Breaking News

विकासशील देशों को रेटिंग देने वाली पद्धतियों में सुधार करें एजेंसियां, पारदर्शी तरीके अपनाएं

वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की ओर से रेटिंग देने के लिए उपयोग की जाने वाली पद्धतियां विकासशील देशों के खिलाफ बहुत ज्यादा हैं। उन्हें अधिक पारदर्शी बनाने के लिए रेटिंग प्रक्रिया में सुधार की तुरंत जरूरत है। मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन व वरिष्ठ सलाहकार राजीव मिश्रा की ओर से लिए गए एक लेख में यह बातें कही गईं हैं। लेख में यह कहा गया है कि ये विचार वित्त मंत्रालय के नहीं हैं।

लेख के अनुसार, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की ओर से अपनाए जाने वाले रेटिंग तंत्र में व्यक्तिपरक निर्णयों के बजाय अच्छी तरह से परिभाषित, मापने योग्य सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करते हुए गंभीर सुधार की जरूरत है। लेख के मुताबिक, आने वाले दशकों में वैश्विक चुनौतियों से निपटने में निजी पूंजी की भूमिका होगी। ऐसे में विकासशील देशों के लिए कर्ज की लागत में थोड़ी सी कमी भी बहुत मददगार साबित होगी। इसके साथ ही, कर्ज लेने वाले देशों के लिए अरबों डॉलर बचाया जा सकता है।

सामूहिक जिम्मेदारी से परिचित है भारत
एक दूसरे लेख में लेखकों ने कहा, भारत अपनी सामूहिक जिम्मेदारी से परिचित है। उसने अपने एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) और नेट-शून्य 2070 घोषणा के माध्यम से महत्वाकांक्षी लक्ष्य उठाया है। भारत वैश्विक प्रतिक्रिया में किस हद तक योगदान कर सकता है, यह काफी हद तक वित्त, क्षमता और टेक्नोलॉजी की समय पर पर्याप्त और उपयुक्त तरीके से उपलब्धता पर निर्भर है।

15 वर्षों से बीबीबी- पर स्थिर है भारत की रेटिंग
लेख में कहा गया है कि पिछले 15 वर्षों से भारत की रेटिंग बीबीबी- पर स्थिर है। इसके बावजूद यह 2008 में दुनिया की 12वीं सबसे बड़ी से 2023 में 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। इस अवधि के दौरान सभी समकक्ष देशों में दूसरी सबसे ऊंची विकास दर दर्ज की गई। कई देशों की ओर से सामना किए जा रहे कर्ज के बोझ और गैर-जलवायु संबंधित सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने व आर्थिक विकास की बहाली के लिए निवेश की जरूरत है।

About News Desk (P)

Check Also

कल्पतरु लिमिटेड का आरंभिक सार्वजनिक निर्गम 24 जून को खुलेगा

मुंबई। महाराष्ट्र के मुंबई महानगर क्षेत्र की एक प्रमुख रियल एस्टेट डेवलपर और एमएमआर के ...