भारत की मुखालफत करना पाकिस्तान की रग-रग में है। अब तो यह उसकी फितरत हो गई है। यह उसकी विदेश नीति का प्रमुख एजेंडा बन चुका है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद से देश दुनिया से अलग-थलग पड़ चुका पाकिस्तान ने हर मंच का इस्तेमाल केवल भारत के विरोध के रूप में किया है। इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र के मंच से तो उसने परमाणु युद्ध की गीदड़ भभकी भी दे चुका है। एक बार फिर स्वीटजरलैंड के दावोस में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत के खिलाफ जहर उगला है।
दावोस में इमरान ने उगला जहर
विश्व आर्थिक सम्मेलन World Economic Forum 2020 में हिस्सा लेने गए इमरान ने भारत के खिलाफ एक बार फिर जहर उगला है। इमरान ने भरे सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र से अनुच्छेद 370 का मुद्दा उठाया। उन्होंने दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए कदम उठाने की अपील की। उन्होंने एक बार फिर परमाणु हथियारों का जिक्र करते हुए कहा कि दुनिया को इस हथियार के इस्तेमाल के पूर्व तनाव को कम करने की पहल करनी चाहिए। इस मंच में इमरान ने कहा कि संशोधित नागरिकता कानून और कश्मीर मुद्दे को लेकर घरेलू प्रदर्शनों से ध्यान हटाने से सीमा पर तनाव बढ़ सकता है। दावोस में मंच की वार्षिक बैठक से इतर अंतरराष्ट्रीय मीडिया परिषद को दिए एक इंटरव्यू में खान ने कहा कि दो ऐसे परमाणु हथियार संपन्न देशों को संघर्ष के बारे में सोचना तक नहीं चाहिए।
इमरान ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भेंट की
इमरान ने कहा कि इसके लिए संयुक्त राष्ट्र और खासकर अमेरिका को पहल करना चाहिए। खास बात यह है कि इससे एक दिन पूर्व उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भेंट की थी, जिन्होंने कश्मीर मामले में मदद की अपनी पेशकश फिर दोहराई। खान ने यह मांग भी की कि भारत और पाक में नियंत्रण रेखा पर संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह को मंजूरी दी जाए। भारत कहता रहा है कि जनवरी 1949 में बना पर्यवेक्षक समूह की अपनी उपयोगिता खो चुका है और शिमला समझौते और उसके बाद नियंत्रण रेखा बनने से यह अप्रासंगिक हो चुका है।
बता दें कि 2018 में इमरान का प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद से दोनों देशों के बीच जबरदस्त तनाव है।
इमरान को याद आया पुलवामा आतंकी हमला
पुलवामा हमले के बाद से दोनों देशों के बीच संबंध काफी तल्ख हो गए हैं। इमरान ने कहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद जब उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संपर्क किया तो दोनों देशों के बीच पुलवामा हमला एक बड़ी दीवार थी। इसके बाद जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद चीजें बद से बदतर हो गईं। इसके बाद भारत के नागरिकता कानून ने आग में धी का काम किया। इससे दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है।
चीन के सहयोग के बावजूद संयुक्त राष्ट्र में मुंह की खाई पाक ने
पिछल वर्ष अगस्त में पाकिस्तान ने कश्मीर मामले में सुरक्षा परिषद में भी गुहार लगाई, लेकिन यहां भी उसको मुंह की खानी पड़ी। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान और उसके सहयोगी चीन ने कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण किया, लेकिन उनकी कोशिश नाकाम रही। इस बैठक में शामिल 15 सदस्यों ने सुरक्षा परिषद में साफतौर पर कहा था कि कश्मीर नई दिल्ली और इस्लामाबाद का द्विपक्षीय मसला है। ज्यादातर सदस्यों ने कहा कि बैठक के बाद कोई बयान या परिणाम जारी नहीं किया जाना चाहिए। चीन ने अपनी राष्ट्रीय क्षमता के आधार पर बयान दिया। हालांकि भारत ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है। पाकिस्तान के पास संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को उठाए जाने के सभी आधार बेबुनियाद हैं।