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आचार्य मनोज अवस्थी द्वारा सुदामा चरित्र का वर्णन सुन पंडाल में उपस्थित श्रोता हुए भाव-विभोर

बिधूना विकास खंड के धरमंगदपुर में भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन श्रीमद् भागवत का रसपान करने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। भागवत कथा का समापन आज सुदामा चरित्र के वर्णन के साथ हुआ। कथावाचक आचार्य मनोज अवस्थी द्वारा सुदामा चरित्र का वर्णन किए जाने पर पंडाल में उपस्थित श्रोता भाव-विभोर हो गए।

कथावाचक ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है।

उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं, तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते है और कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक दरिद्र व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को रोककर सुदामा को रोककर गले लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया और सुदामा को अपने महल में ले गए ओर उनका अभिनंदन किया। इस प्रसंग को सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए।कथा पंडाल में श्री कृष्ण के जयकारे लगने शुरू हो गए।

आचार्य मनोज अवस्थी ने राजा परीक्षित के मोक्ष की कथा भी सुनाई उन्होंने कहा कि व्यक्ति जीवन में कितने ही गलत कार्य कर ले जानबूझकर या अज्ञानता में परंतु वह यदि पश्चाताप करता है तो ईश्वर उस को मोक्ष प्रदान करते हैं।

उन्होंने कहा राजा परीक्षित के पास किस बात की कमी थी। परंतु जरासंध के स्वर्ण मुकुट को अपने सिर पर धारण करने के बाद जब कलयुग में प्रवेश कर लिया तब परीक्षित से यह गलती हुई कि उसने ऋषि का अपमान किया सात दिवस की कथा राजा परीक्षित ने गंगा किनारे सोनी सुखदेव जी महाराज की पूरी कथा विस्तार से सुनाई अंत में राजा परीक्षित ने कहा प्रभु आपकी कृपा से मैंने सभी प्रकार का ज्ञान प्राप्त कर लिया है, अब मुझे मोक्ष दो और अपनी शरणागति करो भगवान ने ऐसा ही किया भगवान की शरणागति पाकर परीक्षित ने मोक्ष प्राप्त किया और भगवान के धाम को चले गए आचार्य मनोज अवस्थी ने उपस्थित भक्तों से कहा कि सादगी उसी कथा में मन वचन और काया से यदि त्रुटि हुई हो आप उसे मिटा देना परंतु जीवन में कुछ ग्रहण करने की दृष्टि से सात दिवस की कथा जो आपने सुनी यदि आपको कुछ समझ आया हो तो उसे संभाल कर रखना उस पर चिंतन मनन करना अंत में भगवान की आरती हुई और प्रसाद वितरण किया गया।

भागवत पंडाल में परीक्षित श्रीमती सरोज एवं अशोक सेंगर के अलावा सांसद सुब्रत पाठक, रिया शाक्य, गोविन्द सेंगर, ब्लाक प्रमुख गीता सेंगर, डा राहुल सेंगर, आदर्श सेंगर, अरुण कुमार, लाल सिंह सेंगर, अभिषेक सेंगर, गोलू सेंगर, अभिनव, गोपाल पाठक, आशीष वर्मा सहित कई श्रोतागण मौजूद रहे।

रिपोर्ट-राहुल तिवारी/ संदीप राठौर

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