी का शुभारम्भ भारत देश में किया और वेस्ट इंडीज के क्रिकेट स्टार विव रिचर्ड्स के बच्चे की अनब्याही माँ बनी उस वक्त पिता का नाम आवश्यक होता था और विव रिचर्ड्स ने खुशी खुशी दिया भी था। आम हिंदुस्तानी किसी भी क्रांति को धीरे धीरे अपनाता है लेकिन जब अपनाता है तो जबरदस्त – सोलह सौ साल गुलाम रहने के बाद हमारे देश के छात्र कश्मीर को आजाद करके दुश्मन देश को सौपना चाहता है – भले ही उसके लिए देश ले टुकड़े करने पड़ें। अर्थात अनब्याही माँ वाली क्रांति को भी देश खुशी खुशी अपना लेगा – हो सकता है अगर उक्त माँ से पिता का नाम पूछा जाये तो वो कहे की ‘अभी डायरी देख के बताती हूँ’’।
शादी की प्रथा खतरें में-
अमरीका की एक संस्था Pew Research Center  ने अपने एक लेख The Decline of Marriage and Rise of New Families’ में लिखा है कि अमरीका में शादी की प्रथा ही खतरे में है क्योकि 1960 में 72 प्रतिशत सुयोग्य लोग शादी शुदा थे और 2008 में यह प्रतिशत घट के 52 प्रतिशत के लगभग रह गई अर्थात 48 प्रतिशत शादी योग्य लोगों ने शादी में रूचि नहीं दिखाई।
स्मरण रहे अमरी काGender Equality या फिर लैंगिक विषमताओं को तिरस्कृत करने वाला संसार का अग्रणी देश रहा है।
संस्था के अनुसार बीसवी सदी के मध्य तक एक Ozzie and Harriet  मॉडल अर्थात ‘रोटी कमाने वाला पति और घर चलाने वाली पत्नी’ सर्वसम्मति से स्वीकृत था परंतु अभी ये मात्र 30 प्रतिशत लोगों की रूचि का पर्याय है। बहुमत अर्थात 62 प्रतिशत लोग ये मानते हैं कि शादियाँ तब सफल होती हैं जबकि पति और पत्नी दोनों काम करते हों और घर, बच्चे इत्यादि की जिम्मेदारी मिलजुल के सम्हालते हों।
भारतीय परिपेक्ष में देखें तो आज की नारी खुद तो अपने पैर पे खड़ा रहना चाहती है पर उसकी नजर पति की कमाई और जाएजाद पर पूरी पूरी लगी रहती है – हो भी क्यों न आखिर अर्धांगिनी है, फिर पति के साथ से सामाजिक सुरक्षा भी चाहती है, आजाद भी रहना चाहती है और तलाक भी नहीं देना चाहती है – अनेकता में एकता शायद यही है भारतीय पत्नियों की विशेषता या फिर संक्षेप में कई विसंगतियों का संयोग।
वैसे भी Joint Sector  की Economy के तौर पे विगत 70 सालों से हम अपने सिद्धांत लगातार चलाये जा रहे है – ‘सोने की चिड़िया’ पे, जिसे हम प्यार से ‘हिंदुस्तान’ कहते हैं।
हिन्दू मान्यताओं में सारे विशिष्ठ देवताओं को काफी परिश्रम करना पड़ा परिवार रूपी संस्था को स्थापित और प्रतिपादित करने के लिए – ईसाई और इस्लामिक मान्यताओं में तो ।dam और  Eve या फिर आदम और हव्वा पहले से थे।
ठगा सा महशूस कर रहें हैं:-
फिर भी आज के युग में यदि ये देव गण, किसी भी समुदाय के, अपनी कृतियों का अवलोकन करेंगे तो ठगा सा और असफल सा महसूस करेंगे। अर्थात देवता भी अपने अंदर दुःख के पहाड़ समेटे रहते हैं फिर सुखी और प्रसन्न दिखने का प्रयास करते रहते हैं।
महाकवि श्री गोपाल दास नीरज जी की एक कविता बहुचर्चित फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ से याद आती है कि ‘अपने पे हंस के सबको हंसाया, बन के तमाशा जीवन में आया’ ये खूबियां एक जोकर में ही हो सकती है।Show must go on कह के अपनी माँ की मृत्यु पे भी हंसना पड़े ऐसा सिर्फ और सिर्फ एक जोकर ही कर सकता है। इसी फिल्म में जब युवा ऋषि कपूर ने जब मनोज कुमार से सबसे बड़े जोकर के बारे में पूछा तो उन्होंने आकाश की तरफ इशारा कर दिया।
सबसे बड़े खतरे को समझते बूझते, सामना करने और परिस्थिति से मुस्कुराते हुवे लड़ने वाले को जोकर ही कहा जा सकता है।
दुखों की चादर लपेटे हमारे विशिष्ठ देव गण अपने श्रद्धालुओं को प्रसन्न रखने के चक्कर में कहीं जोकर तो नहीं बनते जा रहे हैं?
कभी कभी ऐसा भी प्रतीत होता है की टूटते विवाह सम्बन्ध और तनाव ग्रस्त जीवन शैली से खीझे हुवे महादेव और माता शक्ति अपने अर्धनारीश्वर स्वरुप में एक दूसरे से मॉडर्न कालीन भाषा में पूछ रहे हों कि ‘डार्लिंगः मुझमें तुझमें जोकर कौन?’

संकलन
सौमित्र गांगुली

 

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