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भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने सियासत व साहित्य दोनों में उच्च प्रतिमान स्थापित किये। उनके यह दोनों ही रूप प्रेरणा देने वाले है। उनकी राजनीति व्यक्ति नहीं विचार पर आधारित थी,उनके काव्य में समाज को जागृत करने का भाव था। इसमें सामाजिक राष्ट्रीय सन्देश के साथ संगीत की लय भी है। उनके अनेक कविताओं को स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने भी स्वर दिए। एक समारोह में अटल जी और लता जी दोनों उपस्थित थे। अटल जी के बोलने का अपना विशिष्ट अंदाज था। उन्होंने कहा कि “लता जी स्वर साम्राज्ञी है,और मैं ससुर भी भी नहीं बन सका” समारोह में ठहाका गूंज उठा। एक शब्द में अटल जी ने अपने बारे में दो पहलू बताए थे। वह अविवाहित थे, इसलिए ससुर नहीं बने। दूसरा भाव सस्वर का था। मतलब लता जी जैसा स्वर उनको नहीं मिला।अटल जी के राजनीति व साहित्य दोनों पक्ष एक साथ चलते है। दोनों का एक साथ स्मरण ना किया जाए तो बात अधूरी रह जाती है।
लखनऊ के जनहित जागरण ने इसका ध्यान रखा। उसके कार्यक्रम में सम्मान समारोह के साथ अटल जी के काव्य को मोहक स्वर भी दिए गए। पत्रकारों,साहित्यकारों और सामाज सेवकों को सम्मानित किया गया। अंजुल वाजपेयी द्वारा प्रस्तुत गणेश वंदना से समारोह का शुभारंभ किया गया। अटल जी के प्रसंग चर्चा में रहे। अटल जी ने पहला लोकसभा चुनाव बलराम पुर से लड़ा था। चुनाव के बाद उनका एक वाक्य खूब चर्चित हुआ था। विनोद पूर्ण अंदाज में उन्होंने कहा था कि बलरामपुर की सड़कें ऐसी है कि उन पर ठीक से चला नहीं जा सकता,और उनकी अपनी पार्टी ने चुनाव प्रचार के लिए ऐसी जीप दी है,जो ठीक से चल नहीं सकती। खराब सड़कों का उल्लेख करके उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर निशाना लगाया था। इसके साथ ही यह भी बताया जनसंघ आर्थिक दृष्टि से कांग्रेस का मुकाबला नहीं कर सकती।
श्रद्धेय अटल के व्यक्तित्व का बखान करते हुए नोयडा से आईं लोकप्रिय कवयित्री डॉ.अंजना सिंह सेंगर ने तुमसा नहीं था को सुनाकर वाहवाही पाई। उन्होंने शत-शत नमन तुम्हें करती हूं सच्चे राष्ट्र पुजारी। सुनाकर सबको भावविभोर कर दिया। प्रतापगढ़ से आए लवलेश यदुवंशी ने काव्य पाठ से श्रद्धेय अटल विहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने सभी देशों से सुंदर हिंदुस्तान लगता है…पढ़ा। इसके बाद उन्होंने गांव गली लोगों की तकदीर बदल डाली है..सुनाई। लोकगायिका शीलू श्रीवास्तव ने अटल जी की कविता को स्वर दिया-बाधाएं आती हैं आएं…घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों में हंसते हंसते आग लगाकर जलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा। हास्य रूदन में, तूफ़ानों में, अगर असंख्यक बलिदानों में, उद्यानों में वीरानों में, अपमानों में, सम्मानों में, उन्नत मस्तक, उभरा सीना, पीड़ाओं में पलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा।
कविता सिंह ने भी काव्य पाठ किया। एक ही कविता में दो प्रकार के भाव प्रकट करना अटल जी की काव्य चेतना को उजागर करता है। गीत नहीं गाता हूं, और फिर गीत गाता हूं, दोनों का वह उल्लेख करते है। दोनों के कारण भी बताते है। गीत ना गाने का कारण है। वह लिखते है
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं, गीत नहीं गाता हूं। लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं, गीत नहीं गाता हूं।
फिर उदासी से बाहर निकलते है। गीत गाते है- गीत नया गाता हूं, टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात, प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं गीत नया गाता हूं,, टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी,अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी हार नहीं मानूंगा,रार नहीं ठानूंगा काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं।
रिदम डांस एकेडमी उन्नाव के बच्चों ने गणेश वंदना से कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इसके बाद अटल जी की कविता पर नृत्य प्रस्तुत किया गया- भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाईं से हारा अंतरतम का नेह निचोड़ें बुझी हुई बाती सुलगाएं। आओ फिर से दिया जलाएं। हम पड़ाव को समझे मंजिल,लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल, वर्तमान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएं। आओ फिर से दिया जलाएं।