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अमर वीरों के बलिदान को न भूलने वाला पर्व है स्वतंत्रता दिवस: कौशलेन्द्र पोरवाल

औरैया। भारत के राष्ट्रीय त्योहारों में से एक है हमारा स्वतंत्रता दिवस, एक ऐसा दिन जब भारत आज़ाद हुआ था। कहने को अंग्रेज़ भारत छोड़ कर चले गए थे, लेकिन यह आजादी और भी कई मायनों में ज़रुरी और अलग थी। हम अब न तो शारीरिक रूप से गुलाम थे और न ही मानसिक तौर पर। हमें खुल के बोलने, पढ़ने, लिखने, घूमने हर क्षेत्र में आजादी मिल गयी थी।

अंग्रेजों का भारत आगमन

बात उन दिनों की है जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। 17वीं शताब्दी में अंग्रेज़ व्यापार करने भारत आए, उस समय यहां मुगलों का शासन था। धीरे-धीरे अंग्रेजों ने व्यापार के बहाने अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाया और कई राजाओं को धोखे से युद्ध में हरा के उनके क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया।

18वीं सदी तक ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से अपना वर्चस्व स्थापित कर, अपने आस-पास के क्षेत्रों को वशीभूत कर लिया। भारत एक गुलाम के तौर पर हमें एहसास हो चुका था कि हम गुलाम बन चुके हैं। हम अब सीधे ब्रितानी ताज़ के अधीन थे।

शुरू-शुरू में अंग्रेजों ने हमें शिक्षित करने या हमारे विकास का हवाला देकर हम पर अपनी चीज़े थोपना शुरू कि फिर धीरे-धीरे वह, उनके व्यवहार में शमिल हो गया और वे हम पर शासन करने लगे।अंग्रेजों ने हमें शारीरिक, मानसिक हर तौर से प्रताड़ित किया। इस दौरान कई युद्ध भी हुए, जिसमें सबसे प्रमुख था द्वितीय विश्व युद्ध, जिसके लिए थोक के भाव में भारतियों की सेना में जबरन भर्ती की गयी। भारतीयों का अपने ही देश में कोई अस्तित्व नहीं रह गया था, अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग जैसे नरसंहार को भी अंजाम दिया और भारतीय केवल उनके दास मात्र बन के रह गए थे।

नए दौर में स्वतंत्रता दिवस के मायने

स्वतंत्रता दिवस समारोह की तैयारी बड़े ज़ोरो-शोरों से की जाती है, लाल किले के प्राचीर से हर वर्ष हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी तिरंगा फहराते हैं। उसके बाद राष्ट्र गान एवं उनके भाषण के साथ कुछ देशभक्ति कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते है, जिनका आनंद हम वहां प्रस्तुत हो कर या घर बैठे वहां के सीधे प्रसारण से ले सकते हैं।हर वर्ष इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि किसी अन्य देश से बुलाए जाते हैं। स्वतंत्रता दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व है और इस मौके पर सारे स्कूल, कॉलेज, कार्यालय सब बंद रहते हैं। यह एक ऐसा पर्व है जिसे पूरा देश एक जुट हो के मनाता है, बस सबके ढ़ग अलग-अलग होते हैं। कोई नई पोशाक पहन के तो कोई देशभक्ति गीतों को सुन के इस दिन को मनाता है।

निष्कर्ष- यह पर्व हमें अमर वीरों के बलिदान के साथ-साथ इतिहास को न भूलने का स्मरण कराता है, ताकी दोबारा किसी को व्यापार के बहाने शासन का मौका न दिया जाए और आज के युवा पीढ़ का परिचय उनके गौरवपूर्ण इतिहास से कराया जाता है। भले ही स्वतंत्रता दिवस मनाने के सबके तरीके अलग हों, मकसद एक ही होता है। सब मिल-जुल कर एक दिन देश के लिए जीते हैं, स्वादिष्ट पकवान खाते हैं और मित्रों को मुबारक बाद देते हैं।

रिपोर्ट-अनुपमा सेंगर

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