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भारत ने अपना रत्न खो दिया- यह मां सरस्वती का सुर विराम है

किशन सनमुखदास भावनानी

महाराष्ट्र। सारे विश्व में सूरज और चांद की तरह ही लता जी किसी परिचय की मोहताज नहीं थीं। परंतु आज सुबह 8.12 बजे भारत ने अपना रत्न खो दिया। बसंत पंचमी सरस्वती दिवस से 1 दिन बाद, यह वसंत हमसे रूठ गया। यह मां सरस्वती का एक सुर विराम है।

संगीत की दुनिया में लता दीदी के नाम से प्रसिद्ध लता जी के व्यक्तित्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्वर कोकिला के निधन की खबर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी गोवा वर्चुअल रैली कैंसिल कर दी। 2 दिन का राष्ट्रीय शोक, तिरंगा आधा झुका रहेगा। अंतिम दर्शन में प्रधानमंत्री की उपस्थिति के अलावा, केंद्रीय गृह मंत्री सहित महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और हर क्षेत्र के दिग्गजों ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। दीदी के जाने से संगीत क्षेत्र में क्षति को पूरा नहीं किया जा सकता। 92 वर्षीय दीदी ने 36 भाषाओं में 50 हज़ार गाने गाए जो रिकॉर्ड है तथा एक हज़ार से अधिक फिल्मों में आवाज़ दी।


करीब 80 साल से संगीत क्षेत्र में सक्रिय दीदी का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। 13 वर्ष की छोटी सी उम्र में 1942 से उन्होंने गाना शुरू किया था तथा उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर संगीत की दुनिया और मराठी रंगमंच के जाने पहचाने नाम थे। दीदी को 2001 में भारत रत्न मिला था। इसके अतिरिक्त दीदी को अनेक सम्मान पद्मविभूषण, पद्मभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। दीदी बेस्ट गायिका और 61 वर्ष की उम्र में नेशनल अवार्ड जीतने वाली एकमात्र गायिका रहीं।


पेडर रोड मुंबई स्थित प्रभु कुंज की खुशियों पर विराम और आभा गुम महसूस हो रही होगी। सारे विश्व को उनके निधन पर दुख है। भारत में शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो दीदी का नाम नहीं जानता होगा। दीदी का जाना, हम सभी के लिए यह एक ऐसी क्षति है, जिसकी पूर्ति कभी नहीं हो सकती। एक सूरज एक चांद और एक लता दीदी। दीदी को मां सरस्वती अपने श्रीचरणों में स्थान दें। यही हम सब की कामना और श्रद्धांजलि है।

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