लखनऊ। डॉ राम मनोहर लोहिया शोध पीठ (Dr Ram Manohar Lohia Research Chair) के तत्वावधान में लखनऊ विश्वविद्यालय (Lucknow University) के समाजशास्त्र विभाग (Department of Sociology) ने आदिवासियों की सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरण संरक्षण: चुनौतियां और संभावनाएं विषय (Topic Cultural Heritage and Environmental Conservation of Tribals) पर एक विचारोत्तेजक व्याख्यान का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में प्रतिष्ठित विद्वानों और विशेषज्ञों ने आधुनिकीकरण और वैश्वीकरण के दौर में आदिवासी विरासत के संरक्षण से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की।
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मुख्य भाषण भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के टैगोर फेलो प्रोफेसर एसएन चौधरी ने दिया और सत्र की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के सामाजिक व्यवस्था अध्ययन केंद्र के पूर्व प्रोफेसर प्रोफेसर आनंद कुमार ने की। डॉ राम मनोहर लोहिया शोध पीठ के अध्यक्ष प्रोफेसर डीआर साहू ने वक्ताओं का स्वागत और अभिनंदन किया।
प्रो चौधरी ने आदिवासी-राज्य संबंधों का गहन विश्लेषण किया संविदात्मक संबंध, आर्थिक सुधारों और नीतिगत बदलावों के प्रभाव का जिक्र करते हुएऔर अनिवार्य एकीकरण, जो बाहरी प्रभावों और आधुनिकीकरण के कारण मजबूर अनुकूलन को रेखांकित करता है। उन्होंने सांस्कृतिक अध्ययनों में तीन महत्वपूर्ण दृष्टिकोणों पर भी जोर दिया: आदिवासी समाजों में सांस्कृतिक पहचान का महत्व, राज्य और आदिवासी समुदायों के बीच विकसित होते संबंध और पारंपरिक आदिवासी रीति-रिवाजों और प्रथाओं पर वैश्वीकरण का प्रभाव। इसके अतिरिक्त, उन्होंने टैटू बनाने, स्वदेशी चिकित्सा और उपचार प्रथाओं जैसी सदियों पुरानी परंपराओं को संरक्षित करने के महत्व पर प्रकाश डाला, इन सांस्कृतिक संपत्तियों की रक्षा करने वाली नीतियों की वकालत की।
व्याख्यान ने रेखांकित किया कि आदिवासी क्षेत्रों में किसी भी विकास पहल को आदिवासी मूल्यों का सम्मान करना चाहिए और सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। आधुनिकीकरण और पारंपरिक प्रथाओं के बीच एक संतुलित दृष्टिकोण सांस्कृतिक अखंडता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। नीति निर्माताओं से स्वदेशी विरासत को संरक्षित करते हुए सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए आदिवासी पारिस्थितिक ज्ञान को विकास रणनीतियों में पहचानने और एकीकृत करने का आग्रह किया गया। सत्र का समापन समाजशास्त्र विभाग के डॉ. पी. के. मिश्रा द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। व्याख्यान ने इस बात पर चर्चा के लिए एक सार्थक मंच प्रदान किया कि कैसे आदिवासी सांस्कृतिक विरासत को सतत विकास सुनिश्चित करते हुए संरक्षित किया जा सकता है। इस कार्यक्रम में शिक्षाविदों, छात्रों और शोधकर्ताओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और जनजातीय मुद्दों पर एक आकर्षक बौद्धिक चर्चा को बढ़ावा मिला।