शरीर तो बहुत लोग छोड़ते हैं लेकिन ब्रह्म में विलीन कोई यूं ही नहीं हो जाता। ब्रह्म में विलीन वही होता है जिसने जीवन भर ब्रह्म की चाह की हो, स्वयं को खपाया हो उसे पाने के लिए। वरना मरने वालों की आत्माएं यूं ही भटकती रह जाती हैं। साधना का स्तर जब उठता है तब ब्रह्म तुम्हारे पास स्वयं ही आने को विवश हो जाता है।
स्वर कोकिला भारतरत्न लता मंगेशकर ने संपूर्ण जीवन मां शारदे की आराधना में समर्पित किया। इष्ट को प्रसन्न करने के लिए कोई पूजा करता होगा, कोई स्तुति करता होगा, परंतु इष्ट निष्ठा के प्रति उनका अंदाज कुछ जुदा ही था। पूजा के लिए शायद वो अलग से समय भले ना निकालती हों, क्योंकि उनका हर गीत ही मां शारदे की स्तुति था।
साल 1929 में, इंदौर, मध्य प्रदेश में जन्म लेने वाली लता मंगेशकर, 13 साल की छोटी-सी उम्र में अपना पहला गीत गाया था। वो साल था 1942…
उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेेेेेेेशकर संगीत और रंगमंच की दुनिया के जाने-माने नाम हुआ करते थे। 36 भाषाओं में 50 हज़ार गाने रिकॉर्ड करने वाली लता मंगेशकर से एक इंटरव्यू में जब उनके सबसे पसंदीदा गाने के बारे में पूछा गया, तो उन्होने कहा कि मैं गाने के बाद अपना कोई गाना दोबारा नहीं सुनती। ऐसा इसलिए क्योंकि, मुझे लगता है कि शायद, मैं इससे भी अच्चा गा सकती थी। यही तो एक तपस्वी की असली पह्चान होती है। यूं ही किसी को भारत रत्न नहीं मिल जाता। उनके जाने से संगीत क्षेत्र में क्षति को पूरा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, पद्मविभूषण, पद्मभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। यही नहीं, 61 वर्ष की उम्र में नेशनल अवार्ड जीतने वाली एकमात्र गायिका रहीं।
लता मंगेशकर के चाहने वालों में राजनीति में भी हैं। किसी ज़माने में उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल रह चुके, राम नाईक ने स्वर कोकिला के करोड़ों प्रशंसकों में से खुद भी को एक बताया है। उन्होंने लता जी को अपनी भाव-भीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि “उनके संगीत के बारे में जितना कहा जाए वह कम ही होगा।” उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत तौर पर संगीत की तरह उनके कर्मठ राष्ट्रप्रेम से भी मैं अभिभूत हूं। दुश्मन राष्ट्रों से युद्ध का समय हो या नैसर्गिक आपदा का या फिर जनता के आरोग्य के लिए कुछ करने की बात हो। लता जी मुक्त हस्त से देती आयी हैं। राम नाईक ने कहा कि “कर्मठ राष्ट्रप्रेमी और पूरी दुनिया की अनेकानेक पीढ़ीओं पर अपनी मीठी आवाज का जादू छानेवाली भारतरत्न गानकोकिला श्रीमती लता मंगेशकर तो अमर हैं।”
अपनी आवाज के माधुर्य से विश्व को विस्मृत कर देने का जो कौशल उनमें था, उसने अपने इष्ट मां शारदे को बाध्य कर दिया कि वे अंतिम समय पर स्वयं उनको लेने धरती पर आएं। जैसे मां सीता को लेने के लिए स्वयं धरती मां विमान से आती हैं ठीक वैसे ही मां शारदे “वसंत पंचमी” के दिन जब धरती पर आती हैं और अपनी पुत्री को अपने साथ लेकर चली जाती हैं। क्या अद्भुत संयोग है यह! इष्ट के प्रति निष्ठा ऐसी कि स्वयं इष्ट ही अंतिम समय पर आपके सम्मुख खड़ा है! मां !! भारत ऋणी रहेगा तुम्हारा…
कृष्ण भारद्वाज