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 जाने-अंजाने ऐसे पहुंच रहा स्पाइन को होता है नुकसान

कहते हैं मजबूत इन्सान वो है, जिसकी रीढ़ सीधी है. बहरहाल, आधुनिक ज़िंदगी शैली का सबसे ज्यादा बोझ रीढ़ यानी स्पाइन को झेलना पड़ रहा है. लैपटॉप पर कार्य करते हुए घंटों एक ही जगह पर बैठना है या हर एक मिनट बाद मोबाइल देखने की आदत, हर बार स्पाइन पर प्रभाव पड़ता है.

यह मोबाइल ही है जिसके कारण आज 12 से 14 साल के बच्चों में नर्व  स्पाइन की समस्याएं घर करने लगी हैं. कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल के अध्ययन के अनुसार, 20 से 40 वर्ष आयु वर्ग के लोगों में सर्वाइकल स्पाइन, स्लिप डिस्क, रिपिटिटिव स्ट्रेस इन्जरी, सोर बैक  लिगामेंट की चोट जैसी समस्याएं आम हो गई हैं.” बेंगलुरू स्थित नेशनल एयरोनॉटिकल लैबोरेट्री के एक अध्ययन के अनुसार, उबड़-खाबड़ सड़क भी स्पाइन को क्षतिग्रस्त कर रही है्. यानी दिनभर में ऐसा बहुत कुछ होता है, जिस पर लोग ध्यान नहीं देते  एक दिन स्पाइन की समस्या बेकाबू हो जाती है  सीधा चिकित्सक से पास जाना पड़ता है. उपचार भी बहुत जटील है. आमतौर पर चिकित्सक सर्जरी से बचते हैं, क्योंकि लकवा समेत कई जोखिम रहते हैं.

  • लगातार एक ही जगह पर बैठना

  • बैठने की गलत स्थिति यानी कंधे  रीढ़ की हड्डी झुकाकर बैठना

  • गर्दन झुकाकर घंटों मोबाइल देखना

  • कार ड्राइव करते समय बैठने का गलत तरीका

  • सोते समय गलत पोजिशन होना

  • असावधानीपूर्वक भारी वजन उठाना

  • शरीर का सामान्य से ज्यादा वजन बढ़ना

  • रीढ़ की हड्डी पर जोर देने वाला एक ही कार्य लगातार करना

  • कैल्शियम की कमी

  • लगातार स्मोकिंग

  • किडनी की समस्या

 इनके अतिरिक्त अन्य कारणों में  शामिल हैं – गठिया, ओस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियों की कमजोरी, डिस्क में चोट लगना  स्पाइन स्टेनोसिस. स्पाइन स्टेनोसिस यानी रीढ़ की हड्डी के बीच का मार्ग कम हो जाना, जहां से नसें निकलती हैं. इससे रक्त प्रवाह प्रभावित होता है.

myupchar.com से जुड़े एम्स के डाक्टर के एम नाधीर बताते हैं, ‘रीढ़ की हड्डी में दर्द की आरंभ गर्दन से होती है. इसके बाद पीठ के बीच वाले हिस्से  निचले हिस्से के साथ दर्द पूरी रीढ़ में फैल जाता है. इसके बाद दर्द दूसरे अंगों में भी फैल सकता है जैसे – कंधे, हाथ, कूल्हे, पैर.

जो लोग एक ही जगह पर लगातार बैठकर कार्य करते हैं, उनकी स्पाइन पर तनाव पड़ता है. इससे लिगामेंट में स्प्रेन का खतरा बढ़ जाता है, जो वर्टिब्रा को बांधकर रखता है. इसका सबसे बड़ा प्रभाव यह होता है कि रीढ़ की हड्डियों की मांसपेशियां कड़क होने लगती हैं  डिस्क का खतरा बढ़ जाता है.

स्पाइन में कैंसर भी होने कि सम्भावना है

myupchar.com से जुड़े एम्स के डाक्टर उमर अफरोज बताते हैं कि शरीर के अन्य हिस्सों के ट्यूमर रीढ़ की हड्डी को मजबूती प्रदान करने वाली कशेरुकाओं तक फैल सकते हैं. यह स्पाइनल कार्ड को भी अपनी चपेट में ले सकता है. इसके कारण स्पाइन में लगातार दर्द होता है  लकवा भी होने कि सम्भावना है.

जानिए बचाव के तरीके

डाक्टर केएम नाधीर के अनुसार, ‘सबसे पहले नियमित व्ययाम महत्वपूर्ण है. जीवनशैली में बदलाव, अच्छा पोषण, रोज हल्का व्यायाम  कार्यालय में कार्य करते हुए भी थोड़ी-थोड़ी देर तक टहलकर सिटिंग टाइम को कम करके स्पाइन को स्वस्थ्य रखा जा सकता है. यदि पीठ में लंबे समय से दर्द हो रहा है तो कठोर सतह पर सोएं यानी गद्दों  का प्रयोग छोड़ दें. स्ट्रेचिंग अभ्यास को ठीक तरह से करें. योग से शरीर में लचीलापन लाएं. इससे ही तनाव भी कम होगा. स्वीमिंग, साइकिलिंग  वॉकिंग ऐसी अभ्यास हैं जो रीढ़ की हड्डी को प्रभाव डाले बगैर शरीर को फिट रखती है. स्मोकिंग छोड़ दें, क्योंकि इससे एथेरोस्क्लेरोसिस का खतरा बढ़ जाता है जो धमनियों को सख्त बनाता है.

रीढ़ की हड्डी को मजबूत करने के लिए भुजंगासन, बालासन, ताड़ासन  मकरासन लाभकारी है. हालांकि लगातार दर्द बना हुआ है तो चिकित्सक की सलाह के बाद ही ये योगासन करें.

ऑफिस में कार्य करते समय ऐसे बैठें

  • कमर सीधी रखकर बैठें, पैरों को जमीन पर ही रखें

  • यदि कुर्सी पर बैठते समय पैरा हवा में लटक रहे हैं तो इसका दवाब स्पाइन पर पड़ेगा.

  • पैरों को क्रॉस करके न बैठें.

  • आगे की तरफ तरफ न झुकें, पूरा वजन कुर्सी के पिछले हिस्से में रखें.

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