भारत 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में देश ऐतिहासिक बदलाव के मोड़ पर है। काउन्सिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेन्ट एण्ड वॉटर के अनुसार इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए 10.1 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता है।
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भारत को जलवायु परिवर्तन में ग्लोबल लीडर के रूप में स्थापित करने के लिए फाइनैंशियल, तकनीकी एवं सामाजिक बदलावों की ज़रूरत है, जो निवेशकों को अच्छे रिटर्न के अवसर देंगे।
यह निवेश बहुत अधिक भी नहीं है,। चूंकि पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के बिगड़ते प्रभावों से जूझ रही है, ऐसे में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है- न सिर्फ इसलिए कि भारत सबसे तेज़ी से विकसित होती अर्थव्यवस्था है, बल्कि इसलिए भी कि दुनिया की सबसे संवेदनशील आबादी इसी देश में रहती है।
विकार्बोनीकरण की योजनाओं की बात करें तो इससे कई पहलु जुड़े हैं जैसे नवीकरणीय उर्जा, स्थायी परिवहन, हरित हाइड्रोजन, ओद्यौगिक रूपान्तरण और आधुनिक स्टोरेज समाधान। इनमें से हर पहलु मायने रखता है, जलवायु परिवर्तन के जोखिम को कम कर भविष्य के लिए तैयार अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान दे सकता है।
हरित रूपान्तरण
भारत के हरित रूपान्तरण में पावर सेक्टर का योगदान महत्वपूर्ण है, जिसके लिए निवेश के एक बड़े हिस्से -11.2 ट्रिलियन डॉलर- की ज़रूरत है। इसमें नवीकरणीय उर्जा- सोलर, विंड, बायोमास और हाइड्रोपावर पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है।
इसमें से 7.1 ट्रिलियन डॉलर का उपयोग सोलर फार्म और ऑफशोर विंड टरबाईन में किया जाएगा। 3.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि उर्जा के सुगम प्रवाह को सुनिश्चित करने हेतु संचरण, वितरण तथा आधुनिक तकनीकों जैसे हाई-वोल्टेज डायरेक्ट करेंट सिस्टम तथा स्मार्ट ग्रिड्स के लिए तय की गई है।