सबसे पहले महामंडलेश्वर पद के लिए साधु संत का चयन किया जाता है। चयन करने के बाद उन्हें संन्यास की दीक्षा दी जाती है। यहां संन्यास की दीक्षा का मतलब है कि जिनको महामंडलेश्वर पद के लिए चुना जाता है, उनका उन्हीं के हाथों पिंडदान कराया जाता है। उनके पितरों का पिंडदान भी इसमें शामिल होता है। इसके बाद उनकी शिखा यानी चोटी रखी जाती है। उनकी शिखा को अखाड़े में काटा जाता है।
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इसके बाद उन्हें दीक्षा प्रदान की जाती है। इसके बाद महामंडलेश्वर का पट्टाभिषेक किया जाता है। पट्टाभिषेक पूजन बड़ी ही विधि से किया जाता है। महामंडलेश्वर का पट्टाभिषेक दूध, घी, शहद, दही, शक्कर से बने पंचामृत से किया जाता है। सभी 13 अखाड़ों के साधु संत महामंडलेश्वर को पट्टा पहनते हैं।
महामंडलेश्वर बनने के लिए चाहिए ये योग्यता
महामंडलेश्वर बनने के लिए शास्त्री, आचार्य होना आवश्यक है। जिसका महामंडलेश्वर के लिए चुनाव हुआ हो, उसके पास वेदांत की शिक्षा होनी चाहिए। महामंडलेश्वर के लिए किसी मठ से सबंध होना चाहिए। जिस मठ से महामंडलेश्वर बनने वाले का सबंध हो, वहां जनकल्याण के कार्य होने चाहिए। (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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