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अधिकार के साथ कर्तव्य का महत्व

डॉ दिलीप अग्निहोत्री
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

संविधान दिवस वस्तुतः कर्तव्य बोध का अवसर होता है। देश को संविधान के अनुरूप चलाने में जन सामान्य का भी योगदान रहता है। उनकी भी इसमें भूमिका होती है। इसी लिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना हम भारत के लोग से हुई है।संविधान सभा ने छब्बीस नवम्बर उन्नीस सौ उनचास को संविधान पारित किया। लेकिन इसे छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास को विधिवत लागू किया गया। यह हमारा गणतंत्र दिवस हुआ।आजादी के पहले छब्बीस जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता था। इसका निर्णय उन्नीस सौ उनतीस के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन लिया गया था। देश पन्द्रह अगस्त को स्वतंत्र हुआ।

ऐसे में इस तिथि को गणतंत्र दिवस के रूप में राष्ट्रीय पर्व की प्रतिष्ठा प्रदान की गई। जबकि छब्बीस नवम्बर भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया। प्रस्तावना के माध्यम से ही संविधान निर्माताओं ने इसके स्वरूप को रेखांकित कर दिया था।

प्रस्तावना में कहा गया कि हम भारत के लोग,भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख छबीस नवम्बर उन्नीस सौ उनचास ई मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत,अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। भारत के मूल संविधान में अधिकारों का प्रावधान किया गया था। इसके लिए मूलाधिकार अध्याय बनाया गया था। लेकिन उसमें मूल कर्तव्यों का उल्लेख नहीं था। बाद में यह अनुभव किया गया कि नागरिकों के कुछ मूल कर्तव्यों का भी प्रावधान होना चाहिए।

कर्तव्यों के बिना अधिकार अधूरे होते है। दूसरे शब्दों में जब हम अधिकारों का उपयोग करते है, तब हमारे राष्ट्र व समाज के प्रति कर्तव्य भी होते है। इसी विचार के अनुरूप संविधान में संशोधन करके इसमें मूल कर्तव्य शामिल किए गए। इसके लिए संविधान में अनुछेद इक्यावन ए का सृजन किया गया। इसके अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे। स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे। भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे। देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।

भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म. भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुंद्ध है।
हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे; प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे। सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे; व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।

यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे।बयालीस वें संविधान संशोधन में दस मूल कर्तव्य जोड़े गये। संविधान के भाग चार क के अनुच्छेद इक्यावन अ में रखे गये हैं। वर्तमान में ग्यारह मूल कर्तव्य हैं। इसे छियासी वें संविधान संशोधन में जोड़ा गया। संविधान सभा के लिए जुलाई उन्नीस सौ छियालीस में चुनाव हुए थे। देश के विभाजन के कारण संविधान सभा भी विभाजित हुई। पाकिस्तान की संविधान सभा। भारतीय संविधान सभा में दो सौ निन्यानवे सदस्य बचे। दो वर्ष ग्यारह माह अठारह दिन में संविधान बना। इसमें तीन सौ पंचानवे अनुच्छेद, बारह अनुसूची और बाइस भाग है।

भारतीय संविधान बाइस भागों में विभजित है तथा इसमे तीन सौ पंचानबे अनुच्छेद एवं बारह अनुसूचियां है। संघ और उसके क्षेत्र, नागरिकता मूलभूत अधिकार, राज्य के नीति निदेशक तत्व, मूल कर्तव्य, संघ,राज्य
संघ राज्य क्षेत्र, पंचायत,स्थानीय शासनअनुसूचित और जनजाति क्षेत्र,संघ और राज्यों के बीच संबध,वित्त,संपत्ति, संविदाएं और वाद भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम, संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं, अधिकरण,कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध, राजभाषा आपात उपबंध,प्रकीर्ण संविधान के संशोधन,अनुच्छेद, अस्थाई संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध,का प्रावधान है। संविधान दिवस पर संसद के सेन्ट्रल हॉल में आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के नेतृत्व में संविधान की उद्देशिका का वाचन किया गया।

इस अवसर पर संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित संविधान दिवस कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद,प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भाग लिया। नरेंद्र मोदी ने कहा कि परिवार आधारित पार्टियों के रूप में भारत एक तरह के संकट की तरफ बढ़ रहा है। यह संविधान व लोकतंत्र में आस्था रखने वालों के लिए चिंता का विषय है। योग्यता के आधार पर एक परिवार से एक से अधिक लोग के राजनीति में आने से कोई पार्टी परिवारवादी नहीं बन जाती है। समस्या तब आती है जब एक पार्टी पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार द्वारा चलाई जाती है। इससे संविधान की भावना को भी चोट पहुंची है। एक परिवार द्वारा संचालित पार्टी लंबे कालखंड तक एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।

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